केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कुछ स्वतंत्र डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म और यूट्यूब चैनल के जरिये स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों और यूट्यूबरों को देश के दिग्गज औद्योगिक समूह अडानी ग्रुप से संबंधित वीडियो हटाने का निर्देश बहुत परेशान करने वाला है और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
इनमें न्यूजलॉन्ड्री, द वायर जैसे प्लेटफार्म और रवीश कुमार, अजीत अंजुम, ध्रुव राठी और आकाश बनर्जी जैसे नाम शामिल हैं, जिन्हें 36 घंटे के भीतर कुल 138 वीडियो और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट हटाने के निर्देश दिए गए हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इसके लिए छह सितंबर के दिल्ली की एक अदालत के फैसले को आधार बनाया है, जिसने जाने-माने स्वतंत्र पत्रकार परंजयगुहा ठाकुरता सहित कुछ अन्य लोगों के खिलाफ अडानी समूह की मानहानि से संबंधित याचिका पर उनका पक्ष सुने बगैर एकतरफा जारी किया है।
अडानी समूह का आरोप है कि ये पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट देश को प्रभावित करने के इरादे से उसे बदनाम कर रहे हैं और ऊर्जा और इफ्रांस्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को प्रभावित करना चाहते हैं। निश्चित रूप से यदि किसी रिपोर्ट या वीडियो में इरादतन अडानी समूह को निशाना बनाया गया हो, तो उस पर अदालती प्रक्रिया के जरिये कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन अडानी समूह के सिर्फ जिक्र के आधार पर ढेर सारे वीडियो और पोस्ट हटाने का आदेश संवैधानिक सवाल खड़ा करता है।
जिन मीडिया समूहों को और पत्रकारों को यह निर्देश मिला है, उनमें से कई का तो यहां तक कहना है कि उन्हें तो कुछ ऐसे वीडियो भी हटाने के लिए कहा गया है, जिनमें राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं से लिए गए इंटरव्यू में संबंधित औद्योगिक समूह का जिक्र भर आया है। यहां तक कि इनमें ऐसी रिपोर्ट्स भी शामिल हैं, जिनमें कुछ नेताओं के भाषण के अंश हैं!
यह आदेश इसलिए भी पीड़ादायक है, क्योंकि केंद्र में आज ऐसी सरकार बैठी है, जो हमेशा कांग्रेस पर हमले के लिए 1975 के आपातकाल को हथियार की तरह इस्तेमाल करती है, जब प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी गई थी। भारतीय लोकतंत्र का वह ऐसा काला अध्याय है, जिसे सबक की तरह लिया जाना चाहिए।
प्रेस की स्वतंत्रता पर मनमाना अंकुश किसी भी लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है। संविधान से बड़ा कोई नहीं हो सकता, चाहे वह कोई कितना ही बड़ा उद्योगपति क्यों न हो। हैरत तो इस बात की है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने भाषणों में जिक्र करते हैं कि उनकी कितनी आलोचनाएं होती है, उन्हें गालियां दी जाती हैं, लेकिन यदि उस आधार पर मानहानि के मुकदमे दायर होने लगें, तो अदालतें मामलों से अट जाएंगीं।
यहां यह भी याद दिलाने की जरूरत है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने उस समय के मशहूर कार्टूनिस्ट शंकर से कहा था, डोन्ट स्पेयर मी शंकर (शंकर मुझे मत बख्शना)!
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