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लेंस रिपोर्ट

ट्रंप टैरिफ की मार: संकट में कपास किसान और कपड़ा उद्योग

अरुण पांडेय
Last updated: August 23, 2025 9:34 pm
अरुण पांडेय
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Textile Industry
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नई दिल्‍ली। कपास पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क हटाने के सरकार के फैसले को किसान संगठन किसानों के हित में नहीं मान रहे हैं। किसान संगठनों ने इसका तीखा विरोध शुरू कर दिया है। अखिल भारतीय किसान सभा ने विरोध में संयुक्‍त बयान जारी कर दिया है। वहीं महाराष्‍ट्र के स्वाभिमानी शेतकरी संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आयात शुल्क हटाने के फैसले को वापस लेने की मांग की है।

खबर में खास
कैसे प्रभावित हो रहा कपास उद्योग?क्‍या कहते हैं जानकारभारत के पास क्‍या हैं विकल्‍प

इस बीच भारत का कपास और वस्त्र उद्योग गहरे संकट में है। इसकी वजह अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ को माना जा रहा है, जिसने भारतीय कपास निर्यात को महंगा कर दिया है। इससे भारतीय कपड़ा अमेरिकी बाजार में बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी हो गया है। नतीजतन, निर्यातक, किसान और इस उद्योग से जुड़े 4.5 करोड़ लोगों की आजीविका खतरे में है।

अमेरिका ने ये टैरिफ इसलिए लगाया क्योंकि भारत रूस से तेल खरीद रहा है और ट्रेड बैलेंस को लेकर विवाद है। अब ये टैरिफ भारतीय सामानों पर 50% तक पहुंच गया है, जो पहले 0-13% था। इससे भारत का कपास उद्योग, जो दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक है, इसकी चपेट में है।

कैसे प्रभावित हो रहा कपास उद्योग?

भारत अमेरिका को हर साल 10 बिलियन डॉलर से ज्यादा के टेक्सटाइल एक्सपोर्ट करता है, जिसमें कपास से बने कपड़े, यार्न और गारमेंट्स शामिल हैं। ये टैरिफ भारतीय प्रोडक्ट्स को अमेरिकी बाजार में महंगा कर देगा, जिससे खरीदार कम हो जाएंगे। नतीजा? एक्सपोर्ट घटेगा, फैक्टरियां बंद होंगी और कीमतें गिरेंगी।

हाल ही में भारत ने खुद कपास पर इंपोर्ट ड्यूटी हटा दी, जिससे घरेलू कीमतें 1100 रुपये प्रति कैंडी गिर गईं। रूरल वॉयस की रिपोर्ट कहती है कि ये ड्यूटी हटाने से स्टॉकिस्ट्स को नुकसान हुआ और नई फसल की कीमतें भी प्रभावित होंगी। उद्योग पहले से ही संकट में है। कपास उत्पादन 39 मिलियन बेल्स से घटकर 30 मिलियन बेल्स हो गया है और भारत अब नेट इंपोर्टर बन गया है।

भारत के तमिलनाडु, महाराष्ट्र और पंजाब के किसान कपास पैदा करते हैं। ये राज्य कुल कपास उत्पादन का बड़ा हिस्सा देते हैं – तमिलनाडु में टेक्सटाइल हब तिरुपुर है, महाराष्ट्र में नागपुर और पंजाब में भी काफी खेती होती है। इस टैरिफ से क्या असर होगा? सबसे पहले, एक्सपोर्ट कम होने से घरेलू बाजार में कपास की डिमांड घटेगी, कीमतें गिरेंगी। किसानों को कम दाम मिलेंगे, जो पहले से ही महंगी खाद, बीज और पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में तमिलनाडु के टेक्सटाइल बेल्ट के लोग कहते हैं कि ऑर्डर घट रहे हैं, फैक्टरियां बंद हो रही हैं। महाराष्ट्र के किसानों को कपास बेचने में मुश्किल आ रही है,  क्योंकि CCI यानी कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने कीमतें कम कर दीं। पंजाब में भी, जहां कपास की फसल मौसम पर निर्भर है, किसान कर्ज में डूब सकते हैं।

मार ये पड़ेगी कि आय घटेगी, खेती छोड़ने वाले बढ़ेंगे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। वहीं डीडब्ल्यू की रिपोर्ट कहती है कि लेबर-इंटेंसिव टेक्सटाइल इंडस्ट्री सबसे ज्यादा हिट होगी और इससे लाखों किसान प्रभावित होंगे।

रोजगार पर क्या होगा असर?

कपास उद्योग से जुड़े करोड़ों लोग हैं… किसानों से लेकर स्पिनिंग मिल्स, वीविंग, गारमेंट फैक्टरियों तक। भारत का टेक्सटाइल सेक्टर 4.5 करोड़ लोगों को रोजगार देता है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और ग्रामीण मजदूर हैं। अमेरिकी टैरिफ से एक्सपोर्ट 30% तक गिर सकता है, जिससे जॉब लॉस होगा।

फैशन यूनाइटेड की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑर्डर बांग्लादेश और वियतनाम शिफ्ट हो रहे हैं, भारतीय एमएसएमई सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। तिरुपुर में हजारों मजदूर बेरोजगार हो सकते हैं, मुंबई के आसपास की मिल्स बंद हो सकती हैं। ये सिर्फ नौकरी नहीं, परिवारों की जिंदगी है। न्यूयॉर्क टाइम्स कहता है कि ये टैरिफ लाखों लोगों को बेरोजगार कर सकता है।

क्‍या कहते हैं जानकार

देवेंदर शर्मा-कृषि नीति विशेषज्ञ , हरवीर सिंह-संपादक रूरल वॉयस

कृषि नीति विशेषज्ञ देवेंदर शर्मा ने द लेंस को बताया कि इसका सीधा असर किसानों पर होने जा रहा है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। भारत में 98 लाख किसान कपास पैदा करते हैं, बड़ा संकट उनके सामने है न कि उद्योगों के सामने। ऐसा हमने देखा है कि जब उद्योगों पर संकट आता है तो उनके कर्ज माफ कर दिए जाते हैं।

रूरल वॉयस के संपादक हरवीर सिंह द लेंस से कहते हैं कि इससे किसानों को सीधे तौर पर फर्क नहीं पड़ेगा। क्‍योंकि भारत अमेरिका से कपास मंगाता और गारमेंट भेजता है। कपास की कीमतें गिरेंगी तो यह सरकार को तय करना है किसानों को नुकसान की भरपाई कैसे की जाए।

भारत के पास क्‍या हैं विकल्‍प

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा बाजार है…. 20% से ज्यादा एक्सपोर्ट वहां जाता है। नए बाजार जैसे यूरोप, यूके, ऑस्ट्रेलिया, जापान तलाशने पड़ेंगे। लेकिन मुश्किल ये है कि वहां भी कॉम्पिटिशन ज्यादा है…. चीन, वियतनाम पहले से मजबूत हैं। एफटीए (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) जैसे इंडिया-यूके एफटीए से फायदा हो सकता है, जो 99% एक्सपोर्ट को ड्यूटी-फ्री बनाता है।

लेकिन इसमें समय लगेगा….  सप्लाई चेन बदलनी पड़ेगी, क्वालिटी स्टैंडर्ड मैच करने होंगे। रॉयटर्स कहता है कि कुछ एक्सपोर्टर्स प्रोडक्शन विदेश शिफ्ट कर रहे हैं, जो ‘मेक इन इंडिया’ को चोट पहुंचाएगा। मुश्किल बड़ी है, लेकिन अवसर भी…. अफ्रीका, मिडल ईस्ट में भारत नए बाजार की खोज कर सकता है।

भारत सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए क्या कर रही है? सरकार ने तुरंत रिएक्ट किया – 19 अगस्त से 30 सितंबर तक कपास पर 11% इंपोर्ट ड्यूटी हटा दी। ये अमेरिका को सिग्नल है कि हम ट्रेड टेंशन कम करना चाहते हैं और गारमेंट इंडस्ट्री को राहत दे रहे हैं। फाइनेंस मिनिस्ट्री का ऑर्डर कहता है कि इससे कीमतें स्थिर होंगी, इंपोर्ट बढ़ेगा…खासकर अमेरिका से। इसके अलावा, पीएम मोदी ने डोमेस्टिक प्रोड्यूसर्स को प्रोटेक्ट करने का वादा किया है। एक्सपोर्ट प्रमोशन स्कीम्स बढ़ाई जा रही हैं और ट्रेड नेगोशिएशंस जारी है। । लेकिन बड़ा सवाल….क्या ये काफी है?

और आखिरी सवाल.. अमेरिका को भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान अन्य देश भी कपास निर्यात करते हैं। तो क्या अमेरिका अब भारत को छोड़कर इन देशों पर निर्भर हो जाएगा? तो हां, ये खतरा है। अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया, लेकिन बांग्लादेश पर 20  और पाकिस्तान पर 19 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। यह साउथ एशिया के किसी भी देश पर सबसे कम टैरिफ है।

एक रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान को 750 मिलियन डॉलर का टेक्सटाइल एक्सपोर्ट अवसर मिल सकता है। बांग्लादेश पहले से जीएसपी स्कीम के तहत फायदा उठाता है। व्‍यापार संघ के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि एक्सपोर्टर्स से ऑर्डर शिफ्ट हो रहे हैं। लेकिन अमेरिका पूरी तरह निर्भर नहीं होगा – भारत की क्वालिटी और वॉल्यूम बड़ा है। फिर भी शिफ्टिंग शुरू हो गई है, जैसे वियतनाम और चीन से।

TAGGED:Big_NewsCotton FarmersCotton IndustryIndia US TradeIndian EconomyTextile CrisisTextile ExportsUSA Tariff
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