The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
  • More
    • स्क्रीन
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • आंकड़ा कहता है
    • टेक्नोलॉजी-ऑटोमोबाइल्‍स
    • धर्म
    • नौकरी
    • साहित्य-कला-संस्कृति
    • सेहत-लाइफस्‍टाइल
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
Anderson–Tendulkar Trophy : 9 कैच छोड़कर लीड्स टेस्ट हारा भारत, 5 शतक भी काम न आए, 5 मैचों की सीरीज में इंग्लैंड 1-0 से आगे
CGPSC की मुख्य परीक्षा 26 जून को, दो पालियों में आयोजित होगी परीक्षा
मोदी की रैली में नीतीश की ताकत!
नगरनार स्टील प्लांट ने सालों से काम कर रहे मजदूरों को निकाला, भाजपा नेत्री ने कहा- बस्तर में विकास नहीं विनाश हो रहा
जो इस डॉक्टर के होने का मतलब ना जान सके
इमरजेंसी में प्रतिशोध की राजनीति : गांधीवादी उद्योगपति के यहां डलवा दिए गए थे आयकर के छापे!
जॉर्ज ऑरवेल की जन्मस्थली : बिहार में एक साहित्यिक धरोहर की दुर्दशा
ASI के बेटे बहु ने युवक की हत्या कर शूटकेस में सीमेंट से किया पैक, दिल्ली से रायपुर लाए गए आरोपी
ओडिशा में दो दलित व्यक्तियों को घुटनों पर चलने, घास खाने और गंदा पानी पीने पर किया मजबूर
छत्तीसगढ़ प्रभारी सचिन पायलट ने शहीद आकाश राव गिरिपुंजे के परिजनों से की मुलाकात, निवास पर श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • देश
  • दुनिया
  • लेंस रिपोर्ट
  • लेंस संपादकीय
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
  • More
    • स्क्रीन
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • आंकड़ा कहता है
    • टेक्नोलॉजी-ऑटोमोबाइल्‍स
    • धर्म
    • नौकरी
    • साहित्य-कला-संस्कृति
    • सेहत-लाइफस्‍टाइल
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.

Home » जॉर्ज ऑरवेल की जन्मस्थली : बिहार में एक साहित्यिक धरोहर की दुर्दशा

लेंस रिपोर्ट

जॉर्ज ऑरवेल की जन्मस्थली : बिहार में एक साहित्यिक धरोहर की दुर्दशा

Vishwajeet Mookherjee
Last updated: June 24, 2025 11:37 pm
Vishwajeet Mookherjee
Share
George Orwell's birthplace
SHARE
विश्वजीत मुखर्जी, स्वतंत्र पत्रकार

आज जब दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है, ऐसे में उस महान साहित्यकार को याद करना चाहिए जिसने कहा था, “युद्ध शांति है।” जिन्होंने ‘एनिमल फार्म’ और ‘1984’ जैसे विख्यात उपन्यास लिखे, जो विश्व युद्ध की राजनीति पर कटाक्ष हैं। आज उस लेखक की 122वीं जयंती है और उनके जन्मस्थली को असामाजिक तत्वों ने नशा, जुआ और शौच करने का अड्डा बना दिया है।

मैं बात कर रहा हूं अधिनायकवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी कलम को आवाज देने वाले 20वीं सदी के महान पत्रकार और उपन्यासकार जॉर्ज ऑरवेल की।

25 जून, 1903 को मोतिहारी में जन्मे जॉर्ज ऑरवेल की जन्मस्थली को हालांकि साल 2010 में ही राज्य सरकार ने संरक्षित क्षेत्र घोषित किया था। साल 2012 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जन्मस्थान का भ्रमण किया। उसी दौरान उन्होंने लेखक के जन्मस्थान का नवीनीकरण कर इसे ऑरवेल पार्क व म्यूजियम की शक्ल देने की बात कही। साल 2014 में ऑरवेल जन्मस्थली का जीर्णोद्धार हुआ।

सरकार द्वारा सुरक्षा गार्ड भी तैनात किए गए थे, जो अब नहीं हैं। पिछले कुछ सालों में इस साहित्यिक धरोहर की हालत बिगड़ती गई। ऐसा लगता है कि अब सरकार और प्रशासन भी जॉर्ज ऑरवेल को महज एक अंग्रेज और गुलामी का प्रतीक समझते हैं। आज जन्मस्थली की दुर्दशा देखकर यही कहा जा सकता है कि सरकारी पैसे की बर्बादी हो रही है।

अंग्रेजी शासनकाल में ऑरवेल के पिता, रिचर्ड डब्ल्यू ब्लेयर, मोतिहारी के अफीम विभाग में सब डेप्युटी एजेंट थे। हालांकि ऑरवेल ने अपनी जिंदगी का महज एक ही साल इस शहर में गुजारा, बाद में वे अपनी मां और बड़ी बहन के साथ लंदन चले गए और फिर कभी अपनी जन्मभूमि पर वापस आने का उन्हें मौका नहीं मिला।

साल 1983 में लंदन से आए पत्रकार इयान जैक ने इस प्रसिद्ध लेखक के जन्मस्थान की खोज की। इयान जैक की रिपोर्ट देश-विदेश के अखबारों में छपी और लोगों को पहली बार लेखक के जन्मस्थान के बारे में पता चला। जिस घर में ऑरवेल का जन्म हुआ, वह अंग्रेज शासनकाल में अफीम विभाग में काम करने वाले अफसरों के रहने के लिए था। फिर बाद में इसे स्थानीय गोपाल शाह हाई स्कूल का छात्रावास बना दिया गया। 80 के दशक में इस जगह का इस्तेमाल शिक्षकों के क्वार्टर के रूप में होने लगा। ढाई एकड़ में फैले परिसर के बीचों बीच एक खंडहर है, जो उस वक्त अफीम का गोदाम हुआ करता था। परिसर के किनारे दो कमरों का घर है, जिसमें ऑरवेल का जन्म हुआ था।

1983 के बाद लेखक का जन्मस्थान फिर गुमनाम हो गया था। 2003 में जब लेखक के सौवें जन्मदिवस पर देश-विदेश से पत्रकारों का समूह ऑरवेल के जन्मस्थान पहुंचा, तब यहां के कुछ लोगों को इस जगह का महत्व पता चला। उसी वक्त से स्थानीय रोटरी मोतिहारी लेक टाउन लेखक के जन्मस्थान के विकास के लिए काम कर रही है। पिछले दो दशकों से हर साल ऑरवेल के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर रोटरी लगातार कार्यक्रमों का आयोजन करती आई है।

रोटरी के लगातार प्रयासों ने ही राज्य सरकार का ध्यान इस तरफ खींचा और 2010 में बिहार सरकार के कला एवम् संस्कृति विभाग ने ऑरवेल के जन्मस्थान को धरोहर के रूप में घोषित किया। साथ ही इसे संग्रहालय के रूप में विकसित कर अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल बनाने का निश्चय भी किया। योजना यह भी थी कि संग्रहालय के साथ एक पुस्तकालय का भी निर्माण हो, जिसमें लेखक की जीवनी और उनकी रचनाओं को हिंदी में अनुवाद कर स्थानीय लोगों के पढ़ने के लिए रखा जाए।

अप्रैल 2012 में राज्य के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार ने इस जगह का दौरा किया और ऑरवेल के जन्मस्थान के विकास के लिए हर संभव कार्य करने की बात कही। जन्मस्थान के विकास के लिए सरकार ने धनराशि भी अनुमोदित की।

साल 2014 में ही लेखक के 111वें जन्मदिवस पर जन्मस्थली के जीर्णोद्धार का काम बिहार सरकार द्वारा शुरू किया गया। मगर इसके साथ ही एक नया विवाद खड़ा हो गया। ऑरवेल जन्मस्थली के विकास का विरोध होने लगा। तर्क यह दिया कि ऑरवेल से भारतीय समाज को क्या मिला है जो उनके घर को संरक्षित करें। गौर करने वाली बात है कि पिछले 20 सालों में देश-विदेश की कई नामी हस्तियां लेखक के जन्मस्थान को देखने आ चुकी हैं। इनमें से एक नाम महात्मा गांधी के पौत्र, गोपाल कृष्ण गांधी का भी है। उन्होंने लेखक को श्रद्धांजलि देकर जगह के विकास के बारे में सहमति जताई।

बहरहाल, इन तमाम विवादों के बावजूद ऑरवेल जन्मस्थली का नवीकरण किया गया था। अब तक केवल लेखक के घर को नए करह से बनाया गया है और परिसर को चारदीवारी से घेर दिया गया है। सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा गार्ड भी तैनात किए गए थे। बाकी की परियोजनाएं अभी भी अधर में हैं। मगर इतने प्रयासों के बावजूद, आज भी शहर में शायद ही कोई आम इंसान हो जो बता सके कि यह रास्ता ऑरवेल के घर की ओर जाता है।

यह अशिक्षा और लेखक के बारे में कम जानकारी का ही नतीजा है कि आज भी ऑरवेल का जन्मस्थान वीरान पड़ा है। मोतिहारी जैसे शहर में, जहां अंग्रेजी पढ़ने-बोलने वालों की संख्या बहुत कम है, वहां एक अंग्रेज साहित्यकार के जन्मस्थान को संवारना अपने आप में ही विचार करने वाली बात है। दरअसल, ऑरवेल की रचनाएं कॉलेज स्तर में ही पढ़ाई जाती हैं और शहर में मुश्किल से एक या दो ऐसे कॉलेज हैं, जहां अंग्रेजी साहित्य पर जोर दिया जाता है।

साल 1922 से 1927 तक ऑरवेल ने बर्मा में ब्रिटिश राज के पुलिस की नौकरी की। उन दिनों बर्मा भारत का ही एक अभिन्न भाग था। बर्मा में हो रहे मासूम भारतीयों पर अत्याचार को ऑरवेल सहन नहीं पाते और उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़ दी। उसके बाद से ऑरवेल ने साम्राज्यवाद और अधिनायकवाद के खिलाफ अपनी कलम को पहचान दी। लेखक की पहली बहुचर्चित किताब “बर्मीज डेज” में उनकी विचारधारा की प्रथम झलक मिलती है। इस तरह से देखा जाए तो ऑरवेल और भारत का रिश्ता बहुत गहरा है। न केवल जन्मभूमि होने के नाते, बल्कि अपनी विचारधारा के बीज भी ऑरवेल ने इसी भारतीय मिट्टी में बोए।

वैसे तो एक साहित्यकार से अपने राष्ट्रपिता की तुलना करने का कोई औचित्य नहीं होता। मगर फिर भी देखें तो महात्मा गांधी और जॉर्ज ऑरवेल, दोनों ही कलम के धनी थे। एक के लिए कर्मभूमि तो दूसरे की जन्मभूमि रही मोतिहारी आज इन दो नामों की वजह से विश्व भर में रोशन है। मगर सच्चाई यही है कि आज ऑरवेल और गांधी केवल किताबों के पन्नों तक ही सिमट कर रह गए हैं।

कुछ सालों पहले तक लेखक की जन्मस्थली पर जहां उनकी मूर्ति लगी थी, वहां आज उनकी 122वीं जयंती पर असामाजिक तत्व जुआ खेल रहे हैं।

TAGGED:BiharGeorge OrwellTop_News
Share This Article
Email Copy Link Print
Previous Article ASI के बेटे बहु ने युवक की हत्या कर शूटकेस में सीमेंट से किया पैक, दिल्ली से रायपुर लाए गए आरोपी
Next Article Politics of revenge in emergency इमरजेंसी में प्रतिशोध की राजनीति : गांधीवादी उद्योगपति के यहां डलवा दिए गए थे आयकर के छापे!

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

हत्‍या के 11 दिन बाद मिला पति का शव, पत्‍नी लापता, हानीमून मनाने इंदौर से गए थे मेघालय

द लेंस डेस्क। मेघालय के सोहरा (चेरापूंजी) में मध्य प्रदेश के एक नवविवाहित जोड़े के…

By Lens News Network

पहलगाम आतंकी हमला इंटेलिजेंस फेलियर, इस्तीफा दें गृहमंत्री : भूपेश बघेल

पहलगाम आतंकी हमला: रायपुर। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर छत्तीसगढ़ के…

By Lens News

Undemocratic and uncivilized

The new penchant for bulldozers that the current regime has developed over the last few…

By Editorial Board

You Might Also Like

IPL T 20
खेल

IPL T20 दुनिया की टॉप क्रिकेट लीग, दूसरी टॉप लीग बनने की होड़ में BBL, SA20 सबसे आगे

By Poonam Ritu Sen
Yuddh Viram at Bastar
आंदोलन की खबर

बस्तर में युद्ध विराम हो, 22 संगठनों की सरकार और माओवादियों से अपील

By Lens News
Kedarnath Landslide
देश

केदारनाथ धाम में फिर हादसा, लैंडस्‍लाइड में दो श्रद्धालुओं की मौत, तीन घायल

By Lens News Network
छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में स्कूलों के समय में बदलाव, अब 7 बजे से 11 बजे तक खुलेंगे स्कूल

By Lens News
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?