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लेंस संपादकीय

क्रिकेट का युद्ध!

Editorial Board
Last updated: September 30, 2025 1:23 am
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जिस क्रिकेट को एक खिलाड़ी की शानदार पारी के लिए याद किया जाना चाहिए वो क्रिकेट युद्ध और नफरत के लिए याद किया जा रहा है, याद किया जाएगा।

ये भारत और पाकिस्तान के बीच रविवार को दुबई में हुए एशिया कप के फाइनल मैच के बाद का नजारा है। फाइनल मैच में तिलक वर्मा की शानदार बल्लेबाजी और संजू सैमसन, शिवम दुबे, कुलदीप यादव, वरुण चक्रवर्ती जैसे खिलाड़ियों के उम्दा प्रदर्शन से भारत ने मैदान मारा लेकिन उसके बाद क्रिकेट पिच मानो युद्ध के मैदान में बदल गई। दोनों तरफ से प्रतिक्रियाएं ऐसी ही थीं।

भारत के खिलाड़ियों ने पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख मोहसिन नकवी के हाथों ट्रॉफी लेने से इनकार कर दिया। इससे पहले के मैच में भारतीय खिलाड़ियों ने पाकिस्तान के खिलाड़ियों से हाथ मिलाने से ही इनकार कर दिया था।

भारतीय खिलाड़ियों ने खेल के मैदान में जो किया उसे आम हिन्दुस्तानियों की भावनाओं के अनुकूल कहा जा सकता है, लेकिन वही आम हिन्दुस्तानी क्या पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने के पक्ष में था? इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर जबरदस्त हमले किए और उन्हें तबाह कर दिया था।

यह ऑपरेशन सिंदूर था।दोनों ही एटमी ताकतें युद्धरत थीं। भारत ने पाकिस्तान से रिश्ते तोड़ लिए, नदियों का पानी रोक दिया, हवाई और रेल सफर रोक दिया, तभी आ गया क्रिकेट। देश में आम लोगों से लेकर विपक्ष तक की आलोचनाओं के बावजूद क्रिकेट खेला गया। आरोप लगे कि बड़े मुनाफे का खेल है इसलिए नागरिकों का खून याद नहीं रहा।

एशिया कप की जीत के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोशल मीडिया पर आई पोस्ट इस माहौल को आगे बढ़ाती हुई ही थी। उन्होंने इसे क्रिकेट के मैदान पर ऑपरेशन सिंदूर लिखा। उन्होंने लिखा – ‘खेल के मैदान पर ऑपरेशन सिंदूर। नतीजा वही है – भारत जीतता है। हमारे क्रिकेट खिलाड़ियों को बधाई।’ प्रधानमंत्री की यह प्रतिक्रियाएं हैरान कर देने वाली थी। क्रिकेट जैसे खेल की हार जीत को युद्ध के मैदान तक ही पहुंचाना हो तो फिर मैच की जरूरत ही क्या थी? नरेंद्र मोदी की पोस्ट के जवाब में पाकिस्तान से मोहसिन नकवी को भी जिस अंदाज में खेल भावना याद आई उसकी हकीकत भी उसकी जमीन पर, उसके संरक्षण में पनपने वाले आतंकवाद से जाहिर है।

दोनों देशों के बीच क्रिकेट कभी रिश्ते सुधारने की कोशिशों का मैदान होता था। इसे क्रिकेट डिप्लोमेसी ही तो कहा करते थे। लेकिन इस जीत की तुलना ऑपरेशन सिंदूर से करना ऐसा हुआ जैसे क्रिकेट की पिच पर बारूद बिछा दी गई। ये भाषा भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के उस नेता की तो नहीं हो सकती, जो इस देश को विश्व गुरु के रूप में देखने का आकांक्षी हो।

पाकिस्तान से आए आतंकी बारूद का जहां जवाब देना था, वहां भारत की सेनाओं ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट हमेशा ही बाजार को भाता है। उन्माद जितना ज्यादा होता है क्रिकेट का मैदान उतना ही मुनाफा उगलता है। लेकिन इस उन्माद में दोनों ही देशों की अवाम के जरूरी सवाल हमेशा ही पीछे छूट जाते हैं।

TAGGED:Asia CupEditorial
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