छत्तीसगढ़ से एक दिलचस्प मामला सामने आया है, जब 11 साल बाद पता चला कि वन महकमा जिस पौधे को आम समझ कर सींच रहा था वह अमरूद निकला! दरअसल हुआ यूं कि राज्य के राजकीय पशु वनभैंसा की घटती संख्या को लेकर वन महकमे ने उनकी संख्या बढ़ाने के लिए अनूठा प्रयोग किया। इसके लिए उसने हरियाणा के करनाल स्थित एनडीआरआई (नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट) के साथ मिलकर वन भैंसा की क्लोनिंग की पहल की। इसके लिए आशा नाम की एक मादा वनभैंसा के सोमेटिक सेल कल्चर से दिल्ली के बूचड़खाने के एक देसी भैंसा से क्लोनिंग करवाई। इस तरह क्लोनिंग से तैयार बछिया को नाम दिया गया दीप आशा। 2014 में दीप आशा के तैयार होने पर वन महकमे ने अपनी पीठ ठोंकते हुए बड़े जोर-शोर से दावा किया कि दुनिया में पहली बार वन भैंसा की क्लोनिंग करने में कामयाबी मिली है। चार साल बाद दीप आशा को बकायदा राज्य की राजधानी रायपुर के नजदीक स्थित जंगल सफारी में एक खास बाड़े में रखा गया। बिलकुल सरकारी ढर्रे की तरह सब कुछ गोपनीय रखा गया और खास बाड़े में कैद दीप आशा को सिर्फ मंत्रियों और अफसरों को देखने की इजाजत थी। लेकिन दीप आशा ने तब वन महकमे की आशाओं पर पानी फेर दिया जब हाल ही में सीसीएमबी (सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलिक्युलर बॉयोलॉजी) हैदराबाद और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून की रिपोर्ट्स से पता चला कि क्लोनिंग से तैयार जिस दीपआशा को वनभैंसा समझा जा रहा था, दरअसल वह हरियाणा सहित उत्तर भारत में पाई जाने वाली मुर्रा प्रजाति की भैंस है, जिसे ‘काला सोना’ तक कहा जाता है। खोट दीप आशा में नहीं, बल्कि सरकारी अमले की नीयत में है। हैरत नहीं, इसका खुलासा भी कुछ वन्यजीव प्रेमियों की कोशिशों से हो सका है। चिंता की बात यह नहीं है कि एक प्रयास विफल हो गया, ऐसा तो वैज्ञानिक प्रयासों में होता ही है और हर नाकामी कुछ सीख देती है। असल में जिस तरह से इस पूरे मामले को दबाने की कोशिश की गई वह इस दुर्लभ वन्य जीव के प्रति वन महकमे सहित सरकारी अमले की संवेदनहीनता को दिखाता है।

