रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक दिलचस्प मामला सामने आया है। मामला बिना रजिस्ट्रेशन के डॉक्टर की नौकरी से जुड़ा हुआ है। इस दिलचस्प मामले में सबसे अहम बात यह है कि 12वीं पास एक शख्स डॉक्टर की नौकरी पा लेता है। नौकरी करने के दौरान उसके दस्तावेजों का वेरीफिकेशन भी कभी नहीं होता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ रहने के दौरान दो साल पहले एक आयुष्मान घोटाले में उसका नाम आता है, लेकिन उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं होता। उसे वीवीआईपी ड्यूटी में भी तैनात कर दिया जाता है। विभागीय नियमों के तहत उससे जब एमबीबीएस की मार्कशीट और डिग्री मांगी जाती है, तो वह उसे उपलब्ध नहीं कराता और नौकरी करता रहता है। इस बीच हाईकोर्ट को गलत जानकारी देकर तीन महीने का समय भी ले लाता है। करीब 5 साल तक विभाग को इन कारनामों की भनक भी नहीं लगती। जब विभाग को इसकी भनक लगती है, तब भी वह नौकरी करता रहता है। इसके बाद किसी तरह जब उसका कारनामा उजागर होता है तो भी वह करीब 2 साल तक नौकरी करता रहता है। इसके बाद विभाग की तरफ से बार-बार दस्तावेज की मांग करने के बाद जब वह दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराता तो उसे इसी आधार पर बर्खास्त कर दिया जाता है। बर्खास्तगी के साथ उसे एक महीने का वेतन भी दिया जाता है।

उस कथित डॉक्टर का नाम राहुल अग्रवाल है, जिसकी बिना दस्तावेज नौकरी भी लग जाती है। और अब विभाग जिसने करीब साढ़े 7 साल तक एक ऐसे कथित डॉक्टर को मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी जोे डॉक्टर था ही नहीं, को बर्खास्त कर अपनी गलती सुधारने की कोशिश करता है। लेकिन, यहां भी विभाग ने करीब साढ़े 7 सालों तक गलत तरीके से लिए गए वेतन की वसूली की बजाए उसे बर्खास्तगी के साथ एक महीने का वेतन देने का कारनामा कर दिया।
छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद पहली बार किसी तथाकथित चिकित्सा अधिकारी की बर्खास्तगी की गई, वह भी इसलिए कि नौकरी लगने के साढ़े 7 साल बाद पता चलता है कि उसके पास डिग्री रजिस्ट्रेशन ही नहीं है।
thelens.in ने इस पूरे मामले की पड़ताल की, जिसमें इस फर्जीवाड़े में विभागीय संलिप्तता भी सामने आई है। पड़ताल के अनुसार बिना डिग्री और मार्कशीट के नौकरी करने वाले कथित डॉक्टर ने इन साढ़े सात सालों में एनएचएम में संविदा के तौर पर काम किया है। हाल ही में वह शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोखोपारा में संविदा चिकित्सा अधिकारी के तौर पर पदस्थ था। 4 अगस्त को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आयुक्त की तरफ से सेवा समाप्ति का आदेश जारी किया गया है। विभाग ने उस कथित डॉक्टर पर यह आरोप लगाया है कि उसने एमबीबीएस की अंकसूची और डिग्री की सेल्फ अटेस्टेड फोटोकॉपी उपलब्ध नहीं कराई।
इस पूरे मामले में विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आई है। विभाग की तरफ से ही बर्खास्तगी की कार्रवाई ने विभाग पर ही कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहला सवाल यह कि आखिरकार राहुल अग्रवाल की संविदा नौकरी लगने के दौरान उनके किसी भी दस्तावेजों की जांच क्यों नहीं की गई? दूसरा सवाल कि बगैर डॉक्यूमेंट वेरीफिकेशन के ही राहुल अग्रवाल को किस आधार पर नौकरी में रख लिया गया? तीसरा और सबसे अहम सवाल यह है कि जब 2018 में राहुल अग्रवाल को संविदा चिकित्सा अधिकारी के तौर पर पदस्थ किया गया, तो तात्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) ने 15 दिनों के भीतर दस्तावेज जमा करने और उनकी जांच करने की प्रक्रिया पूरी क्यों नहीं की और बिना डिग्री किसी भी शख्स को बतौर डॉक्टर कैसे पदस्थ कर दिया गया?
इन सवालों के इतर सबसे हैरान करने वाला सवाल यह है कि साढ़े 7 साल तक फर्जी तरीके से डॉक्टर की नौकरी करने वाले शख्स को बर्खास्त करने के बाद विभाग ने उन्हें एक महीने की सैलरी क्यों दी? जबकि विभाग को पिछले साढ़े 7 सालों में राहुल अग्रवाल को दिए गए वेतन की वसूली की जानी थी। ऐसे में दिए गए वेतन की वसूली के बजाए उन्हें एक महीने का वेतन देना बड़ा सवाल खड़े कर रहा है। इन साढ़े 7 सालों में करीब एक करोड़ रुपए से अधिक वेतन और भत्ते का भुगतान राहुल अग्रवाल को किया गया। इसके अलावा उनकी डिमांड से लाखों की खरीदी की गई है। इतना ही नहीं कथित डॉक्टर को वीवीआईपी ड्यूटी में भी पदस्थ किया जाता रहा है।
बिना रजिस्ट्रेशन के सरकारी नौकरी में कार्यरत कथित डॉक्टरों की रिपोर्ट सामने आने के बाद जांच की गई। जांच में पाया गया कि राहुल अग्रवाल ने फरवरी 2025 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट को गलत जानकारी देकर तीन महीने का समय लिया था, जबकि उनके पास उस वक्त कोई वैध दस्तावेज नहीं थे। इस पर भी विभाग की तरफ से किसी तरह की आपराधिक जांच नहीं कराई गई।
इतना ही नहीं 2023 में खोखो पारा में आयुष्मान योजना घोटाले में राहुल की संलिप्तता की जांच में दोष सिद्ध हुआ था, फिर भी कार्रवाई नहीं की गई।
इस सवालों का जवाब जानने जब एनएचएम की आयुक्त और निदेशक डॉ. प्रियंका शुक्ला और रायपुर सीएमएचओ डॉ. मिथिलेश चौधरी से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। सुशासन की बात करने वाली सरकार की सेहत का जिम्मा उठाने वाले विभाग के जिम्मेदार अफसरों से इस सवाल का जवाब मिलते ही रिपोर्ट में जरूर अपडेट किया जाएगा।