देश में मेडिकल शिक्षा मरणासन्न है। नेशनल मेडिकल कमीशन की छत्रछाया में मेडिकल स्टूडेंट्स का खुलेआम शोषण हो रहा है। मेडिकल कॉलेजों का फर्जीवाड़ा छुपाने के लिए एनएमसी ने कानून बदल डाला। संसद के बनाए कानून के मुताबिक इन कॉलेजों के असेसमेंट की पूरी जानकारी वेबसाइट पर डालनी है। किसी कॉलेज में एडमिशन लेने से स्टूडेंट्स को पूरी जानकारी देने के लिए एनएमसी एक्ट, 2019 में पुख्ता इंतजाम किए गए थे।

लेकिन प्राइवेट कॉलेज माफिया के आगे नतमस्तक एनएमसी ने सब कुछ गोपनीय कर दिया। वेबसाइट पर डालना तो दूर, आरटीआई में सूचना नहीं मिलती। केंद्रीय सूचना आयोग ने सूचना देने का निर्देश दिया, तो 01.05.24 को एनएमसी ने अपनी बैठक में खुद ही कानून बदल दिया। जबकि संसद का बनाया कानून खुद संसद की बदल सकती है।
नतीजा? देश भर में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की जांच और मान्यता के नाम पर बड़े-बड़े घोटाले हो रहे हैं। गत दिनों सीबीआई ने नवा रायपुर के रावतपुरा मेडिकल कॉलेज के अलावा यूपी, गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान समेत सात राज्यों के 35 आरोपियों पर मुकदमा किया। इनमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और एनएमसी के अधिकारी, डॉक्टर, प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के अधिकारी शामिल हैं।
एनएमसी के कारण लगातार 36 से 48 घंटे ड्यूटी करते पीजी मेडिकल स्टूडेंट्स खुद मानसिक रोगों का शिकार हो रहे हैं। आत्महत्या करने और आत्महत्या की कोशिश के मामले बढ़ रहे हैं। बड़ी मुश्किल से जिस पीजी कोर्स में एडमिशन लिया, उसे 50 लाख का जुर्माना देकर सीट छोड़ रहे हैं। एनएमसी ने 2024 में इस पर नेशनल टास्क फोर्स बनाया था। उसकी रिपोर्ट पढ़कर केंद्र और राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों और अधिकारियों के चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाना चाहिए।
लेकिन भ्रष्टाचार के आगे ऐसी शर्म कहां? अब नए घोटाले में सीबीआई कार्रवाई के बाद दब्बू एनएमसी ने मुंह छुपाने के लिए एक दिखावा किया है। मेडिकल स्टूडेंट्स की समस्याओं पर तीन-स्तरीय शिकायत निवारण समितियां बनाने का निर्देश दिया है। यह तीन स्तर सभी मेडिकल कॉलेज, प्रत्येक यूनिवर्सिटी और राज्य चिकित्सा शिक्षा विभाग स्तर पर होगा। उन्हें अपना वेबपोर्टल बनाना होगा। छात्र इनमें अपनी शिकायतें ऑनलाइन दर्ज कर सकते हैं। इस नोटिस में एनएमसी ने अत्यधिक शुल्क वसूली, स्टाइपेंड, रैगिंग जैसी शिकायतों का उल्लेख किया है। हैरानी की बात है कि इसमें पीजी मेडिकल स्टूडेंट्स के काम के अत्यधिक घंटों का उल्लेख करने की हिम्मत तक नहीं जुटा सका एनएमसी। जबकि पूरी समस्या की मूल जड़ यही है। एनएमसी को पता ही नहीं कि मेडिकल स्टूडेंट्स की आत्महत्या का मूल कारण लगातार 36 से 48 घंटे तक ड्यूटी लगना है।
डॉ विवेक पांडेय ने आरटीआई से चौंकाने वाली सूचना निकाली। वर्ष 2018 से 2022 के बीच 122 मेडिकल स्टूडेंट्स ने आत्महत्या कर ली। यह सिलसिला जारी है। मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों का एमबीबीएस करना एक बड़ा सपना होता है। लेकिन वर्ष 2018 से 2022 के बीच 1270 मेडिकल स्टूडेंट्स ने पढ़ाई छोड़ दी। इसमें पीजी स्टूडेंट्स की संख्या 1117 है। यह बेहद चिंताजनक आंकड़ा है। ऐसे स्टूडेंट्सके सामने दुनिया छोड़ देने अथवा पढ़ाई छोड़ देने के बीच विकल्प चुनने की नौबत के लिए एनएमसी के भ्रष्ट, दब्बू अधिकारी जिम्मेवार हैं।
मई 2024 में एनएमसी ने मेडिकल स्टूडेंट्स के मानसिक स्वास्थ्य पर ऑनलाइन सर्वेक्षण कराया। मात्र दस दिनों के भीतर 37667 स्टूडेंट्स और फैकेल्टी सदस्यों ने इसमें भागीदारी करके स्थिति की भयावहता सामने ला दी। लेकिन नेशनल टास्क फोर्स 2024 की रिपोर्ट पर एनएमसी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
पीजी मेडिकल स्टूडेंट्स को कितने घंटे काम करना है? इस पर देश का कानून स्पष्ट है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 1992 में डायरेक्टिव जारी की थी। इसके अनुसार सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे काम करना है। लगातार अधिकतम 12 घंटे। एम्स भी अपनी नोटिस में इसी का उल्लेख करता है। हालांकि पालन वहां भी नहीं होता। गत वर्ष कर्नाटक सरकार ने भी यही नियम जारी किया। इसके बावजूद देश भर में अधिकांश पीजी स्टूडेंट्स की 24, 36 या 48 घंटे की लंबी ड्यूटी लगती है। इससे मरीजों की देखभाल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। अच्छे इलाज का दावा करने वाले नेताओं को मालूम तक नहीं कि इन पीजी स्टूडेंट्स के ही भरोसे अस्पताल चलते हैं। बड़े डॉक्टर तो हाजिरी बनाकर मरीजों को स्टूडेंट्स के भरोसे छोड़ जाते हैं। ऐसे थके-मांदे, अधमरे स्टूडेंट्स से अच्छे इलाज की उम्मीद हास्यास्पद है।
एनएमसी ने पीजी मेडिकल एडुकेशन रेगुलेशन 2023 बनाया। एनएमसी का वैधानिक दायित्व था कि स्वास्थ्य मंत्रालय की डायरेक्टिव, 1992 का शत-प्रतिशत अनुपालन करे। लेकिन प्राइवेट कॉलेज माफिया से उपकृत अधिकारियों ने मूर्खतापूर्ण प्रावधान बना दिया। एनएमसी की नियमावली बिल्कुल अस्पष्ट और चौंकाने वाली है। इसमें लिखा गया है- “सभी पीजी स्टूडेंट पूर्णकालिक रेजिडेंट डॉक्टर के रूप में काम करेंगे। वे उचित कार्य घंटों तक काम करेंगे। उन्हें हर दिन आराम के लिए उचित समय मिलेगा।“
5.2 (ii) All post-graduate students will work as full-time resident doctors. They will work for reasonable working hours and will be provided reasonable time for rest in a day.
इसमें उचित घंटों के नाम पर भारत सरकार डायरेक्टिव, 1992 को बदल दिया गया। पीजी स्टूडेंट्स की 48 के बजाय औसतन 70 से 100 घंटे साप्ताहिक ड्यूटी लगती है। खुद एनएमसी द्वारा गठित नेशनल टास्क फोर्स 2024 की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। हालांकि इस चोर-रास्ते में भी एनएमसी ने ‘इन ए डे’ यानी ‘प्रतिदिन’ लिखकर लगातार 36 घंटे ड्यूटी को असंभव बना दिया है। एक दिन अगर 24 घंटे का ही है, और उसमें आराम करने का समय मिलना है, तो कोई भी ड्यूटी 36 घंटे कैसे हो सकती है? इसके बावजूद मेडिकल कॉलेजों के सीनियर डॉक्टर्स अपना पूरा काम स्टूडेंट्स के भरोसे छोड़कर प्राइवेट प्रेक्टिस में लगे रहते हैं। परीक्षा में फेल होने के डर से स्टूडेंट्स चुप रहते हैं।
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लगातार ड्यूटी का तरीका अमेरिका के एक डॉक्टर के प्रयोग पर आधारित है। डॉ. विलियम स्टीवर्ट हैलस्टेड भोजन और नींद के बगैर लगातार काम करते रहते थे। प्रशिक्षु डॉक्टरों से भी लगातार काम कराते थे। दरअसल वह कोकीन और अफीम का सेवन करके लगातार काम करते थे। क्या भारत के मेडिकल स्टूडेंट्स से नशे में काम की उम्मीद की जाती है? एक छात्रा ने कहा- “हमारी जिंदगी तो खुद मजाक बन गई है। हम सभी मरीजों को न्यूनतम आठ घंटे की नींद, समय पर भोजन और स्वस्थ जीवन शैली अपनाने की सलाह देते हैं। लेकिन खुद हमें ही यह नसीब नहीं है।“
पिछले दिनों राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मेडिकल स्टूडेंट्स की समस्याओं पर गंभीरता के साथ बैठक के बाद संबंधित विभागों और अधिकारियों से ठोस बिंदुओं पर कदम उठाकर रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया था। दिव्यांग स्टूडेंट्स की विशेष जरूरतों का ध्यान रखे बगैर उन्हें भी जानवरों की तरह अत्यधिक काम के लिए मजबूर किया जाता है। यूडीएफ की शिकायत पर गत दिनों भारत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र भेजा। लेकिन वहां अधिकारी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज फर्जीवाड़ा में व्यस्त हैं।
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