सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में बहुचर्चित वक्फ संशोधन कानून, 2025 को पूरी तरह से रद्द करने से इनकार किया है, लेकिन उसने इसके कुछ ऐसे प्रावधानों पर रोक लगा दी है, जिन्हें लेकर भारी विरोध था। ध्यान रहे, सुप्रीम कोर्ट अप्रैल में पारित वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रहा है।
मोदी सरकार के वक्फ संशोधन अधिनियम को संसद में पेश करने के समय से ही इसका भारी विरोध हो रहा है और इसे संविधान के मूल ढांचे में दखल तक कहा गया। ऐसे में, मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के फैसले से निश्चित रूप से मुस्लिम समुदाय को कुछ राहत जरूर मिली होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के जिन बिंदुओं पर रोक लगाई है, उनमें प्रमुख हैं- राज्य वक्फ बोर्ड में गैर हिन्दुओं की संख्या तीन से अधिक नहीं हो सकती और केंद्रीय वक्फ परिषद में चार से अधिक; दूसरा कोर्ट ने वक्फ के लिए पांच साल इस्लाम की प्रैक्टिस करने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है और तीसरा है, कलेक्टर फैसला नहीं कर सकता कि कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं।
इन तीन बिंदुओं पर गौर करें, तो इनकी मौजूदगी से मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे थे, क्योंकि इन प्रावधानों की आड़ में सत्ता के मनमाने दुरुपयोग की आशंकाएं पैदा हो रही थीं। कोर्ट ने कलेक्टर के अधिकारों पर अंकुश लगाते हुए कहा है कि यह अधिकारों के पृथक्करण के खिलाफ है।
कहने की जरूरत नहीं कि इस प्रावधान से कलेक्टर के हाथों में असीमित अधिकार आ जाते। जहां तक इस्लाम की पांच साल प्रैक्टिस की बात है, तो यह प्रावधान तो किसी राज्य को ‘पुलिस स्टेट’ में भी बदल सकता है! सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस प्रावधान पर तब तक रोक लगी रहेगी, जब तक कि राज्य सरकारें यह निर्धारित करने के लिए कोई कानून न बना लें कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं।
वास्तव में यह बहुत पेचीदा है और जब भी कोई ऐसा कानून बनाने की बात आएगी, तो यह सवाल भी उठेगा कि क्या किसी अन्य धर्म को मानने वालों का निर्धारण करने के लिए भी कानून बनाया जाएगा? सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के दो अन्य आयामों पर भी गौर करने की जरूरत है, एक तो यह कि उसने कानून पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई है और कहा है कि ऐसा सिर्फ दुर्लभ मामलों में होता है।
दूसरा यह कि कोर्ट ने बहुचर्चित प्रावधान वक्फ बाई यूजर पर रोक नहीं लगाई है और स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसी वक्फ संपत्ति के कागजात नहीं होंगे, तो उसे वक्फ की संपत्ति नहीं माना जाएगा।
दरअसल इसे लेकर काफी विवाद हैं, क्योंकि इससे एक ओर जहां वक्फ की बहुत-सी पुरानी संपत्तियां खो सकती हैं, क्योंकि उनके कागजात मिलना मुश्किल है, तो वहीं ऐसे मामले भी सामने आ सकते हैं, जहां वक्फ के नाम पर जमीन पर अवैध कब्जे कर लिए गए! यदि इस अंतरिम फैसले को दोनों पक्ष अपनी जीत के रूप में देख रहे हैं, तो यही कहा जा सकता है कि सर्वोच्च अदालत ने इसके जरिये संतुलन साधने की कोशिश की है।