कर्नाटक में बंगलुरू के नजदीक देवनहल्ली तालुका में 1200 दिनों यानी तीन साल से भी अधिक समय से चल रहे किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन का हा नतीजा है कि राज्य की सिद्धारमैया सरकार को प्रस्तावित डिफेंस और एयरो स्पेस पार्क के लिए 1777 एकड़ जमीन के अधिगृहण का फैसला वापस लेना पड़ा है। खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इसे ऐतिहासिक विरोध कहा है, जिससे इस आंदोलन की ताकत को समझा जा सकता है। वास्तव में भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 के अस्तित्व में आने के सालभर बाद ही 2014 में देवनहल्ली तालुका में एयरो स्पेस पार्क के निर्माण का एलान किया गया था और जब अप्रैल, 2022 में इसके लिए जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की गई, तो प्रभावित 13 गांवों के लोगों ने सत्याग्रह शुरू कर दिया था। यह इस आंदोलन की ताकत ही है कि देवनहल्ली के किसानों के समर्थन में दिल्ली की सरहद पर तीन संदिग्ध कृषि कानूनों के विरोध में सफल आंदोलन करने वाला संयुक्त किसान मोर्चा और दूसरे संगठन साथ आ गए। यह इलाका अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से नजदीक है, लेकिन हकीकत यह भी है कि लाल मिट्टी वाली यहां की जमीन बेहद उर्वर है और इससे हजारों किसान परिवारों की आजीविका जुड़ी हुई है। कर्नाटक इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट बोर्ड (केआईएडीबी) यहां एयरोपार्क और उससे संबंधित उद्योग स्थापित करना चाहता था। बेशक, औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन चाहिए, लेकिन दूसरी ओर ऐसा कम ही होता है, जब संबंधित किसानों या आदिवासियों को जमीन के अधिग्रहण के मुआवजे या सही कीमत के लिए संघर्ष न करना पड़े। देवनहल्ली के मामले में किसान नेता रमेश चीमाचनहल्ली का तो यह भी आरोप है कि किसानों से पहले अधीगृहीत की गई जमीनें निजी क्षेत्रो को दे दी गईं। देवनहल्ली का मामला सरकार की नीति और उसकी नीयत में फर्क को उजागर करता है, भले ही उसने यह फैसला वापस ही क्यों न ले लिया हो। दरअसल जरूरत इस बात की है कि वनाधिकार अधिनियम और भूमि अधिग्रहण कानून पर समुचित तरीके से अमल हो। जरूरत विकास की एकतरफा सोच को भी बदलने की है, जिसकी कीमत किसानों और आदिवासियों को चुकानी पड़ रही है।

