प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महासचिव भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की कथित शराब घोटाले के मामले में भिलाई से उनके निवास से हुई गिरफ्तारी इस मामले में अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है, जिसके अपने राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। एजेंसी के वकील ने अदालत में परिसर में कहा है कि यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है और ईडी को जो जानकारी मिली है, उसमें चैतन्य से पूछताछ जरूरी है। जिस मामले में चैतन्य की गिरफ्तारी की गई है, उस मामले में पहले ही कई हाई प्रोफाइल लोग जेलों में हैं, जिनमें पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा, पूर्व आईएएस अनिल टुटेजा और एपी त्रिपाठी से लेकर रायपुर के पूर्व मेयर एजाज ढेबर के भाई तक शामिल हैं। बेशक, कथित शराब घोटाला, चाहे वह छत्तीसगढ़ का हो या दिल्ली का, या फिर मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित तमाम मामले, इनकी जांच जरूरी है, ताकि दोषियों को सजा दिलाई जा सके। दूसरी ओर हकीकत यह है कि ऐसे सारे मामलों में ईडी का अपना रिकॉर्ड कोई बहुत दुरुस्त नहीं है। दरअसल मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ईडी की कार्रवाइयां संदेह के दायरे में हैं, खासतौर से राजनेताओं के खिलाफ दर्ज मामलों में, तो उसकी वजहें भी साफ हैं। खुद वित्त राज्य मंत्री ने इसी साल मार्च में राज्यसभा को बताया था कि पिछले दस सालों के दौरान ईडी ने राजनेताओं के खिलाफ जो 193 मामले दर्ज किए थे, उनमें से केवल दो ही मामलों में सजा हो सकी! यह एक फीसदी से भी कम है, और ईडी के सारे मामलों को देखें, तो सजा दिलाने की दर छह फीसदी के आसपास है। ईडी ने शुक्रवार को जिन परिस्थितियों में यह कार्रवाई की है, उससे कई सवाल उठते हैं। मसलन, जिस दिन यह कार्रवाई की गई, उस दिन छत्तीसगढ़ के विधानसभा सत्र का आखिरी दिन था। भूपेश बघेल का कहना है कि वह विधानसभा में छत्तीसगढ़ के तमनार में कथित तौर पर अदानी के लिए काटे जा रहे जंगलों का मुद्दा उठाना चाहते थे। बघेल के इन आरोपों को राजनीतिक बयान कह कर दरकिनार कर भी दें, तो गौर किया जाना चाहिए कि एक दिन पहले ही लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के जीजा और कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के कारोबारी पति राबर्ट वाड्रा के खिलाफ भी हरियणा के 2008 के एक जमीन खरीदी से जुड़े कथित धन शोधन के मामले में अब जाकर चार्जशीट दायर की गई है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि ईडी के घेरे में रहने वाले नेता और जनप्रतिनिधि भाजपा का हाथ थामते ही बेदाग हो जाते हैं? इस क्रम में महाराष्ट्र के शिवसेना के टूट से जुड़े मामले को देखा जा सकता है, जब एकनाथ शिंदे ने पार्टी को दो फाड़ कर भाजपा से हाथ मिलाया था, तो उनके साथ जाने वाले शिवसेना के अनेक विधायक ईडी की जद में थे, लेकिन बाद में उनके मामले ठंडे पड़ गए। इस बात को भी अधिक दिन नहीं हुए हैं, जब तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन के दफ्तर पर ईडी के छापे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसी को लताड़ा था और इसे संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन बताया था। बहरहाल, छत्तीसगढ़ से जुड़े ताजा मामले में अब गेंद ईडी के पाले में है, जिसे अदालत में इस मामले को निर्णायक परिणति तक पहुंचाना है।
ईडी के छापे और सवाल

दानिश अनवर, द लेंस में जर्नलिस्ट के तौर पर काम कर रहे हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 13 वर्षों का अनुभव है। 2022 से दैनिक भास्कर में इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग टीम में सीनियर रिपोर्टर के तौर पर काम किया है। इस दौरान स्पेशल इन्वेस्टिगेशन खबरें लिखीं। दैनिक भास्कर से पहले नवभारत, नईदुनिया, पत्रिका अखबार में 10 साल काम किया। इन सभी अखबारों में दानिश अनवर ने विभिन्न विषयों जैसे- क्राइम, पॉलिटिकल, एजुकेशन, स्पोर्ट्स, कल्चरल और स्पेशल इन्वेस्टिगेशन स्टोरीज कवर की हैं। दानिश को प्रिंट का अच्छा अनुभव है। वह सेंट्रल इंडिया के कई शहरों में काम कर चुके हैं।