लेंस डेस्क। जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को श्रीनगर के मजार-ए-शुहादा में सुरक्षा बैरिकेड्स तोड़कर और चारदीवारी फांदकर 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उमर अब्दुल्ला का दावा है कि उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए नजरबंद किया गया था। कब्रिस्तान में दीवार कूदने और पुलिस के साथ झड़प का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। घटना के कुछ देर बाद ही उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधा।
एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने कहा, ‘मुझे हाथापाई का सामना करना पड़ा, लेकिन मैं ज्यादा मजबूत स्वभाव का हूं और मुझे रोका नहीं जा सकता था। मैं कोई भी गैरकानूनी या अवैध काम नहीं कर रहा था। दरअसल, इन “कानून के रखवालों” को यह बताना होगा कि वे किस कानून के तहत हमें फातिहा पढ़ने से रोक रहे थे।’
एक टीवी मीडिया से बातचीत में उमर अब्दुल्ला कहा कि अगर बीजेपी को लगता है कि उनकी सरकार को कमजोर दिखाकर घाटी में राजनीतिक लाभ मिलेगा, तो वे गलतफहमी में हैं। उन्होंने दिल्ली के हालात से तुलना करते हुए कहा कि बीजेपी को कश्मीर में वैसा परिणाम नहीं मिलेगा, जैसा वे उम्मीद कर रहे हैं।
दरअसल , 13 जुलाई 1931 को महाराजा हरि सिंह की डोगरा सेना द्वारा मारे गए प्रदर्शनकारियों की याद में बनाए गए स्मारक पर जाने से रविवार को मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों को रोकने की कोशिश हुई। इस पर उमर अब्दुल्ला ने कहा, “मुद्दा यह नहीं कि मेरे या मेरे मंत्रिमंडल के साथियों के साथ क्या हुआ। असल बात यह है कि आप जम्मू-कश्मीर के लोगों को लोकतंत्र का सही अर्थ समझा रहे हैं। यह ऐसा है जैसे आप कह रहे हों कि उनकी भावनाएं, पसंद और आवाज का कोई महत्व नहीं है।”
उमर अब्दुल्ला के समर्थन में सीपीआई महासचिव डी राजा ने इस घटना को अस्वीकार्य बताया। उन्होंने कहा कि सीपीआई मांग करती है कि तत्काल पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाए बिना किसी शर्त के ताकि जनता के प्रतिनिधि वास्तव में सेवा कर सकें, न कि चुप कराए जाएं और दबाए जाएं।
इस मामले पर टिप्पणी करते हुए हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने कहा है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को दमनकारी अत्याचार का कटु अनुभव लेने के बाद अब लोगों की गरिमा और उनके मूल अधिकारों की रक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
मजार-ए-शुहदा का इतिहास
13 जुलाई 1931 को श्रीनगर की सेंट्रल जेल के बाहर एक सभा हो रही थी, जहां कश्मीरी लोग कार्यकर्ता अब्दुल कदीर के समर्थन में एकत्र हुए थे। इस दौरान जब एक व्यक्ति ने अजान शुरू की, तो डोगरा सैनिकों ने उस पर गोली चला दी। इसके बाद जो भी अजान पूरी करने आगे आया, उसे भी गोली का निशाना बनाया गया। इस घटना में 22 कश्मीरियों की जान गई।
इन मृतकों को श्रीनगर के एक कब्रिस्तान में दफनाया गया, जिसे बाद में मजार-ए-शुहदा के नाम से जाना गया। तब से हर साल 13 जुलाई को शहीदी दिवस के रूप में इन शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। लोग इस कब्रिस्तान में पहुंचकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। पहले इस दिन सरकारी अवकाश होता था, लेकिन 2019 में केंद्र सरकार ने इसे जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक छुट्टियों की सूची से हटा दिया। साथ ही इस कब्रिस्तान में नेताओं के जाने पर पाबंदी भी लगाई गई।