राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 75 साल का होने पर रिटायरमेंट की नसीहत देने के बाद अब महंगी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा उठाया है, और कहा है कि समाज में सबसे ज्यादा जरूरत शिक्षा और स्वास्थ्य की है, लेकिन दुर्भाग्य से ये दोनों सुविधाएं न तो सस्ती हैं और न ही सहज सुलभ। यों तो यह मौका इंदौर में एक कैंसर अस्पताल के उद्घाटन का था, लेकिन भागवत ने जो कहा है, उसके निहितार्थ को समझना जरूरी है। उनकी टिप्पणी इसलिए भी अहम है, क्योंकि पिछले 11 साल से आरएसएस की राजनीतिक शाखा भाजपा की अगुआई वाले एनडीए की सरकार है और उसकी कमान संघ के एक पूर्व स्वयं सेवक के हाथों में है। यदि सस्ती शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं आम लोगों की पहुंच से दूर हो रही है, तो इसका सबसे बड़ा कारण मोदी सरकार की निजीकरण को बढ़ावा देने की नीतियां हैं। बेशक, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण का दखल, 1991 के आर्थिक बदलावों के बाद बढ़ा है, लेकिन पिछले एक दशक में जिस मनमाने तरीके से सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं को कमजोर किया गया है, उसका सर्वाधिक खामियाजा आम आदमी को उठाना पड़ रहा है। खुद भागवत ने कहा है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था अब ट्रिलियन डॉलर का कोराबर बन चुकी है और जब कोई बिजनेस इतना बड़ा हो जाता है, तो वह स्वतः ही सामान्य आदमी से दूर हो जाता है। वास्तव में यही बात स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी लागू होती है और भागवत का यह बयान मोदी सरकार के आय़ुष्मान भारत को लेकर किए जाने वाले भारी-भरकम दावों के एकदम उलट है। दरअसल सवाल यह है कि मोहन भागवत ने सीधे सरकार को संबोधित करते हुए यह बात क्यों नहीं कही, क्योंकि अंततः सस्ती शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना तो सरकार का काम है। यह सवाल इसलिए, क्योंकि मोदी सरकार के सत्ता में आने के एक साल बाद ही 10 जून, 2015 को संघ प्रमुख भागवत की पहल पर दिल्ली के वसंतकुंज स्थित मध्य प्रदेश भवन में संघ के कुछ चुनिंदा पदाधिकारियों के समक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली कैबिनेट के मंत्रियों ने बंद कमरे में बकायदा उपस्थित होकर अपने कामकाज का प्रेजेंटेशन दिया था। इसमें मौजूदा रक्षामंत्री ( तब गृह मंत्री) राजनाथ सिंह सहित दिवंगत सुषमा स्वराज अरुण जेटली और मनोहर परिक्कर जैसे मंत्री शामिल थे। हालांकि उसके बाद कभी सरकार के कामकाज की संघ द्वारा समीक्षा किए जाने की इस तरह की खबरें नहीं आईं, इसके उलट पिछले चुनाव के समय भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने तो यहां तक कह दिया था कि भाजपा अब बड़ी हो गई है, उसे संघ की जरूरत नहीं है! वैसे एक सवाल तो मोहन भागवत से भी पूछा ही जाना चाहिए कि क्या भाजपा की नीतियां अपने पितृसंगठन आरएसएस से अलग हैं?

