बिहार में चुनाव आयोग के विशेष मतदाता गहन परीक्षण को लेकर बुधवार यानी दो जुलाई को विपक्षी ‘इंडिया गठबंधन’ की पार्टियों ने दिल्ली में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार से मुलाकात कर नाराजगी जाहिर की।
नाराजगी इस कदर कि राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के विरोध में नौ जुलाई को महागठबंधन द्वारा चक्का जाम करने की घोषणा की है। तेजस्वी यादव के अलावा पूर्णिया से निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने भी इस प्रक्रिया के विरोध में उसी दिन बिहार बंद और चुनाव आयोग के कार्यालय का घेराव करने का ऐलान किया है।
चुनाव आयोग के खिलाफ विरोध और समर्थन के बीच 24 जून से अभी तक मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर चुनाव आयोग तीन अलग अलग नोटिफ़िकेशन निकाल चुका है। इनमें दस्तावेज के संबंध में बार-बार सुधार किया जा रहा है। इस पूरे आदेश में सबसे दिलचस्प यह है कि चुनाव आयोग ने जन्म तिथि/जन्म स्थान से संबंधित जिन 11 मान्य दस्तावेजों की सूची दी है, उसमें आधार कार्ड, राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस मान्य नहीं हैं।

इस पर राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव मीडिया से कहते हैं कि, “अब चुनाव आयोग अपना आदेश वापस नहीं ले सकता, इसलिए बदलाव होते रहेंगे। आयोग ने जो शर्तें लगाई हैं, उनसे भाजपा के सहयोगियों को दिक्कत होने वाली है।”
वहीं बिहार के वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर उपाध्याय बताते हैं कि, “पिछले दो दिनों में चुनाव आयोग के विज्ञापनों की भाषा बदल गई है। मुझे लगता है कि अंत में यह पूरी प्रक्रिया ही रोकनी पड़ेगी।”
क्या आपके घर बीएलओ पहुंचे हैं?
चुनाव आयोग ने कहा है कि डेढ़ करोड़ घरों तक BLO पहली बार पहुंच चुके हैं। 87% मतदाताओं को गणना प्रपत्र बांटे जा चुके हैं। क्या आपके घर बीएलओ पहुंचे हैं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम बिहार के मुख्यमंत्री आवास से एक किलोमीटर दूर पुणइ चक पहुंचे। बगल में सचिवालय और विधानसभा होने की वजह से यह स्थान पटना का सबसे वीआईपी और भीड़ वाली जगह है।
वहां मौजूद 90% रिक्शा वाले और मजदूरों को इस पूरे विषय की जानकारी भी नहीं थी। उनमें अधिकांश लोग रोजगार के सिलसिले में अपने घरों से दूर राजधानी पटना में रहते है। सचिवालय में काम कर रहे जिन लोगों से हमने बात की, उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं थी। हालांकि इनमें से अधिकांश लोगों के घर बीएलओ नहीं पहुंचे हैं।
शिक्षा विभाग में काम कर रहे बिपिन (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि, “मैं इस फैसले के विरोध या पक्ष में नहीं हूं। लेकिन क्या ENUMERATION फॉर्म भरने के बाद पावती रशीद लोगों को मिल रही है? मान लीजिए किसी ने फॉर्म जमा किया लेकिन नए लिस्ट में नाम नहीं आया तो फिर उस व्यक्ति के पास कुछ तो सबूत होने चाहिए दिखाने के लिए कि मैंने फॉर्म भर के जमा किया है या बीएलओ ने फॉर्म मेरे घर आकर भरवाया है। कुछ तो आम वोटरों के पास सबूत होने चाहिए।”
वह आगे कहते हैं, “चुनाव आयोग का कहना है कि जिनका नाम बिहार में 2003 की वोटर लिस्ट में है, उन्हें और उनके बच्चों को कोई दस्तावेज नहीं देना है। सही है? तो फिर ऐसे लोगों से फॉर्म ही क्यों भरवाना? और, अगर उनसे फॉर्म भरवाना ज़रूरी है, तो चुनाव आयोग उन्हें यह सत्यापित करते हुए फॉर्म दे कि आपका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में है, आपको कोई दस्तावेज नहीं देना है, आप केवल फॉर्म भर कर दें। यह कहना कि वोटर लिस्ट अपलोड कर दी गई है, आप उसे डाऊनलोड करें, उसकी कॉपी दें, बिल्कुल असंवेदनशील बात है।”
आम लोगों में गहरा भ्रम फैला हुआ
बिहार के गांवों में चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देशों के बाद लोगों को काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं। कई लोगों को अभी भी इस पूरी कहानी के बारे में मालूम नहीं है। वहीं जिस घर में सरकारी मुलाजिम पहुंच चुके हैं, वहां लोग चुनाव आयोग की ओर से मांगे गए डॉक्यूमेंट्स को बनवाने के लिए सरकारी कार्यालयों में भाग-दौड़ कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने 25 जुलाई तक वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का काम पूरा करने को कहा है। इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा परेशान 2.93 करोड़ ऐसे लोग हैं, जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं था।”
आसान भाषा में कहें, तो चुनाव आयोग की वोटिंग शर्तों को लेकर आम लोगों में गहरा भ्रम फैला हुआ है। अधिकतर लोगों के पास अपनी पहचान के लिए सिर्फ आधार कार्ड है, जिसे चुनाव आयोग प्रमाण के लिए मात्र रद्दी कागज़ मान रहा है। हज़ारों लोग अपने कागजात ले कर भटक रहे हैं। बीएलओ उनसे कह रहे हैं कि नया प्रमाण पत्र बनवाइये। करोड़ों लोग रोजी-रोटी के लिए बिहार से बाहर हैं, जबकि मात्र 20 दिन का समय कागजात बनवाने के लिए बचा है।
बीएलओ के रूप में काम कर रही एक अधिकारी मीडिया से सीधे तौर पर कहती हैं कि, “लोगों के पास जरूरी कागज नहीं हैं। इतने कम दिनों में यह पूरा काम बहुत मुश्किल है।” सोशल मीडिया पर यह वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रहा है।
बिहार जहां एक बड़ा तबका इस पूरे मुद्दे से अनजान है, वहीं दूसरा तबका इसका विरोध कर रहा है और तीसरा तबका कह रहा है कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के तहत वोटर वेरीफिकेशन की प्रक्रिया ठीक है, क्योंकि इससे मुस्लिम घुसपैठियों से निजात मिलेगी।
नागरिकता छीन कर सरकारी योजनाओं से बाहर रखने की साजिश
जेएनयू में पढ़ाई कर रहें बिहार के सत्यम दुबे बिहार की राजनीति पर काफी काम कर चुके हैं। वह बताते हैं कि, “बिहार के अधिकांश इलाकों में पुरुष दिल्ली और पंजाब कमाने जाते हैं। अभी रोपनी का टाइम भी है। 75 प्रतिशत हिस्सा आपदा से प्रभावित रहता है। जहां उन्हें उनकी जान की खबर नहीं..वहां इतने कम दिनों में सही सलामत कागज मिलेगा? साल 2003 में इस प्रक्रिया में डेढ़ साल लगे थे, इस बार ये सिर्फ एक माह में हो जाएगी? अनाथ, भूमिहीन और ट्रैफिकिंग की शिकार लड़कियां क्या करेंगे? बिहार की एक बड़ी आबादी की पॉलिटिकल सिटीजनशिप पर आफत है।”
बहुजन मुद्दे के प्रसिद्ध लेखक सुभाष चंद्र कुशवाहा इस पूरे मुद्दे पर लिखते हैं कि,”लोगों के पास कागज क्यों नहीं है? क्या वे लापरवाह हैं? मूर्ख हैं? या इस देश के नागरिक नहीं हैं? अब तक वे ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से भारत में थे? कतई नहीं। हमारे देश में सामंती व्यवस्था का ढांचा इस तरह था कि ज्यादातर गरीबों के पास घर का भी कागज नहीं है? व्यापक आबादी की मजदूरी से पेट पालना तक जिंदगी थी। अब आप उन्हें नागरिकता सिद्ध करने के लिए ग्यारह कागज मांग रहे हैं? यह एक प्रकार से वंचितों पर आक्रमण है।
युवाओं के लिए काम कर रही संस्था युवा हल्ला बोल से जुड़े प्रशांत इस मुद्दे पर कहते हैं कि, “एक बार अगर वोटर लिस्ट से नाम बाहर हुआ तो राशन,मनरेगा में मजदूरी का अधिकार पेंशन आदि सभी सरकारी योजनाओं से उस नागरिक का नाम काटा जा सकता है। करोड़ों नागरिकों से उनकी नागरिकता छीन कर उन्हें सभी सरकारी योजनाओं से बाहर रखने की साजिश रची जा रही है। याद रखिए जिन लोगों को इस मुसीबत में डाला जा रहा है वे सभी मुसलमान नहीं हैं। उनमें बड़ी तादाद में दलित, ओबीसी अन्य जातियों के गरीब भी शामिल हैं।”
वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र नाथ मिश्रा लिखते हैं कि, “चुनाव आयोग का काम होना चाहिए कि देश में 18 साल के ऊपर का हर नागरिक हर हाल में वोट दे सके। आयोग को इसमें मदद करनी चाहिए। लेकिन आयोग ने अपना काम वोटर को हटाने का ले लिया है। मतलब अधिक से अधिक नाम न जुड़े।”
विपक्ष इस मुद्दे पर मुखर
तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया के अलावा अखबार में लेख लिखकर भी चुनाव आयोग से सवाल किए हैं। तेजस्वी यादव ने कहा है कि बिहार चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की कवायद ना केवल संदेहास्पद, बल्कि लोकतंत्र की नींव पर सीधा हमला है। यह गरीबों के वोट काटने की गहरी साजिश है।
बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि “चुनाव आयोग के अधिकारियों का रवैया देखकर ऐसा लगता था कि उन्होंने ठान लिया है कि बिहार के 20 फीसदी वोटरों से उनका अधिकार छीन लेना है।” राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने इसे ‘नोटबंदी, देश बंदी के बाद वोटबंदी’ कहा है।
कई पत्रकारों के मुताबिक चुनाव आयोग के इस आदेश ने बिहार के विपक्षी दलों को ही नहीं, बल्कि एनडीए में भाजपा के कई सहयोगी दलों को भी बेचैन कर दिया है। हालांकि अभी सत्ताधारी पार्टी भाजपा के मुख्य सहयोगी जद(यू) ने चुनाव आयोग के इस कदम का समर्थन किया है।
विपक्ष के आरोप को खारिज करते हुए भाजपा नेता और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि, “विपक्ष गलतबयानी करके मतदाताओं को गुमराह करना चाहता है। साल 2003 में भी पुनरीक्षण महज 31 दिनों में हो गया था।”
वहीं पूरे मुद्दे पर चुनाव आयोग ने कहा है कि, “प्रत्येक निर्वाचन से पूर्व मतदाता सूची का पुनरीक्षण जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(2)(ए) और निर्वाचक पंजीकरण नियमावली, 1960 के नियम 25 के अंतर्गत अनिवार्य है। आयोग बीते 75 साल से यह काम कभी संक्षिप्त तो कभी गहन रूप में करता रहा है।”
:: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ::