रायपुर। क्या वाकई माओवादी शांति वार्ता के लिए हथियार छोड़ने को तैयार हैं? क्या माओवादी संसदीय लोकतंत्र की राह पकड़ने को तैयार हैं? क्या माओवादी इतने पस्त हो चुके हैं कि अब उन्हें अपनी गलतियां नजर आने लगी हैं? क्या सच में माओवादी हिंसा की अपनी राजनीति के लिए जनता से माफी मांग रहे हैं? क्या सच में माओवादियों ने अब चीन की लाइन को खारिज कर भारत की परिस्थितियों में आंदोलन खड़ा करने का विचार करना शुरू कर दिया है? क्या माओवादी संसदीय राजनीति के साथ मिल कर काम करने को तैयार हैं?
पिछले चौबीस घंटों में माओवादी नेताओं के नाम से जारी दो चिट्ठियों ने ना केवल ये सवाल खड़े किया हैं बल्कि देश में माओवादी आंदोलन के भविष्य पर एक नई बहस भी छेड़ दी है – इन सवालों के साथ कि ये चिट्ठियां असली हैं या फर्जी?
सबसे पहले बात पहली चिट्ठी की।
मंगलवार की रात समाचार संस्थानों तक सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय के नाम से पहुंची।
इस चिट्ठी ने हलचल पैदा कर दी।
अभय की इस कथित चिट्ठी में कहा गया कि हम यानि कि माओवादी यह स्पष्ट कर रहे हैं कि विश्व और देश की बदली हुई परिस्थितियों के अलावा देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से लेकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तक हमसे हथियार छोड़ कर मुख्य धारा में शामिल होने के लिए कह रहे हैं इसलिए इन अनुरोधों को देखते हुए हमने हथियार छोड़ने का निर्णय लिया है।
इस चिट्ठी में आगे यह भी लिखा गया है कि भविष्य में माओवादी तमाम राजनीतिक दलों एवं संघर्षरत अन्य संस्थाओं के साथ कंधे से कंधा मिला कर संघर्ष करेंगे।
दरअसल यह पहली बार था जब माओवादियों के किसी कथित बयान में शांति वार्ता के लिए हथियार छोड़ने का ऐलान किया गया था।बल्कि ‘अन्य राजनीतिक पार्टियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर संघर्ष’ करने की बात भी कही गई है।
किसी राजनीतिक पार्टी का इस पत्र में नाम तो नहीं लिया गया है लेकिन इसे संसदीय राजनीति में हिस्सा लेने वाली पार्टियां ही पढ़ा जा रहा है।
इसी ऐलान से लोग चौंके और यह कथित चिट्ठी खबर भी बनी।
जो चिट्ठी मंगलवार रात पहली नजर में बड़ी खबर बन गई उस पर जल्दी ही सवाल खड़े होने लग गए।
दरअसल हथियार माओवादियों के लिए उनके राजनीतिक विचार का हिस्सा रहे हैं।
वे सशस्त्र क्रांति में विश्वास करते हैं और इसीलिए सत्ता के साथ हथियारबंद लड़ाई में जुटे हैं।
अभय की इस कथित चिट्ठी में यह भी लिखा है कि उनकी पार्टी केंद्रीय गृह मंत्री या उनके द्वारा नियुक्त व्यक्तियों अथवा प्रतिनिधिमंडल से वार्ता के लिए भी तैयार है।
दिलचस्प यह है कि इस चिट्ठी में यह भी साफ–साफ लिखा है कि यह फैसला कुछ सीमित उपलब्ध नेतृत्वकारी लोगों की सहमति से लिया गया है।
कथित अभय ने इस पर विचार विमर्श के लिए सरकार से एक महीने का समय मांगा है और अपने उन बाकी साथियों से जो विभिन्न जेलों में बंद हैं अथवा अंडर ग्राउंड हैं,कहा है कि इस समयावधि में अपने विचारों से ई मेल के जरिए पार्टी को अवगत करवा दें।दिलचस्प यह है कि जिस ईमेल का पता इस पत्र में दिया है वो गलत है।
दिलचस्प है कि इस चिट्ठी पर एक माओवादी नेता की तस्वीर भी छपी है। इससे पहले कभी इस अंदाज में माओवादी बयान देखने को नहीं मिले।इस चिट्ठी में कई ऐसी बातें हैं जो माओवादी विचारधारा के विपरीत मानी जा सकती हैं।
देर रात समाचार संस्थानों तक पहुंची इस चिट्ठी की भाषा भी ऐसी है जिसे पढ़ कर यह लगता है कि माओवादियों के नाम पर कहीं यह फर्जी चिट्ठी तो नहीं बनाई गई है?
इस चिट्ठी को लेकर चर्चाएं थमी नहीं थीं कि अभय के ही नाम से यही बयान ऑडियो स्वरूप में भी आ गया और जब तक इस ऑडियो को लोग सुन पाते एक चिट्ठी और समाचार दफ्तरों में आ पहुंची।

यह और गंभीर वैचारिक मसलों पर चर्चा करती हुई दूसरी चिट्ठी थी जो सीपीआई (माओवादी) की पोलित ब्यूरो के सदस्य सोनू के नाम से जारी हुई थी।
सोनू ने अपनी चिट्ठी के अंत में अपने नाम के साथ लिखा है – ‘अपराध की भावना से’!
अब इस दूसरी चिट्ठी की चर्चा करते हैं जिसे लिखने वाले सोनू कथित तौर पर माओवादी पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य हैं।
यह चिट्ठी सिर्फ जनता से माफीनाम नहीं है बल्कि यह पूरे सशस्त्र माओवादी आंदोलन को विफल ठहराती है।
इस दूसरी चिट्ठी में कमजोर हो रहे आंदोलन और लगातार मारे जा रहे माओवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं का जिक्र करते हुए इस बात की याद दिलाई गई कि कैसे नक्सलबाड़ी के बाद पार्टी अस्थाई रूप से पीछे हटी और फिर किस तरह बाकी की तमाम क्रांतिकारी पार्टियों के मुकाबले आगे बढ़ कर सफलताएं हासिल की।यह पंक्तियां पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी आंदोलन और उसे तब की सरकार द्वारा कुचले जाने और फिर नक्सलियों के एक ताकतवर संगठन के रूप उभरने के पूरे दौर को सामने रखती हैं।
यहीं यह भी याद दिलाया गया कि कैसे इस पार्टी ने दक्षिण एशिया के सशस्त्र आंदोलनों में जुटे संगठनों की एकता में भी भूमिका निभाई थी।
सोनू की यह कथित चिट्ठी कहती है कि जितनी महत्वपूर्ण हमारी उपलब्धियां रही हैं,हमने उससे भी ज्यादा गंभीर गलतियां की हैं।हम दुनिया और देश की बदल रही सामाजिक परिस्थितियों को समझने में विफल रहे।हमने ‘दुश्मन’(भारत सरकार,सुरक्षा बल) की ताकत और हमारी ताकत का सही आकलन करने में गलतियां की। हम वामपंथी संकीर्णतावाद का शिकार होते रहे। हमने बलिदानों से क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन ऐसा नहीं कर सके।जनता की हमारे प्रति सहानुभूति थी फिर भी अंत में हम अकेले पड़ रहे हैं।
यह चिट्ठी याद करती है कि एक समय देश के 16 राज्यों में लगभग 150 जिलों क्रांतिकारी आंदोलन (माओवादी आंदोलन) का अस्तित्व था।
चिट्ठी आगे कहती है कि दंडकारण्य और बिहार–झारखंड जैसे इलाकों में हम मुक्तांचल (लिबरेटेड जोन) के निर्माण के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे थे…लेकिन हमारी पार्टी घोर विफलता का शिकार हुई।
यह भी लिखा कि हमारी हार के लिए ‘दुश्मन’ की बहादुरी से ज्यादा हमारी कमजोरियां और गलतियां जिम्मेदार हैं।
यह चिट्ठी कहती है कि दंडकारण्य इलाके में 2011 से ही कमजोरियां स्पष्ट रूप से उभरने लगी थीं लेकिन उन्हें सही समय पर सुधारा नहीं गया और अंत में आज वहां हार का मुंह देखना पड़ रहा है।
इस चिट्ठी में पीपल्स वार (पीडब्लूजी)और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के विलय का भी जिक्र किया गया और कहा गया कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उमंग और ऊर्जा का संदेश गया था।‘क्रांतिकारी शिविरों’ में एक ‘अच्छा माहौल’ निर्मित हुआ था लेकिन अपनी गलतियों से हमने उन परिस्थितियों को भी खो दिया।
चिट्ठी कहती है कि वामपंथी संकीर्णतावाद की गलतियों के कारण एक बड़ा तबका क्रांतिकारी आंदोलन से दूर हुआ।
चिट्ठी कहती है – ‘हमारी गलतियों ने भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को एक बार और पीछे धकेल दिया।’
सोनू के नाम से जारी यह चिट्ठी भी कहती है कि आज की परिस्थितियों में अगर पिछली गलतियों से सीखते हुए दुबारा क्रांतिकारी आंदोलन को खड़ा करना है तो फौरन हथियारबंद संघर्ष पर विराम लगाना होगा।
यह भी कहा गया कि अब जनता के पास ‘खुला’ जाना होगा।इस ‘खुला’ को भूमिगत ना रह कर खुल कर लोगों के बीच जाने की जरूरत से समझा जा रहा है।
इस चिट्ठी में माओवादियों की चीन लाइन को खुल कर ‘कठमुल्लावाद’ कह कर खारिज किया गया और कहा गया कि भारत की परिस्थितियों में ही क्रांति को सफल बनाया जा सकता है।
सोनू की यह कथित चिट्ठी जनता से बार–बार माफी भी मांगती है।
अंत में यह चिट्ठी कहती है – ‘ हथियारबंद संघर्ष को विराम दिए बिना रक्तरंजित वनों को शांतिवनों में तब्दील नहीं किया जा सकता।’ और यह भी – ‘ यह निर्णय लिए बिना हम बची हुई क्रांतिकारी ताकतों को बचा नहीं पाएंगे।’
इन चिट्ठियों को लेकर दो तरह की चर्चाएं हो रही हैं।पहली चर्चा यह कि क्या ये चिट्ठियां फर्जी हैं और दूसरी यह कि क्या माओवादियों ने अपनी राजनीति की पूरी धारा को गलत स्वीकार कर उसे उलट देने का फैसला कर लिया है या क्या वे तात्कालिक तौर पर ही हथियार छोड़ कर शांति वार्ता करना चाहते हैं?
दरअसल पिछले कुछ समय से केंद्र की मोदी सरकार के नेतृत्व में देश की सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ तगड़ा अभियान छेड़ रखा है।इस अभियान की मॉनिटरिंग स्वयं गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हैं।
अमित शाह ने मार्च 2026 तक देश से माओवाद के सफाए का ऐलान किया है।
सुरक्षा बलों के इस तगड़े सैन्य जवाब ने माओवादियों की कमर तोड़ रखी है।पार्टी के महासचिव से लेकर अनेक केंद्रीय कमेटी के सदस्य और कैडर इस अभियान में मारे गए।बड़ी संख्या में नेताओं ने आत्मसमर्पण किया है।
इस अभियान के दौरान ही माओवादियों ने कई बार सरकार के समक्ष युद्ध विराम और शांति वार्ता का प्रस्ताव भी रखा लेकिन अपने किसी भी प्रस्ताव में उन्होंने हथियार छोड़ने की बात नहीं की।
देश के अनेक बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने माओवादियों के प्रस्ताव के बाद केंद्र और राज्य सरकारों से शांति वार्ता के प्रस्ताव को मानने की अपील की थी ताकि इन इलाकों में , खासतौर पर बस्तर में चल रहा खून खराबा रुके।
इस तबके की ओर से यह चिंता भी व्यक्त की गई थी कि इस जंग में निर्दोष भी मारे जा रहे हैं।
सरकारों और सुरक्षा बलों की ओर से हमेशा यही कहा गया कि माओवादी पहले हथियार छोड़ें,आत्मसमर्पण करें,भारत के संविधान में आस्था व्यक्त करें तभी बातचीत की कोई गुंजाइश होगी।इन दिनों तो अब केंद्र सरकार और कम से कम किसी भाजपा शासित राज्य सरकार की ओर से तो ऐसी पेशकश भी आनी बंद हो गई है क्योंकि अभी माओवादी रणनीतिक रूप से अत्यंत कमजोर हैं और सरकार बेहद आक्रामक।
यही वो परिस्थितियां हैं जिनमें अचानक एक के बाद एक ये दो चिट्ठियों आती है जिसमें कथित तौर पर माओवादियों की ओर से कहा जाता है कि वे हथियार छोड़ने को तैयार हैं।
राज्य के गृह मंत्री से लेकर बस्तर के आईजी तक ने कहा है कि इस चिट्ठी की सत्यता की जांच की जाएगी उसके बाद ही इस पर कोई टिप्पणी की जाएगी।
पहली चिट्ठी जो अभय के नाम से जारी हुई थी उसके ब्रेकिंग न्यूज बन जाने के बाद ही इस पर सवाल उठने खड़े हो गए। यह लगने लगा कि यह चिट्ठी फर्जी है।माओवादी मोर्चे पर तैनात सुरक्षा बल से जुड़े एक अफसर ने भी कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह फर्जी चिट्ठी है।
इस समय तक इस पहली चिट्ठी को लेकर सवाल ही उठ रहे थे कि क्या माओवादी खुद ऐसी चिट्ठी जारी कर अपने ही खिलाफ,अपने ही कैडर के बीच भ्रम पैदा करेंगे ? यह तार्किक नहीं है।
दरअसल ऐसे सशस्त्र संघर्षों में लड़ाई सिर्फ हथियारों के दम पर नहीं होती बल्कि मनोवैज्ञानिक भी होती है।
इसके लिए Psychological warfare या संक्षेप में PSY War (साई वार) एक स्वीकार्य सैन्य टर्म है।इसके तहत पहला बड़ा काम तो फर्जी खबरें फैलना,फर्जी प्रचार करना ,फर्जी चिट्ठियों जारी करना,सोशल मीडिया पर एक– दूसरे के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान छेड़ना,अफवाहें फैलाना आदि शामिल है।
PSY war एक ऐसी रणनीति है जिसका दोनों ही पक्ष इस्तेमाल करने से नहीं चूकते।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इसी पत्र के आधार पर माओवादी नेता का एक ऑडियो भी समाचार संस्थानों तक आ पहुंचा है।
अभय के इस कथित बयान और इसी बयान के एक ऑडियो पर अभी चर्चा चल ही रही थी कि दूसरी चिट्ठी भी समाचार संस्थानों तक आ पहुंची।
द लेंस ने नक्सल मामलों के एक्सपर्ट पीवी रमना से इन चिट्ठियों को लेकर बात की।
उनका कहना था कि माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता अभय की तरफ से जो प्रेस नोट जारी किया गया है, वह मुझे सही लग रहा है। लगातार नक्सलियों के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन के बाद वे बंदूक छोड़ने को तैयार हुए हैं। पार्टी महासचिव नंबाला केशवराव उर्फ बसवराजू को मुठभेड़ में मारे जाने के बाद संगठन कमजोर हुआ है। उन्होंने कहा कि हाल ही में कल्पना ने तेलंगाना पुलिस के सामने सरेंडर किया है। माओवादी कमजोर हुए हैं, जिसके बाद वे हथियार छोड़कर शांतिवार्ता को तैयार हैं। श्री रमना कहते हैं कि माओवादी मार्च से ही शांति वार्ता की बात कर रहे थे। भारत सरकार यह कह रही थी कि जब तक नक्सली हथियार छोड़कर बाहर नहीं आते, तब तक शांति वार्ता नहीं होगी। ये चिट्ठियां बताती हैं कि अब नक्सली हथियार छोड़कर बात करने को तैयार हुए हैं।
लेकिन, छत्तीसगढ़ सरकार ने इस पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है।
प्रदेश के गृह मंत्री विजय शर्मा से लेकर बस्तर के आईजी पी सुंदरराज तक ने कहा है कि पहले इन चिट्ठियों की सत्यता को जांचा जाएगा उसके बाद ही कोई प्रतिक्रिया दी जाएगी।
ये चिट्ठियां असली हैं ,फर्जी हैं ,ये किसी तरह के psy war का हिस्सा है या टूट चुके माओवादी हथियार छोड़ कर शांति वार्ता के लिए गंभीरता के साथ सामने आना चाहते हैं यह सब अगले कुछ दिनों में साफ होगा लेकिन ये तय है कि इन चिट्ठियों ने इस पूरे हिंसक आंदोलन की हालत और भविष्य पर चर्चा छेड़ दी है।
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