हाल ही में संपन्न संसद के मानसून सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के टकराव के चलते लोकसभा में सिर्फ 31 फीसदी और राज्यसभा में 39 फीसदी काम ही हो सका। इस सत्र के लिए 120 घंटे तय थे, लेकिन लोकसभा में 37 घंटे और राज्यसभा में 41 घंटे ही काम हो सका।
लेकिन संसद सिर्फ आंकड़ों से नहीं, बल्कि समन्वय और सहमति से चलती है, जिसका घनघोर अभाव इस सत्र में नजर आया है। सदन के भीतर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच दूरियां कितनी बढ़ गई हैं, जिसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विगत 11 सालों से सत्ता में काबिज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सत्र के आखिरी दिन लोकसभा में जैसे विरोध का सामना करना पड़ा, वह अप्रिय होने के साथ ही अभूतपूर्व है!
प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को लेकर की गई नारेबाजी को यहां दोहराने की जरूरत नहीं है, लेकिन इससे संसद की स्थिति का पता चलता है। इस संसद की शुरुआत जिस तरह दूसरे दिन ही उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से हुई।
धनखड़ ने अपने इस्तीफे की वजह बीमारी बताई थी, लेकिन इस पर सरकार की ओर से आई ठंडी प्रतिक्रिया ने अनेक संदेहों को जन्म दिया है। इससे समझा जा सकता है कि उच्च स्तर पर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। इस पर हम पहले भी लिख चुके हैं, अभी इसका जिक्र इसलिए ताकि पूरे सत्र के कामकाज को समग्रता में देखा जा सके।
सरकार ने पहलगाम हमले के बाद चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर और भारत पाकिस्तान के बीच अचानक हुए संघर्ष विराम पर चर्चा तो करवाई, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस दावे पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला कि संघर्ष विराम उनकी पहल से हुआ। यह बताने की जरूरत नहीं है कि हाल ही में ट्रंप ने अपना दावा फिर दोहराया है।
दूसरी ओर संसदीय परंपरा को दरकिनार कर प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यसभा में इस पर हुई चर्चा का जवाब देना तक जरूरी नहीं समझा! अच्छा तो यह होता कि डोनाल्ड ट्रंप के दावों और उनकी धमकियों का सदन के भीतर से ही पुरजोर तरीके से जवाब दिया जाता। आखिर सरकार ने देश से जुड़े इतने अहम मुद्दे पर विपक्ष को भरोसे में लेना क्यों नहीं जरूरी समझा?
विपक्ष लगातार बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर सवाल उठा रहा है, लेकिन सरकार इस पर चर्चा से भागती नजर आई, जिससे उसकी मंशा पर संदेह होता है। सरकार ने यह कहते हुए अपना बचाव किया कि यह मामला अभी अदालत में है।
इस सत्र के समापन से ऐन पहले गृह मंत्री अमित शाह ने जिन परिस्थितियों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को 30 दिनों की सजा पर से हटाने से संबंधित जो विधेयक पेश किया है, उसमें दबाव की रणनीति ही नजर आती है। अभी इस बिल को जेपीसी को भेज दिया गया है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिन बाद ही बिहार के गया से विपक्ष को निशाना बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया।
यही नहीं, प्रधानमंत्री ने परोक्ष रूप से एसआईआर का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए कहा कि घुसपैठियों ने बिहार के सीमावर्ती जिलों की डेमोग्राफी को तेजी से बदलना शुरू कर दिया है ; ऐसे में, यह सवाल तो उठता ही है कि वह सदन के भीतर ऐसे सवालों से क्यों बचते हैं?
यह भी देखें: मानसूत्र सत्र में सिर्फ 37 घंटे काम, लोकसभा में 12 और राज्यसभा में 14 विधेयक पारित