दंतेवाड़ा। Bailadila Forest : छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में बैलाडीला की पहाड़ियां जल्द ही अपने मूल स्वरूप को खो सकती हैं। यह बदलाव प्रकृति के कारण नहीं, बल्कि औद्योगिक विस्तार के चलते होगा। NMDC अपने नए कारखाने के लिए संरक्षित वन क्षेत्र से लगभग 15 हजार पेड़ काटने की तैयारी में है। कंपनी ने सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं, जिससे इस क्षेत्र को बचाना अब लगभग असंभव है।
बैलाडीला केवल पत्थरों का ऊंचा टीला नहीं है, बल्कि यहां प्रकृति का अनमोल खजाना छिपा है। यहां दुर्लभ वनस्पतियां, जीव-जंतु, पक्षी और करोड़ों साल पुराने डायनासोर युग के फर्न पौधे पाए जाते हैं। हर कुछ किलोमीटर पर शानदार झरने इस क्षेत्र की सुंदरता को और निखारते हैं।

बैलाडीला की पहाड़ियों को छत्तीसगढ़ का चेरापूंजी भी कहा जाता है। हरे-भरे जंगलों, पहाड़ी नदियों, अनोखे जीव-जंतुओं और सैक जैव विविधता से भरी हैं। यहां विशाल लौह अयस्क के भंडार हैं, जिनका खनन NMDC 1960 से कर रही है और इसे जापान सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में भेजती है।
किरंदुल के पास रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र 1859 और 1860 में हरी घाटी या धोबी घाट के नाम से जाना जाता है। इस घाटी में डायनासोर युग के फर्न पौधे, जैसे Alsophila spinulosa और Alsophila gigantea पाए जाते हैं, जो करोड़ों साल पुराने हैं और शाकाहारी डायनासोरों का भोजन हुआ करते थे। इन पौधों को वृक्ष बनने में हजारों साल लगते हैं। पास ही एक मनोरम झरना भी है, जो जंगल की शान बढ़ाता है।
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Bailadila Forest : यहां मिलता है 65% से अधिक शुद्ध अयस्क
बैलाडीला की पहाड़ियां लौह अयस्क की समृद्धि के लिए जानी जाती हैं। ये पहाड़ समुद्र तल से 4,183 फीट की ऊँचाई पर हैं। केंद्र सरकार की लौह अयस्क परियोजना ने बैलाडीला को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध किया है, क्योंकि यहां का लौह अयस्क 65% से अधिक शुद्ध है।
इसका खनन किरंदुल और बचेली में होता है और इसे ट्रेनों के जरिए विशाखापट्टनम भेजा जाता है। बैलाडीला की पहाड़ियों में आकाश नगर भी है, जो किरंदुल से 20 किलोमीटर दूर ऊंची चढ़ाई पर बसा है।
यहां की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 2,000 फीट है, जिसके कारण बादल नीचे दिखाई देते हैं और बारिश व गर्मी के मौसम में इसका नजारा बेहद आकर्षक होता है।
बैलाडीला की 14 पहाड़ियों में प्राचीन मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। राजा बंगला क्षेत्र में भगवान बुद्ध की प्रतिमा मिली थी, वहीं बरहाडोंगरी की पहाड़ी पर लगभग एक हजार साल पुरानी गणेश मूर्ति, जिसे ढोलकल कहा जाता है, वह भी यही है।