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लेंस संपादकीय

चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है, माई-बाप नहीं

Editorial Board
Editorial Board
Published: August 18, 2025 8:12 PM
Last updated: August 18, 2025 8:12 PM
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Gyanesh Kumar
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लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और अन्य विपक्षी दलों के मतदाता सूची में गड़बड़ियों के गंभीर आरोपों पर पिछले कुछ हफ्तों से ‘सूत्रों’ के हवाले से अखबारों और मीडिया में अपनी बातें कहने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने रविवार को अपने सहयोगी चुनाव आयुक्तों के साथ खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जिस अंदाज में राहुल गांधी को हफ्ते भर के भीतर देश से माफी मांगने की चुनौती दी है, वह चुनाव आयोग की गरिमा के अनुकूल नहीं है। अव्वल तो इस प्रेस कॉन्फ्रेंस पर ही सवाल उठता है, क्योंकि यह ठीक उसी दिन की गई जब कांग्रेस और विपक्ष के नेताओं ने बिहार में वोटर अधिकार यात्रा की शुरुआत की। बेशक, राजनीतिक दल चुनाव आयोगों के नियमों से बंधे हुए हैं और उन्हें पंजीयन करवाना होता है, लेकिन ज्ञानेश कुमार शायद यह भूल गए कि संसदीय लोकतंत्र में माई-बाप वाला रवैया स्वीकार नहीं है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसकी जवाबदेही संविधान के प्रति है। वह शायद यह भी भूल गए कि हमारा देश एक बहुदलीय लोकतंत्र है और यदि चुनाव की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठते हैं, तो उसके निराकरण की प्राथमिक जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर आती है। यदि कोई सवा घंटे चली इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों पर ही गौर करे, तो पता चल जाएगा कि संदेह के बादल कितने घने हैं! मगर अफसोस कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने ढेर सारे सवालों का कोई जवाब ही नहीं दिया। मसलन, ज्ञानेश कुमार ने राहुल गांधी के कर्नाटक के बोगस वोटरों के आरोपों पर पूछे गए सवाल पर उनसे एफिडेविट तो मांग लिया, लेकिन भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के आरोपों की ओर ध्यान दिलाने पर उनसे ऐसे एफिडेविट की मांग नहीं की। गौरतलब है कि अनुराग ठाकुर ने भी रायबरेली, वायनाड, डायमंड हार्बर और कन्नौज में मतदाता सूचियों में गड़बड़ी का आरोप लगाया और राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अभिषेक बनर्जी और अखिलेश यादव से लोकसभा से इस्तीफा देने की मांग की थी। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर हलफनामा दे रखा है, लेकिन आयोग ने उनकी जांच करवाना जरूरी नहीं समझा है। ज्ञानेश कुमार ने पोलिंग स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज से संबंधित नियम बदले जाने को लेकर पूछे गए सवाल पर कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाय जिस लहजे में जवाब दिया, वह उनके पद की मर्यादा के अनुकूल नहीं है। विपक्ष के आरोपों की जांच करवाने या विपक्ष के नेताओं के साथ बैठक कर उनके संदेहों को दूर करने के बजाए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये हमलावर होने का जो तरीका अपनाया है, दरअसल उससे मंशा पर सवाल उठते हैं। याद दिलाया जा सकता है कि 2002 में गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर तत्कालीन चुनाव आयुक्त जे एम लिंगदोह पर जब तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सभाओं में व्यक्तिगत आरोप लगा रहे थे, तब लिंगदोह ने उसे किस तरह नजरंदाज कर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों का निर्वहन किया था। जहां तक बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की बात है, तो सुप्रीम कोर्ट के कहने के बाद ही चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के मसौदे में छूट गए 65 लाख लोगों का नाम सार्वजनिक किया है। और हैरत यह भी है कि चुनाव आयोग यह नहीं बता सका है कि आखिर उसने इस पूरी कवायद में कितने नए नाम जोड़े। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने दावा किया है कि आयोग के लिए सारे राजनीतिक दल बराबर हैं, लेकिन विपक्षी दलों के आरोपों पर उनके जवाब इस बात की तस्दीक नहीं करते। यह सचमुच बेहद अफसोस की बात है कि संभवतः पहली बार खबरिया चैनलों की डिबेट में इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को ‘मूर्खतापूर्ण’ कदम तक करार दिया गया। इधर यह चर्चा भी है कि विपक्ष अब शायद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग लाने पर विचार कर रहा है; यदि ऐसा होता है, तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है।

TAGGED:EditorialElection CommissionGyanesh Kumar
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