रायपुर। छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में कर्मचारियों के कान पकड़कर माफी मंगवाने का मामला सामने आया है। कान पकड़कर माफी मंगवाने का काम किसी और ने नहीं बल्कि कबीरधाम के कलेक्टर गोपाल वर्मा ने किया है। इस घटना का वीडियो भी सामने आया है, जिसमें साफ नजर आ रहा है कि कलेक्टर ने कहा कि कल से ऐसा हुआ तो निलंबित कर दूंगा ।
कलेक्टर के इस बर्ताव को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया जा रहा है। कर्मचारी संगठन ने मांग की है कि सरकार कलेक्टर को निलंबित करे। संगठन ने कहा कि कलेक्टर की यह बर्ताव सरकारी सेवा आचरण के खिलाफ है। वहीं, अधिवक्ताओं ने कहा कि शारीरिक दंड देना सरकारी सेवा आचरण नियमों का भी उल्लंघन है।
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इस मसले पर thelens.in ने संविधान और कानून के जानकारों से बात की। विशेषज्ञ कहते हैं कि सम्मान पाना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। कान पकड़कर माफी मंगवाना किसी भी कर्मचारी की गरिमा के खिलाफ है और ऐसा करके कलेक्टर ने उन कर्मचारियों की गरिमा को ठेस पहुंचाई है।
छत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग के पूर्व चेयरमैन रिटायर्ड जस्टिस महेंद्र सिंघल ने thelens.in से कहा कि अधीनस्थ कर्मचारियों को इस तरह का दंड देना गलत है और मानवाधिकारों के खिलाफ भी है। पीड़ित पक्ष आयोग में शिकायत करे तो जिम्मेदार अफसर पर कार्रवाई हो सकती है।
कर्मचारी नेता विजय कुमार झा ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मांग की है कि तत्काल कलेक्टर को निलंबित किया जाए। यह अमानवीय कृत्य है। कलेक्टर या किसी भी अधिकारी को ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार नहीं है।
अधिवक्ता शाहिद सिद्दीकी कहते हैं कि इस तरह से माफी मंगवाना पूरी तरह गलत है। अगर कलेक्टर नाराज हैं तो वे अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकते हैं। शो कॉज नोटिस के साथ-साथ आधे दिन की सैलरी कटवा सकते हैं, लेकिन इस तरह से किसी भी कर्मचारी की गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम वे नहीं कर सकते हैं।
अधिवक्ता विपिन अग्रवाल कहते हैं कि कलेक्टर द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारी को शारीरिक दंड देना पूरी तरह से गलत है और कानूनी रूप से अवैध है। कर्मचारी को शारीरिक दंड देना न केवल कर्मचारी के मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह सरकारी सेवा आचरण नियमों का भी उल्लंघन है।
गेट पर खड़े होकर नजर रख रहे थे कलेक्टर
दरअसल, कलेक्टर आज सरकारी दफ्तरों जिला पंचायत, अस्पताल और स्कूल के निरीक्षण के लिए गए थे। इस दौरान जब वे जिला पंचायत के दफ्तर पहुंचे तो वहां उन्हें पता चला कि कुछ कर्मचारी ड्यूटी पर आए नहीं हैं। वे दफ्तर के गेट में खड़े हो गए और वक्त पर नहीं आने वाले कर्मचारियों पर नजर रखने लगे। इसी दौरान करीब दर्जन भर कर्मचारी देरी से दफ्तर पहुंचे। इस पर पहले तो कलेक्टर ने सभी को फटकार लगाई और सस्पेंड करने की धमकी दी। इसके बाद कान पकड़कर माफी मांगने को कहा। फिर दोबारा ऐसा नहीं होने की चेतावनी देकर सभी को अंदर जाने दिया।
तीनों जगहों पर कलेक्टर ने 42 कर्मचारियों को नोटिस जारी किया गया। वहीं, कुछ के कान पकड़कर माफी मांगने पर उन्हें छोड़ दिया गया और कल से देरी से न आने की चेतावनी दी गई।
लेंस अभिमत – सानी गरिमा के विरुद्ध
कवर्धा कलेक्टर गोपाल वर्मा ने देर से दफ्तर आने वाले कर्मचारियों को कान पकड़वा कर जिस तरह बुलवाया कि आगे से ऐसी गलती नहीं होगी, उससे एक सरकारी महकमे में काम करने वाले इंसानों की गरिमा तार–तार हुई है। दफ्तर देर से आने पर प्रशासनिक दंड के प्रावधान हैं लेकिन इन प्रावधानों में यह शामिल नहीं है कि कोई अफसर अपने मातहत कर्मचारियों के मानवाधिकारों का ऐसा हनन करेगा, उनकी गरिमा की ऐसी धज्जियां उड़ाएगा। आज अगर इस प्रदेश में ट्रेड यूनियन आंदोलन मजबूत होता तो शायद अब तक कलेक्टर का माफीनामा आ चुका होता, लेकिन जब प्रशासन को सामंती तौर तरीकों से हांके जाने की प्रवृत्ति बलवती हो तो मानवीय गरिमा कुचली ही जाएगी। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को ऐसी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना ही चाहिए।