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लेंस संपादकीय

एक कवि-पत्रकार का पुरस्कार ठुकराना!

Editorial Board
Last updated: August 12, 2025 8:12 pm
Editorial Board
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Dinkar Award
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वरिष्ठ पत्रकार और कवि विमल कुमार ने बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा दिया जाने वाला पुरस्कार ठुकराते हुए अपने इस फैसले को एक पत्रकार के रूप में अपनी नैतिक जिम्मेदारी से जोड़ा है। फेसबुक पर अपनी पोस्ट में उन्होंने खुद ही इसकी जानकारी दी है और लिखा है कि वह एक पत्रकार के रूप में एक समाचार एजेंसी की ओर से दिल्ली से बिहार सरकार और पार्टी को कवर करते रहे हैं, इस नाते नैतिक रूप से यह उचित नहीं होगा कि वह यह पुरस्कार ग्रहण करें। मौजूदा समय में एक पत्रकार-कवि का नैतिकता के आधार पर उठाया गया इस तरह का यह एक विरल कदम है। वैसे बिहार सहित विभिन्न राज्य सरकारें इस तरह के पुरस्कार देती हैं और उनकी अपनी प्रतिष्ठा भी है। मसलन, विमल कुमार के साथ ही बिहार के राजभाषा विभाग ने वरिष्ठ आलोचक- उपन्यासकार विश्वनाथ त्रिपाठी और वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे को भी पुरस्कृत करने की घोषणा की है। दूसरी ओर हमने देखा है कि किस तरह से पत्रकार-कवि सत्ता के करीब जाना चाहते हैं। इसी दौर में हमने ऐसा भी उदाहरण है, जब एक अखबार के मालिक और संपादक दोनों को एक ही साथ पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया और दोनों की नैतिकता कहीं आड़े नहीं आई! वहीं 2016 में दिवंगत किसान नेता शरद जोशी, दिवंगत गांधीवादी नारायण देसाई के परिजनों, जाने-माने तमिल लेखक बी जयमोहन और पत्रकार वीरेंद्र कपूर ने पद्म पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। वास्तविकता यह भी है कि खुद शरद जोशी ने 1992 में यह पुरस्कार ठुकरा दिया था। इसी तरह महात्मा गांधी के करीबी महादेव देसाई के बेटे नारायण गांधी के परिजनों ने कहा था कि यदि वह जीवित भी होते तो पुरस्कार न लेते। जबकि तमिल लेखक जयमोहन ने उसे मौजूदा सत्ता की विचारधारा से खुद को अलग दिखाते हुए कहा था कि इस अलंकरण को स्वीकार करने से उन्हें हिन्दुत्व समर्थक माना जा सकता है! जहां तक वीरेंद्र कपूर की बात है, तो उन्होंने यह कहते हुए इसे इनकार किया कि उन्होंने कभी किसी सरकार से कोई पुरस्कार नहीं लिया। मेनस्ट्रीम जैसी पत्रिका के संस्थापक संपादक देश के वरिष्ठ पत्रकार स्व.निखिल चक्रवर्ती का उदाहरण कोई कैसे भूल सकता है। दरअसल पुरस्कार से जुड़ी नैतिकता और पुरस्कार के जरिये किसी के काम की व्यापक स्वीकार्यता दोनों में फर्क है। और जहां तक पत्रकारिता की बात है, तो यह कहा जाता है, और जैसा कि विमल कुमार ने भी कहा है कि लेखक और पत्रकार को हमेशा विपक्ष में रहना चाहिए और किसी भी तरह की सत्ता से दूर रहना चाहिए चाहे कोई सरकार हो। लेकिन आज के दौर में हम देख सकते हैं कि पत्रकारिता अपने इस मूलधर्म से पीछे हटती जा रही है, बल्कि पत्रकारों में तो सत्ता के करीब जाने की होड़ मची है। उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जब मुख्यमंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से पत्रकारों को याद दिलाया कि कैसे उन्होंने उन्हें उपकृत किया। वास्तव में विमल कुमार का यह कदम नए पत्रकारों और कवियों के लिए सीख है।

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