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Home » स्वतंत्र जज बनने के लिए ज़रूरी नहीं कि व्यक्ति नास्तिक हो : चंद्रचूड़

दुनिया

स्वतंत्र जज बनने के लिए ज़रूरी नहीं कि व्यक्ति नास्तिक हो : चंद्रचूड़

The Lens Desk
Last updated: March 6, 2025 3:33 pm
The Lens Desk
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नई दिल्ली। “हमारे संविधान में स्वतंत्र जज बनने के लिए ज़रूरी नहीं कि व्यक्ति नास्तिक हो।” यह कहना है भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ का, जिन्होंने बीबीसी संवाददाता स्टीफन सैकर को दिए एक इंटरव्यू में राम मंदिर सहित कई चर्चित फैसलों पर अपनी बात स्पष्ट की।

स्टीफन सैकर को दिया गया चंद्रचूड़ का यह इंटरव्यू सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है। इसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने, सरकार और न्यायपालिका के संबंधों जैसे विषयों पर तीखे सवालों के जवाब दिए। हालांकि बीबीसी संवाददाता के दो टूक सवालों पर चंद्रचूड़ कई बार असहज नजर आए।

श्री राम जन्मभूमि /बाबरी विवाद पर जस्टिस चंद्रचूड़ का जवाब
बीबीसी ने सवाल किया कि ” श्री राम जन्मभूमि/बाबरी विवाद में फैसला देने से पहले क्या आपने भगवान से प्रार्थना की थी?” इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसे सोशल मीडिया पर उड़ाई गई अफ़वाह बताते हुए कहा, “यह पूरी तरह ग़लत है। मैंने पहले भी स्पष्ट किया है और फिर से कहता हूँ कि यह पूरी तरह ग़लत है। अगर आप सोशल मीडिया के माध्यम से किसी जज के बारे में जानना चाहेंगे, तो आपको ग़लत जानकारी मिलेगी।”

उन्होंने आगे कहा, “मैं इस तथ्य से इनकार नहीं करता कि मैं आस्तिक हूँ। हमारे संविधान में स्वतंत्र जज बनने के लिए नास्तिक होना ज़रूरी नहीं है। मैं अपने धर्म को अहमियत देता हूँ, लेकिन मेरा धर्म सभी धर्मों का सम्मान करता है। किसी भी धर्म का व्यक्ति आए, न्याय समान रूप से दिया जाना चाहिए। मैंने जो कहा था, वह यह था कि – यह मेरा धर्म है।”

अनुच्छेद 370: क्या 75 साल कम होते हैं?
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्ज़ा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के मोदी सरकार के फैसले को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तो 2023 में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ ने सरकार के इस फ़ैसले को बरकरार रखा। इस निर्णय के कारण उनकी आलोचना भी हुई।

इससे जुड़े सवाल पर चंद्रचूड़ ने कहा, “इस मामले में दिए गए फैसलों में से एक मैंने लिखा था। अनुच्छेद 370 संविधान बनने के साथ ही शामिल किया गया था और इसे ‘ट्रांज़िशनल प्रोविज़ंस’ शीर्षक वाले अध्याय का हिस्सा बनाया गया था। बाद में इसका नाम बदलकर ‘टेम्परेरी ट्रांज़िशनल प्रोविज़ंस’ कर दिया गया।”

उन्होंने आगे कहा, “जब संविधान बना था, तब यह माना गया था कि ये प्रावधान धीरे-धीरे ख़त्म हो जाएंगे। अब सवाल उठता है कि क्या 75 साल किसी ट्रांज़िशनल प्रोविज़न को ख़त्म करने के लिए कम होते हैं?”

सरकार के दबाव में नहीं लिए जाते अदालत के फैसले
बीबीसी ने सवाल किया कि “निचली अदालत के फ़ैसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाना क्या यह संकेत नहीं देता कि भारत में न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव है?”

इस पर जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने जवाब दिया, “पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में 21,300 ज़मानत याचिकाएं दायर की गई थीं और सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी पर फ़ैसला सुनाया। इसका मतलब यह है कि क़ानून अपना काम कर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे हर देश में एक क़ानूनी प्रक्रिया होती है।”

उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में लिए गए फैसलों पर कभी भी राजनीतिक दबाव का असर नहीं था। हालांकि, न्यायपालिका का काम सामूहिक होता है और कई मामलों में अन्य जजों से सलाह ली जाती है। खासतौर पर, सुप्रीम कोर्ट ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि वहाँ व्यक्तिगत आज़ादी की रक्षा की जाएगी। भारत का सुप्रीम कोर्ट हमेशा व्यक्तिगत आज़ादी की रक्षा करने में आगे रहा है।”

पीएम मोदी और चंद्रचूड़ की मुलाक़ात
गणेश पूजा के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के घर गए थे, तब दोनों की नज़दीकियों को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी। इस पर चंद्रचूड़ ने कहा, “संवैधानिक ज़िम्मेदारियों की बात करते हुए बुनियादी शालीनता को ज़रूरत से ज़्यादा तूल नहीं देना चाहिए। मुझे लगता है कि हमारा सिस्टम इतना परिपक्व है कि वह यह समझ सकता है कि शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के बीच की बुनियादी शालीनता का मुकदमों से कोई लेना-देना नहीं होता।”

उन्होंने आगे कहा, “इस मुलाक़ात से पहले हमने इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे मामलों पर फ़ैसला सुनाया था, जिसमें हमने उस क़ानून को रद्द कर दिया, जिसके तहत चुनावी फ़ंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड लाए गए थे।”

सीएए पर सुनवाई क्यों नहीं हुई?
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर सुनवाई उनके कार्यकाल में क्यों नहीं हुई? इस सवाल पर चंद्रचूड़ ने जवाब दिया, “यह मामला अभी अदालत में लंबित है। अगर यह ब्रिटेन में होता, तो अदालत के पास इसे अमान्य करने का अधिकार नहीं होता। लेकिन भारत में हमारे पास यह अधिकार है।”

उन्होंने आगे कहा, “मेरे कार्यकाल में संविधान पीठ के लिए लगभग 62 फैसले लिखे गए। हमारे पास ऐसे कई संवैधानिक मामले थे, जो 20 सालों से लंबित थे और अहम मुद्दों से जुड़े थे।”

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