छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य की ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारी के दूसरे दिन शनिवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में 22 जुलाई को प्रदेश के सभी पांचों संभागों में आर्थिक नाकेबंदी का एलान कर यह साफ संकेत दिया है कि इस मामले में पार्टी एकजुट है। ईडी ने शराब घोटाले से जुड़े धन शोधन के मामले में चैतन्य बघेल को गिरफ्तार किया था और ईडी की विशेष अदालत ने उन्हें पांच दिन की ईडी की रिमांड पर भेजा है। डेढ़ साल पहले छत्तीसगढ़ की सत्ता से बेदखल होने और मई, 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद यह पहला मौका है, जब प्रदेश में कांग्रेस इस तरह आंदोलन की राह पर है। वास्तव में इन दोनों चुनावों में मिली हार ने पार्टी के नेताओं की दरारों को तो सामने लाया ही था, निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के हौसले भी पस्त हो गए थे। सोशल मीडिया में किसी ने चुटकी ली है, कि जो काम राहुल गांधी नहीं कर सके, वह ईडी ने कर दिखाया है! मजाक अपनी जगह, लेकिन यह तो सच है कि ज्यादा दिन नहीं हुए जब कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सचिन पाटलट की मौजूदगी में भूपेश बघेल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से शिकायत कर रहे थे कि जरूरत पड़ने पर पार्टी के नेता उनका साथ नहीं देते। लेकिन बीते दो दिनों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता न केवल एकजुट दिखे हैं, बल्कि शनिवार की प्रेस कान्फ्रेंस से भी यह संदेश देने की कोशिश की है। निस्संदेह छत्तीसगढ़ में भाजपा मजबूत स्थिति में है और विष्णुदेव सरकार को कोई खतरा नहीं है, इसके बावजूद प्रदेश के हित में है कि यहां मजबूत विपक्ष रहे। कांग्रेस नेताओं ने ईडी की कार्रवाई को प्रदेश के हसदेव अरण्य और रायगढ़ जिले के तमनार में अडानी समूह की परियोजनाओं के लिए की जा रही जंगलों की कटाई को मुद्दा बनाया है, लेकिन वह अब तक न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार को मजबूर कर सकी है कि वे छत्तीसगढ़ के हजारों लोगों की आजीविका और पर्यावरण से जुड़ी इन परियोजनाओं पर फिर से विचार करें। कांग्रेस से यह पूछा ही जा सकता है कि 2018 से 2023 के बीच सरकार में रहते हुए उसने क्यों नहीं अडानी को रोका? बात सिर्फ हसदेव अरण्य और तमनार बस की नहीं है, छत्तीसगढ़ में धान के मुद्दे से लेकर हजारों सरकारी कर्मचारियों और निशक्त जनों के मुद्दे भी हैं, जिन्हें द लेंस ने कवर किया और दिखाया कि कैसे उनके आंदोलन की विधानसभा सत्र के दौरान न केवल अनदेखी कर दी गई, बल्कि अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन करने के उनके संवैधानिक अधिकार से भी वंचित करने की बलपूर्वक कोशिश की गई। जाहिर है, कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में यदि एक मजबूत विपक्ष के रूप में उपस्थिति दर्ज करानी है और सीधे जनता से जुड़ना है, तो उसकी लड़ाई सांकेतिक नहीं हो सकती।

