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Home » सुशासन बाबू के विरोध में विपक्ष का सबसे बड़ा मुद्दा ‘सुशासन’ कैसे बन गया?

लेंस रिपोर्ट

सुशासन बाबू के विरोध में विपक्ष का सबसे बड़ा मुद्दा ‘सुशासन’ कैसे बन गया?

Rahul Kumar Gaurav
Last updated: July 10, 2025 2:39 pm
Rahul Kumar Gaurav
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bihar law and order
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पूर्णिया में एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जला दिया गया, सीवान में तीन लोगों को तलवार से काट डाला गया, बक्सर और भोजपुर में छह लोगों की नृशंस हत्या और राजधानी पटना में दिनदहाड़े कारोबारी गोपाल खेमका की गोली मारकर हत्या कर दी गई।‌ पिछले छह से सात दिनों में बिहार की ये घटनाएं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एकदम उलट हैं, जो मंच से हमेशा कहते रहते हैं कि “क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म को मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता। जीरो टॉलरेंस हमारी शुरू से नीति है।“

खबर में खास
उद्योगपति सुरक्षित नहीं तो उद्योग कैसे?अब विपक्ष का मुद्दा भी ‘सुशासन और जंगलराज’संगठित अपराध फिर से अपनी जड़ें जमा चुका हैविपक्ष का विरोध

सुशासन बाबू के नाम से पहचान रखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शासन व्यवस्था को विपक्ष क्राइम कैपिटल का नाम दे रहा है। आखिर जंगल राज के विरोध में राजनीति करके मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश कुमार की शासन व्यवस्था पर ऐसा आरोप क्यों लगाया जा रहा है? हम इसकी पड़ताल करते हैं।

क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज़्म के विरुद्ध बिहार सरकार की ज़ीरो टॉलरेंस नीति — लोगों को आसानी से मिल रहा न्याय।

Zero tolerance policy of the Bihar government against crime, corruption, and communalism — ensuring easy access to justice for the people.@NitishKumar@BiharHomeDept… pic.twitter.com/cvfDro1C5y

— IPRD Bihar (@IPRDBihar) April 28, 2025

उद्योगपति सुरक्षित नहीं तो उद्योग कैसे?

बिहार में पिछले कई दिनों से आपराधिक घटनाएं लगातार हो रही हैं, लेकिन विपक्ष ने इसे पिछले दिनों मुद्दा तब बनाया जब कारोबारी गोपाल खेमका की गोली मारकर हत्या कर दी गई। सात साल पहले 2018 में गोपाल खेमका के बेटे को भी अपराधियों ने मार डाला था। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार ‘सुशासन’ के नारे के साथ उद्योगों को आकर्षित करने में जुटा है। ऐसे में अगर उद्योगपति ही सुरक्षित नहीं तो फिर उद्योग कैसे लगेगा?

उद्योगपति गोपाल खेमका के भाई अशोक खेमका इस पूरी घटना के बाद मीडिया को बयान देते हैं कि, “ये लोग लालू जी के राज को जंगलराज कहते हैं,उस से बड़ा जंगलराज अभी बिहार सरकार चला रही है। ये लोग ऑर्गनाइज तरीके से क्राइम चला रहे हैं। इनका काम सिर्फ ट्रक और आम लोगों से वसूली करने को रह गया है।” उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है।

गोपाल खेमका जी के भाई अशोक खेमका जी को सुनिए.

“ ये लोग लालू जी के राज को जंगलराज कहते हैं,उस से बड़ा जंगलराज अभी बिहार सरकार चला रही है। ये लोग ऑर्गनाइज तरीके से क्राइम चला रहे हैं। इनका काम सिर्फ ट्रक और आम लोगों से वसूली करने को रह गया है ” pic.twitter.com/QXbzkfc1gd

— Pratik Patel (@PratikVoiceObc) July 5, 2025

पुणे के एक आईटी सेक्टर में काम कर रहे मिहिर आनंद बताते हैं कि, “हमारे जैसे कई युवा बिहार में स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं। लेकिन आज भी बिहार की छवि जिस तरह से मीडिया दिखाती है, जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं, ऐसे में कौन व्यापारी ऐसे राज्य में आना चाहेगा। सबसे ज्यादा दिक्कत भूमि आवंटन में होती है। बिना माफिया के यह काम संभव ही नहीं है।”

बिहार पुलिस के मुताबिक उद्योगपति गोपाल खेमका के मर्डर केस में भी जमीन विवाद ही शामिल है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में भूमि या संपत्ति के विवाद में 2021 में 1051, 2020 में 815, 2019 में 782, 2018 में 1016 और 2017 में 939 हत्याएं हुईं हैं।

अब विपक्ष का मुद्दा भी ‘सुशासन और जंगलराज’

भाजपा और जदयू के सोशल मीडिया हैंडल पर सबसे ज्यादा पोस्ट राजद सरकार के जंगल राज्य को लेकर की जाती है। भाजपा के अधिकांश नेताओं का बयान भी इसी को लेकर होता है। विपक्ष खासकर राजद इस मुद्दे पर भाजपा की तुलना में सॉफ्ट रहती थी। हालांकि पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं के बाद राजद के मुख्य मुद्दों में जंगलराज और सुशासन शामिल हो चुका है।

इन सारी घटनाओं के बाद विपक्ष जब क्राइम मामले में सरकार पर सवाल उठा रहा था, इसी दौरान आठ जुलाई को पूरे प्रदेश में नौ लोगों की हत्या कर दी गई थी। कई मेन स्ट्रीम मीडिया ने भी इसे मुख्य खबर के रूप में चलाया।

हाल ही में तेजस्वी ने अपराध बुलेटिन जारी कर रोजाना होने वाली आपराधिक घटनाओं, जैसे हत्या और बलात्कार की जिलेवार जानकारी दी है, ताकि जनता के बीच यह संदेश जाए कि नीतीश का शासन जंगलराज में बदल गया है। लगभग तीन महीना पहले भी नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर 117 घटनाओं का जिक्र किया था। इसके बाद बिहार पुलिस ने सभी की समीक्षा कराई थी।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक बताते हैं कि, “चुनाव के दौरान राजद और तेजस्वी यादव के द्वारा एनडीए सरकार में हुई घटनाओं को जिस तरह से दिखाया जा रहा है, उससे लगता है कि सुशासन का मुद्दा सुशासन बाबू पर भारी पड़ेगा।” दो दशक से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास ही गृह विभाग भी है। इसके बावजूद दो दशक में 65 हजार से अधिक हत्या, 30 हजार से अधिक बलात्कार, एक लाख अपहरण और तीन लाख से अधिक चोरी की घटनाएं हुई हैं।

संगठित अपराध फिर से अपनी जड़ें जमा चुका है

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर इस पूरे मुद्दे पर लिखते हैं कि, “शराबबंदी के बाद बिहार में शराब और सूखे नशे की खपत इतनी बढ़ गई है कि अपराध पर नियंत्रण बहुत मुश्किल हो गया है। जब क्राइम कंट्रोल में राजविंदर सिंह भट्टी, विनय कुमार और कुंदन कृष्णन जैसे 100 फीसदी अपराध विरोधी आईपीएस को भी मुश्किलों का सामना करना पड़े, तो समझिए स्थिति असामान्य है। लोग कहते हैं, बिहार में अब अपहरण तो नहीं हो रहे हैं। मैं मानता हूं कि अपहरण बहुत जोखिम भरा अपराध होता है। फिर शराब के धंधे में बहुत आसानी से अपहरण से काफी अधिक पैसा है, तो फिर अपहरण की जरुरत ही क्या है?”

बिहार राजनीति पर लगातार लिखने वाले दुर्गेश कुमार कहते हैं कि, “बिहार को क्राइम कैपिटल कहना न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है, बल्कि यह करोड़ों मेहनती, संघर्षशील और स्वाभिमानी बिहारवासियों का घोर अपमान भी है। यह एक ऐसी छवि गढ़ने की कोशिश है, जिसमें बिहार को हमेशा अपराध, जातिवाद और पिछड़ेपन से जोड़ दिया जाता है, जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है। यह सिर्फ राजनीतिक मकसदों और पूर्वाग्रह से प्रेरित एक झूठा नैरेटिव है, जिसे बार-बार दोहरा कर बिहार को बदनाम करने की कोशिश की जाती रही है।”

आगे वह बताते हैं कि, “यदि किसी राज्य को क्राइम कैपिटल कहा जाना है, तो उसका आधार क्या होना चाहिए? क्या अपराध के मामले सबसे अधिक होना? क्या संगठित अपराधों की भरमार? या फिर केवल राजनीतिक सुविधा और मीडिया नैरेटिव? अगर हम NCRB यानी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देखें, तो पाएंगे कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में बिहार से अधिक अपराध के मामले दर्ज होते हैं। बलात्कार, साइबर क्राइम, और आर्थिक अपराध जैसे मामलों में बिहार कई राज्यों से पीछे है। फिर भी क्राइम कैपिटल का टैग केवल बिहार को क्यों?”

पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेमंत कुमार झा बताते हैं कि, “कुछ वर्ष पहले इंडिगो एयरलाइंस के बड़े अधिकारी रुपेश को गोली मार दी गई। क्या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, क्या प्रिंट मीडिया, क्या सोशल मीडिया…हर ओर इसी घटना की चर्चा थी। कुछ लोगों को गिरफ्तार कर पुलिस हीरो बन गई।
फिर पूरी घटना को भुला दिया गया। लेकिन असल अनुसंधान का मामला यह था कि इन शूटरों को भाड़े पर किसने रखा, क्या उद्देश्य था उसका। इतने बड़े, इतने सभ्य शरीफ आदमी की हत्या किसने और क्यों करवाई? गोपाल खेमका कांड में भी यही होगा। कनविक्शन रेट यानी अपराध होने के बाद जिम्मेदार अपराधी को सजा मिलने की दर, बिहार में छह प्रतिशत के करीब है। यानी, 100 में 94 अपराधियों को कोर्ट में साबित कर अपराधी को सजा नहीं मिलती। यह डरावना सत्य है। बिहार में एक दौर में संगठित अपराध पर कुछ अंकुश लगा था। लेकिन जानकार लोग कहते मिल रहे हैं कि संगठित अपराध फिर से अपनी जड़ें जमा चुका है। शराब माफिया, बालू माफिया, ये माफिया, वो माफिया।”

विपक्ष का विरोध

10 जुलाई को विपक्ष के द्वारा बिहार बंद किया गया था। बिहार बंद का मुख्य मुद्दा चुनाव आयोग का वोटर पर लिया गया फैसला था। हालांकि विपक्ष के नेताओं ने बिहार में हो रहे हैं अपराधों पर सरकार का पुरजोर विरोध किया।

बिहार सत्य, न्याय और अहिंसा की धरती है। ये मूल्य बिहार की धरती से दुनिया भर में फैले।

लेकिन आज भाजपा और नीतीश जी ने बिहार को भारत का क्राइम कैपिटल बना दिया है।

हम इसे बदलना चाहते हैं।

– राहुल गांधी जी, नेता प्रतिपक्ष pic.twitter.com/Jnl0dqiT43

— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) June 6, 2025

राहुल गांधी मीडिया से बात करते हुए बताते हैं कि, “पटना में व्यवसायी गोपाल खेमका की सरेआम गोली मारकर हत्या ने एक बार फिर साबित कर दिया है – भाजपा और नीतीश कुमार ने मिलकर बिहार को भारत की क्राइम कैपिटल बना दिया है। आज बिहार लूट, गोली और हत्या के साए में जी रहा है। अपराध यहां नया नॉर्मल बन चुका है और सरकार पूरी तरह नाकाम।”

मल्लिकार्जुन खड़गे बताते हैं कि, “मोदी सरकार के खुद के आँकड़े बताते हैं कि बिहार में गरीबी चरम पर है, सामाजिक और आर्थिक न्याय की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है और ठप्प कानून व्यवस्था के चलते, निवेश केवल कागजों तक सीमित रह गया है। इस बार बिहार ने तय कर लिया है कि अब वो बीमार नहीं रहेगा।”

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