नई दिल्ली। इंडिया ब्लॉक की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी के सलवा जुडूम के फैसले पर गृहमंत्री अमित शाह की आलोचना का समर्थन 56 रिटायर्ड जजों ने किया है। लेकिन अब इन्हीं 56 रिटायर्ड जजों में से दो का कहना है कि अमित शाह के लिए समर्थन वाले बयान पर उनके दस्तख्त ही नहीं हैं। आपको बता दें कि इससे पहले 18 अन्य पूर्व जज अमित शाह के बयान की आलोचना करते हुए बी सुदर्शन रेड्डी के समर्थन की अपील जारी कर चुके हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन ने इसकी पुष्टि करते हुए पोस्ट किया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समर्थन में 56 रिटायर्ड जजों द्वारा कथित तौर पर हस्ताक्षरित एक बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। जस्टिस एस. रवींद्रन, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज, जिन्होंने कहा कि उनकी सहमति के बिना उनका नाम इस बयान में शामिल किया गया।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुरेश कैथ ने भी दिल्ली में जस्टिस एस. मुरलीधर की पुस्तक लॉन्च के दौरान बताया कि उन्होंने किसी भी बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए और उन्हें नहीं पता कि उनका नाम इस सूची में कैसे आया। इस घटना ने कथित बयान की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए हैं और इसे लेकर चर्चा तेज हो गई है।
क्या है मामला
26 अगस्त को 56 सेवानिवृत्त जजों के एक समूह ने 18 अन्य पूर्व जजों के संयुक्त बयान का जवाब दिया, जिन्होंने विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी का केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की आलोचना के खिलाफ बचाव किया था। इन 56 जजों ने कहा कि ऐसे बयान “न्यायिक स्वतंत्रता की आड़ में राजनीतिक पक्षपात को छिपाने की कोशिश” हैं।
उनका कहना था, “यह एक बार-बार दोहराया जाने वाला तरीका बन गया है, जहां हर बड़े राजनीतिक घटनाक्रम पर एक ही पक्ष से बयान आते हैं। ये बयान न्यायिक स्वतंत्रता के नाम पर राजनीतिक पक्षधरता को छिपाने की कोशिश करते हैं। इससे उस संस्थान को नुकसान पहुंचता है, जिसकी हमने कभी सेवा की, क्योंकि यह जजों को राजनीतिक हस्तियों के रूप में पेश करता है। इससे न्यायिक पद की गरिमा, निष्पक्षता और सम्मान कम होता है।” इस समूह में पांच पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज भी शामिल थे।
उन्होंने आगे कहा, “हमारे एक पूर्व सहयोगी जज ने स्वेच्छा से उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस तरह वह विपक्ष के समर्थन से राजनीतिक क्षेत्र में उतर चुके हैं। इस फैसले के बाद उन्हें अन्य उम्मीदवारों की तरह राजनीतिक बहस में अपनी स्थिति का बचाव करना चाहिए। इसे दूसरी तरह पेश करना लोकतांत्रिक चर्चा को दबाने और न्यायिक स्वतंत्रता की आड़ में राजनीतिक सुविधा के लिए इसका दुरुपयोग करने जैसा है।”
इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (जो अब राज्यसभा के मनोनीत सदस्य हैं), पी. सथासिवम, और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके सिकरी और एमआर शाह शामिल हैं। उन्होंने अपने पूर्व सहयोगी जजों से अपील की कि वे राजनीतिक मकसद वाले बयानों में अपना नाम न दें। उन्होंने कहा, “जिन्होंने राजनीति का रास्ता चुना है, उन्हें उसी क्षेत्र में अपनी बात रखनी चाहिए। न्यायपालिका को ऐसे विवादों से अलग और ऊपर रखा जाना चाहिए।”
इससे पहले, सोमवार को 18 सेवानिवृत्त जजों के एक समूह ने अमित शाह के सुप्रीम कोर्ट के सलवा जुडूम फैसले पर की गई टिप्पणियों के खिलाफ बयान जारी किया था। उनका कहना था कि ऐसी “गलत व्याख्या” से सुप्रीम कोर्ट के जजों पर दबाव पड़ेगा और यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करेगा। यह फैसला जुलाई 2011 में जस्टिस रेड्डी और जस्टिस एसएस निज्जर ने लिखा था।
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