लेंस डेस्क। भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़( Jagdeep Dhankhar) ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए बीते रात अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। यह खबर संसद के मानसून सत्र के पहले दिन आई जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2027 तक था लेकिन उनके इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। उनके इस्तीफे के पीछे सिर्फ स्वास्थ्य कारण हैं या कुछ और इस पर अटकलें तेज हैं।

एक किसान पुत्र से उपराष्ट्रपति तक का सफर
Jagdeep Dhankhar का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। पेशे से वकील धनखड़ ने 1979 में राजस्थान बार में दाखिला लिया और सुप्रीम कोर्ट व विभिन्न उच्च न्यायालयों में वकालत की। वे राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। उनका राजनीतिक सफर 1980 के दशक में शुरू हुआ। 1989 में जनता दल के टिकट पर वे झुंझुनू से लोकसभा सांसद चुने गए और चंद्रशेखर सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री बने। 1991 में वे कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन अजमेर से लोकसभा चुनाव हार गए। इसके बाद 1993-98 तक वे किशनगढ़ से विधायक रहे।
2003 में धनखड़ ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थामा। 2019 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया जहां उनका तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी सरकार के साथ कई बार टकराव हुआ। 2022 में NDA ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। 6 अगस्त 2022 को हुए चुनाव में उन्होंने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराकर 14वें उपराष्ट्रपति का पद संभाला। इस दौरान वे राज्यसभा के सभापति के रूप में भी कार्यरत रहे लेकिन विपक्ष के साथ उनके रिश्ते तनावपूर्ण रहे।
2024 में धनखड़ के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव
दिसंबर 2024 में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने Jagdeep Dhankhar के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश की जो संख्या बल की कमी के कारण असफल रहा। धनखड़ अपने बयानों और फैसलों के कारण अक्सर चर्चा में रहे। खासकर संसद और न्यायपालिका के अधिकारों पर उनकी टिप्पणियों ने विवाद को जन्म दिया। मार्च 2025 में हृदय संबंधी समस्या के कारण उनकी दिल्ली के एम्स में एंजियोप्लास्टी हुई थी और अब उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देने का फैसला लिया।

इस्तीफे ने क्यों मचाई हलचल?
Jagdeep Dhankhar का इस्तीफा उस समय आया जब संसद का मानसून सत्र शुरू हो चुका है। उनके इस्तीफे की टाइमिंग ने कई सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे “चौंकाने वाला और समझ से परे” बताया। उन्होंने कहा कि वे सोमवार शाम 5 बजे तक धनखड़ के साथ थे और 7:30 बजे फोन पर बात हुई थी, लेकिन इस्तीफे का कोई संकेत नहीं मिला। जयराम ने संकेत दिया कि इस फैसले के पीछे स्वास्थ्य के अलावा और भी कारण हो सकते हैं। विपक्ष का मानना है कि धनखड़ का सत्तापक्ष के प्रति झुकाव और उनके बयानों ने विवाद खड़ा किया। कुछ विपक्षी नेताओं जैसे टीएमसी के कल्याण बनर्जी ने उनके खिलाफ तीखी टिप्पणियां कीं और संसद के बाहर उनकी नकल तक की। वहीं धनखड़ ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को ‘आहत करने वाला’ बताया था।
सोशल मीडिया पर भी अटकलें तेज हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यह इस्तीफा बिहार और उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों से जुड़ा हो सकता है। चर्चा है कि BJP नीतीश कुमार या मनोज सिन्हा जैसे नेताओं को अगले उपराष्ट्रपति के रूप में पेश कर सकती है। हालांकि सरकार ने अभी कोई आधिकारिक नाम घोषित नहीं किया है।

नए उपराष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया क्या है?
Jagdeep Dhankhar के इस्तीफे के बाद संविधान के अनुच्छेद 68(2) के तहत अगले 60 दिनों के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव करना होगा। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में होगी:
योग्यता:
उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार भारत का नागरिक होना चाहिए,
उसकी उम्र 35 वर्ष से अधिक हो, और वह राज्यसभा सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
उम्मीदवार को 15,000 रुपये की जमानत राशि जमा करनी होगी, जो 1/6 वोट न मिलने पर जब्त हो सकती है।
निर्वाचक मंडल: उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा (543 सदस्य) और राज्यसभा (245 सदस्य, जिसमें 12 मनोनीत सदस्य शामिल हैं) के सांसदों द्वारा किया जाता है।
मतदान प्रक्रिया:
यह गुप्त मतदान के जरिए होता है, जिसमें सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम का उपयोग होता है। मतदाता अपनी पसंद के क्रम में उम्मीदवारों को रैंक करते हैं (जैसे, पहली पसंद को 1, दूसरी को 2)।
कोटा और मतगणना:
विजेता का निर्धारण कोटा सिस्टम से होता है। कुल वोटों को 2 से भाग देकर 1 जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि 787 सांसद वोट डालते हैं, तो कोटा 394 (787 ÷ 2 + 1) होगा। अगर कोई उम्मीदवार यह कोटा हासिल कर लेता है, उसे विजेता घोषित किया जाता है। यदि नहीं तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को हटाकर उनकी दूसरी प्राथमिकता के वोट अन्य उम्मीदवारों को दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कोई उम्मीदवार कोटा हासिल न कर ले।
समयसीमा:
संविधान के अनुसार, इस्तीफे के 60 दिनों के भीतर चुनाव होना अनिवार्य है। नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति 5 साल का पूरा कार्यकाल संभालेगा न कि पिछले उपराष्ट्रपति का बचा हुआ कार्यकाल। ध्यान दें की जगदीप धनखड़ का कार्यकाल 2027 तक चलने वाला था। जब तक नया उपराष्ट्रपति चुना नहीं जाता, राज्यसभा के उपसभापति यानि हरिवंश नारायण सिंह सभापति के कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।
धनखड़ का इस्तीफा BJP के लिए चुनौती
Jagdeep Dhankhar का इस्तीफा BJP और सरकार के लिए एक चुनौती बन सकता है, खासकर तब जब विपक्ष इसे अपनी नैतिक जीत के रूप में पेश कर रहा है। सत्ताधारी NDA के पास राज्यसभा में बहुमत है इसलिए माना जा रहा है कि अगला उपराष्ट्रपति भी उनकी पसंद का होगा, लेकिन विपक्ष इस मुद्दे को संसद में हंगामे के लिए इस्तेमाल कर सकता है। अब सभी की नजर इस बात पर है कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा और क्या यह फैसला मौजूदा सियासी समीकरणों को बदलेगा।