इको-टूरिज्म के नाम पर जल, जंगल और जमीन का किस मनमाने तरीके से सौदा किया जा रहा है, इसका एक उदाहरण छत्तीसगढ़ के तांदुला बांध को एक रेसॉर्ट के लिए लीज पर दिए जाने से संबंधित द लेंस की एक बेहद संवेदनशील रिपोर्ट में सामने आया है।
दुखद यह है कि राज्य के बालोद जिले में स्थित यह बांध छत्तीसगढ़ की सबसे पुरानी जल परियोजनाओं में से एक है, जिसका निर्माण औपनिवेशक शासन के दौरान 1910 से 1921 के बीच किया गया था।
शुरुआती वर्षों में इस बांध का उपयोग पेयजल की आपूर्ति और सिंचाई के लिए होता था और बाद में यह भिलाई इस्पात संयंत्र की जीवनरेखा भी बन गया। दशकों से आसपास के गांवों के लोग निस्तारी और मछलीपालन के लिए इसका उपयोग करते ही आए हैं।
लेकिन हाल ही में इसे ईको-रेसॉर्ट के नाम पर एक निजी उद्यम को लीज पर दे दिया गया है, और इसे ‘मिनी गोवा’ के नाम पर प्रचारित किया जा रहा है।
क्या यह बताने की जरूरत है कि जिस गोवा के नाम पर इस इको रेसार्ट को प्रचारित किया जा रहा है, वहां बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन से चिंतित होकर सुप्रीम कोर्ट को अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए आगे आना पड़ा था।
वास्तव में प्राकृतिक रूप से खूबसूरत छत्तीसगढ़ के इस पूरे इलाके को जिस तरह से विकसित किया गया है, उससे तांदुला और सूखा नाला नदियां संकट में आ गई हैं। यही नहीं, इस रेसॉर्ट की बाड़बंदी के कारण आसपास के गांव के लोग तांदुला बांध से वंचित हो गए हैं।
यह कथित विकास की ऐसी तस्वीर है, जिसे पूरे देश में अलग अलग जगहों पर दोहराया जा रहा है। हाल ही में उत्तराखंड औऱ हिमाचल में हुई भीषण बारिश और बाढ़ ने वहां तबाही मचाई, जहां विकास के नाम पर अंधाधुंध तरीके से आवासीय और व्यावसायिक इमारतें खड़ी कर दी गईं हैं।
दर्जनों रिपोर्ट्स में यह बात सामने आ चुकी है कि पहाड़ों में आने वाली तबाही के लिए बेतरतीब विकास जिम्मेदार है। यही नहीं, ऐसे विकास और आपदाओं का सर्वाधिक खामियाजा स्थानीय लोगों को उठाना पड़ता है, क्योंकि इससे उनकी आजीविका सीधे प्रभावित होती है।
दरअसल प्राकृतिक संसाधनों और जलस्रोतों को जबसे सरकारों ने व्यावसायिक संसाधनों में बदल कर निजी कंपनियों के हाथों उनका सौदा करना शुरू किया है, उससे पारिस्थितिकी संतुलन तो बिगड़ ही रहा है, स्थानीय लोगों के सहअस्तित्व के लिए भी चुनौती पेश आ रही है।
करीब डेढ़ दो दशक पहले छत्तीसगढ़ में ही यहां कि एक प्रमुख नदी शिवनाथ के एक हिस्से को एक ठेकेदार के हाथों बेच देने का एक सनसनीखेज मामला सामने आया था!
महाराष्ट्र के पिंपरी चिंचवाड़ के मुला रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का मामला तो एकदम ताजा है, जिसे वहां कि पिछली महाविकास अघाड़ी सरकार ने मंजूरी दी थी, जिसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों के विरोध के कारण वापस लेना पड़ा था, लेकिन अब वहां कि महायुति सरकार ने उसे फिर से मंजूरी दे दी है।
दरअसल ऐसे हर मामले में सरकारें और उनकी नौकरशाही स्थानीय लोगों की चिंताओं और उनकी जरूरतों पर गौर किए बिना फैसला लेती हैं। तांदुला के मामले में भी यह साफ देखा जा सकता है, जहां स्थानीय लोगों की शिकायत है कि यह रिसॉर्ट कुछ दूर बनाया जाता, तो उनकी आजीविका प्रभावित नहीं होती। पर क्या सरकार उनकी सुनेगी?
तांदुला डैम पर द लेंस की यह वीडियो रिपोर्ट देखें