लेंस डेस्क। ‘अमेरिकी-जायनिस्ट इजरायली गठजोड़ को तोड़े बिना, यूरोपीय संघ द्वारा फिलिस्तीन की मान्यता केवल औपचारिक है और गजा जनसंहार को रोकने के लिए नाकाफी है।’ फलस्तीन के समर्थन में यह बयान जारी किया है भाकपा (माले) रेड स्टार ने।
पार्टी के महासचिव पी. जे. जेम्स ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 157 ने फलस्तीन को संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी है। यह संख्या संयुक्त राष्ट्र महासभा में दो-तिहाई बहुमत के लिए काफी है, लेकिन फलस्तीन को पूर्ण सदस्यता दिलाने के लिए सुरक्षा परिषद में 9 वोट और किसी भी स्थायी सदस्य के वीटो से बचना जरूरी है। अमेरिका ने अब तक 50 से ज्यादा बार इजरायल विरोधी प्रस्तावों को वीटो किया है, जिसके चलते फलस्तीन की मान्यता का असर सीमित रहता है।
पी. जे. जेम्स काहना है कि यूरोपीय संघ के कुछ देशों ने फलस्तीन को मान्यता दी है, लेकिन यह कदम प्रतीकात्मक ज्यादा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक इजरायल पर आर्थिक प्रतिबंध या सैन्य नाकेबंदी जैसे ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक यह मान्यता ज्यादा प्रभावी नहीं होगी। इजरायल गाजा में युद्ध अपराधों को तेज कर रहा है, फिर भी यूरोपीय संघ के ज्यादातर देश और भारत जैसे राष्ट्र उसके साथ व्यापार और हथियार सौदे जारी रखे हुए हैं।
यूरोपीय संघ ने फलस्तीन की मान्यता के साथ कुछ शर्तें भी रखी हैं, जैसे हमास की निंदा और उसे निशस्त्र करने की मांग। यह दो-राष्ट्र समाधान का प्रस्ताव एक कमजोर फलस्तीनी राज्य की बात करता है, जो इजरायल की सैन्य ताकत के सामने असहाय होगा। कई लोग इसे साम्राज्यवादी चाल मानते हैं, क्योंकि हमास का प्रतिरोध ही फलस्तीन के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीवित रखे हुए है।
वहीं, अमेरिका और यूरोप में लाखों लोग अपनी सरकारों की इजरायल समर्थक नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। यूरोप में फलस्तीन को मान्यता देने का फैसला युवाओं और छात्रों के आंदोलनों का नतीजा है। अमेरिका में भी ट्रंप की नीतियों के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ रहा है, जो फलस्तीन के लिए एकजुटता दिखा रहा है।
जब तक अमेरिका और इजरायल का गठजोड़ टूटता नहीं, फलस्तीन को मिली मान्यता का असर सीमित रहेगा। दुनिया भर की जनता का एकजुट संघर्ष ही इस स्थिति को बदल सकता है।