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सरोकार

इस तिरंगे को फहराने के जुर्म में मेरे दादा दादी ने महीनों जेल में यातनाएं सहन की

विश्वजीत मुखर्जी
Last updated: August 15, 2025 3:18 pm
विश्वजीत मुखर्जी
Byविश्वजीत मुखर्जी
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Lambodar Mukharjee
डॉक्टर लंबोदर मुखर्जी और उनकी पत्नी उषारानी मुखर्जी
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घर की छत पर तिरंगा फहराने के लिए आज जब 450 रुपए में झंडा खरीदा, तब उस दुकान पर किसी को कहते सुना, ‘इतना महंगा तिरंगा, एक ही दिन की तो बात है।’

अब किस-किस को बताऊं कि महज इस तिरंगे को फहराने के जुर्म में मेरे दादा दादी ने महीनों जेल की यातनाएं सहन की है।

भारत सरकार द्वारा प्रकाशित स्वाधीनता संग्राम के शहीदों की डिक्शनरी की पेज नंबर 227 और 228 में यह साफ पढ़ा जा सकता है कि 7 सितंबर 1942 को तब के डेप्युटी कमिश्नर ने चीफ़ सेक्रेटरी को पत्र लिखकर सूचित किया था कि अगस्त 1942 में ही लंबोदर मुखर्जी की मौत जेल में हो गई थी।

अगर इस तथ्य को माना जाए तो सवाल यह उठता है कि आजादी के बाद डॉक्टर लंबोदर मुखर्जी के नाम से मोतिहारी में कौन रह रहा था जो स्वतंत्रता सेनानी पेंशन उनके नाम से लेकर आजीवन गरीबों में बांटता रहा।

लंबोदर मुखर्जी के स्वतंत्रता सेनानी पेंशन सर्टिफिकेट और भारत सरकार के प्रकाशित शहीदों की डिक्शनरी के वह पन्ने हैं, जिसमें लंबोदर मुखर्जी का नाम दर्ज है।

अब इसके पीछे की सच्ची कहानी जानिए। साल 1930 के दशक में लंबोदर मुखर्जी संथाल परगना में अपनी गतिविधियों के कारण एक ऊंचे कद के स्वतंत्रता सेनानी बन चुके थे। ब्रिटिश सीआईडी के निशाने पर पहला नाम मारंग बाबा का था। संथाली उन्हें इसी नाम से पुकारते थे। इसी दशक में उन्हें दो बार जेल की सज़ा भी काटनी पड़ी। संथाल परगना में पहले हिंदू मिशन ने लंबोदर मुखर्जी की मदद से ईसाई मिशनरियों द्वारा स्थानीय लोगों के धर्म परिवर्तन किए जाने पर रोक लगाई। फिर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी मारंग बाबा की सहायता से संथाल परगना में कांग्रेस की पकड़ मजबूत की। और 1930 के दशक के अंत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी संथाल परगना में फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना हेतु लंबोदर मुखर्जी और उनकी पत्नी उषारानी मुखर्जी का ही सहयोग लिया। इसके बाद मुखर्जी दंपति को संथाल परगना से गिरफ़्तार कर लिया गया। एक ओर जहां संथाल परगना में फॉरवर्ड ब्लॉक की प्रथम महिला अध्यक्ष उषारानी मुखर्जी को भागलपुर जेल भेजा गया। वहीं दूसरी ओर लंबोदर मुखर्जी को संथाल परगना के किसी भी जेल में रखना अंग्रेज़ों के लिए बहुत भारी पड़ रहा था। उन्हें नज़रबंद कर मोतिहारी भेज दिया गया। मगर नज़र बंद होते हुए भी लंबोदर मुखर्जी की क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रही। मोतिहारी से ही भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी भूमिका और आगे की योजनाएं बनाते रहे। साल 1941 के अंत और 1942 की शुरुआत में नज़रबंद होते हुए उन्होंने संथाल परगना में भी अपनी पकड़ बनाए रखी। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने लंबोदर मुखर्जी को देखते ही गोली मार देने का आदेश जारी किया था। भारत छोड़ो आंदोलन के ठीक पहले मोतिहारी से लंबोदर मुखर्जी को एक बार फिर गिरफ़्तार कर लिया गया। उन्हें पटना कैंप जेल भेज दिया गया। गौरतलब है कि नज़रबंदी के दौरान मोतिहारी और समूचे उत्तर बिहार में भी लंबोदर मुखर्जी अपने कारनामों की वजह से सुप्रसिद्ध हो चुके थे। इनके गिरफ़्तारी की ख़बर आग की तरह फैलने लगी। बिहार के कुछ स्वतंत्रता सेनानियों पर देखते ही गोली मार देने का आदेश था, जिन में सबसे पहला नाम था लंबोदर मुखर्जी का। अगर लंबोदर मुखर्जी को उस वक्त ब्रिटिश पुलिस मार देती तो हालात और बेकाबू हो जाते। अगस्त क्रांति आंदोलन शुरू हो चुका था। मगर बिहार कि ब्रिटिश पुलिस को यह आदेश था कि लंबोदर मुखर्जी को देखते ही गोली मार देना।

कुछ ही दिनों के अंदर आनन-फानन में बिना किसी को बताए एक रात लंबोदर मुखर्जी को पटना कैंप जेल से हजारीबाग जेल भेज दिया गया। और डेप्युटी कमिश्नर ने ऊपर यह लिख कर दे दिया कि लंबोदर मुखर्जी जेल में ही मर गए।

दरअसल एक तथ्य यह भी है कि उस वक्त बिहार में दस्तावेजी जांच बहुत कम हुआ करता था। यही कारण रहा होगा कि लंबोदर मुखर्जी पटना से हजारीबाग पहुंच गए और उन्हें डिप्टी कमिश्नर ने मृत घोषित कर दिया। 1945 में जेल से रिहा होने के बाद लंबोदर मुखर्जी अंतरिम सरकार के गठन की योजनाओं में अहम भूमिका निभाने लगे। आगे चलकर वे अंतरिम सरकार में दुमका विधानसभा से निर्विरोध विधायक हुए।

एक तथ्य यह भी है कि आज़ादी के पहले देश के तमाम जेलों में चोरी और लूटपाट के अपराध की सज़ा काट रहे कई कैदी भी आज़ादी के बाद जेल से रिहा होकर खुद को स्वतंत्रता सेनानी कहने लगे।

बहरहाल आज से 76 साल पहले जब भारत आज़ादी का जश्न मना रहा था उस दिन देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानी की पत्नीयों ने पहली बार अपना श्रृंगार किया था। मेरे दादाजी की शादी साल 1935 में हुई थी मगर दादी ने 15 अगस्त 1947 को पहली बार खुद को सजाया। आज ही के दिन दादाजी ने अपने हाथों दादी को कंगन पहनाए थें।

जय हिन्द!

यह भी पढ़ें : क्रांतिकारी डॉक्टर मारंग बाबा, जिसने हथकड़ी में किया फिरंगी दारोगा के बेटे का इलाज

TAGGED:Lambodar MukharjeeLatest_NewsTiranga
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