DOG ATTACK IN INDIA : सुबह की सैर, बच्चों का स्कूल जाना, या बस पड़ोस में टहलना, ये रोजमर्रा की बातें अब भारत में डर का सबब बन चुकी हैं। सड़कों पर आवारा कुत्तों का आतंक ऐसा साया बनकर मंडरा रहा है कि हर कदम पर खतरे की आहट सुनाई देती है। हर शहर और गांव में लोग इस डर के साथ जी रहे हैं। ये समस्या भारत के किसी एक कोने की नहीं है बल्कि हर क्षेत्र से सामने आ रही है। माएं अपने बच्चों को स्कूल भेजने से पहले दो बार सोचती हैं, बुजुर्ग घर से निकलने में हिचकते हैं और बच्चे पार्क में खेलने की बजाय घरों में कैद हो रहे हैं। यह सिर्फ एक समस्या नहीं, बल्कि लाखों परिवारों की जिंदगी पर छाया एक गहरा संकट है। चलिए इस मामले को आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर समझतें हैं कि यह आतंक इतना बेकाबू क्यों हो गया है।
नोएडा: रोज 500 लोग बन रहे शिकार
जनवरी से मई 2025 तक नोएडा में 74,550 लोग कुत्तों के काटने का शिकार बन चुके हैं। यानी हर दिन औसतन 500 लोग इस आतंक का सामना कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक इनमें 52,714 मामले आवारा कुत्तों के हैं, जबकि 16,474 मामले पालतू कुत्तों के। डिप्टी सीएमओ टीकम सिंह ने मीडिया में दिए बयान में कहा ‘हम नोएडा अथॉरिटी और पशु चिकित्सा अधिकारियों के साथ मिलकर हॉटस्पॉट्स की पहचान कर रहे हैं, लेकिन समस्या बहुत बड़ी है।’
जनवरी 2025: 13,559 मामले
फरवरी 2025: 15,830 मामले
मार्च 2025: 15,131 मामले
अप्रैल 2025: 15,286 मामले
मई 2025: 14,744 मामले
यह आंकड़े सिर्फ नोएडा के हैं, लेकिन पूरे भारत में ऐसी कहानियां आम हैं। नोएडा में 60% मामले गंभीर हैं, जहां गहरे घेरे, कट या खून बहने की स्थिति देखी गई। लोग रोज एंटी-रेबीज इंजेक्शन लेने के लिए अस्पतालों में लाइन लगाते हैं। स्वास्थ्य विभाग हॉटस्पॉट्स की पहचान कर रहा है, लेकिन समस्या बेकाबू है।
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भारत में आवारा कुत्तों का आतंक: प्रमुख मामले
आवारा कुत्तों की समस्या सिर्फ नोएडा या देश के किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। यह पूरे भारत में एक गंभीर संकट बन चुका है। कुछ दिल दहला देने वाले मामले भी है :
2007, बेंगलुरु: दो बच्चों को कुत्तों के झुंड ने मार डाला।
2014, दिल्ली: दो महीने की बच्ची को आवारा कुत्तों ने मार डाला। जनता ने नगर निगम की निष्क्रियता पर गुस्सा जताया।
2016, केरल: एक 65 साल की महिला और 90 साल के पुरुष की कुत्तों के हमले में मौत। गुस्साए लोगों ने 100 कुत्तों को मार डाला।
2018, सितापुर, उत्तर प्रदेश: 14 बच्चों की ‘मानव-भक्षी’ कुत्तों के हमले में मौत।
2020, फरुखाबाद, उत्तर प्रदेश: एक नवजात शिशु को अस्पताल की खुली खिड़की से कुत्तों ने मार डाला।
2022, नोएडा: 7 महीने के शिशु की मौत। लोगों ने मोमबत्ती जुलूस निकाले।
2023, हैदराबाद: 4 साल के बच्चे की मौत का वीडियो वायरल हुआ, जिसने राष्ट्रीय बहस छेड़ दी।
2023, बेगूसराय, बिहार: 9 महिलाओं को ‘मानव-भक्षी’ कुत्तों ने मार डाला।
2023, अहमदाबाद: वाघ बकरी टी ग्रुप के निदेशक पराग देसाई की कुत्तों से बचने के दौरान मृत्यु।
ये मामले दिखाते हैं कि यह समस्या कितनी गंभीर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक भारत में विश्व के 36% रेबीज मौतें होती हैं, जिनमें ज्यादातर आवारा कुत्तों के काटने से होती हैं। हर साल 18,000-20,000 लोग रेबीज से मरते हैं, जिनमें 30-60% बच्चे हैं।
क्यों बढ़ रहा है यह संकट?
आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ने के पीछे कई कारण हैं:
बेकाबू आबादी: भारत में 6-8 करोड़ आवारा कुत्ते हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। ABC नियम 2001 और 2023 के तहत नसबंदी हो रही है, लेकिन इसका दायरा सीमित है। शहरों में कचरा प्रबंधन की कमी से कुत्तों को भोजन मिलता रहता है, जिससे उनकी संख्या बढ़ती है। कुछ लोग सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाते हैं। इससे कुत्ते उस इलाके को अपना क्षेत्र मानकर अजनबियों पर हमला करते हैं। कई मालिक अपने कुत्तों को बिना पट्टे के छोड़ देते हैं या प्रशिक्षित नहीं करते, जिससे वे आक्रामक हो जाते हैं। भारत में हर साल 17 लाख कुत्तों के काटने के मामले दर्ज होते हैं। रेबीज का कोई इलाज नहीं है और इसके बारे में जागरूकता की कमी है। : नगर निगमों के पास नसबंदी और टीकाकरण के लिए पैसा और प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं।
नसबंदी: कितना असर, कितनी कमियां?
ABC नियम के तहत नसबंदी और टीकाकरण को बढ़ावा दिया गया है। कुछ शहरों में यह सफल रहा, जैसे –
मुंबई: 2018 से कुत्तों के काटने में 30% कमी और 5 साल से रेबीज से कोई मौत नहीं। 1.5 लाख कुत्तों की नसबंदी हुई।
वडोदरा: 2017-2022 में 24,000 कुत्तों की नसबंदी से 86% आबादी नियंत्रित हुई।
जयपुर: 2004-2010 में कुत्तों की संख्या और काटने के मामलों में कमी।
लेकिन कई चुनौतियां हैं-
सीमित दायरा: WHO के मुताबिक, 70-80% कुत्तों की एक साथ नसबंदी जरूरी है, जो भारत में संभव नहीं।
आक्रामकता बरकरार: नसबंदी से आबादी कम होती है, लेकिन खाना खिलाने से कुत्ते क्षेत्रीय और आक्रामक रहते हैं।
ग्रामीण इलाकों में कमी: नसबंदी बड़े शहरों तक सीमित है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह सुविधा नहीं है।
त्वचा रोग: जोधपुर के एक अध्ययन (2006) में पाया गया कि नसबंदी के बाद कुत्तों में त्वचा रोग बढ़े।
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कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट (2023): ABC नियम, 2023 को लागू करने और हाईकोर्ट के परस्पर विरोधी फैसलों की समीक्षा का आदेश।
दिल्ली हाईकोर्ट (2021): कुत्तों को खाना खिलाने का अधिकार, लेकिन दूसरों को परेशानी न हो। 2024 में खाना खिलाने से बढ़ते हमलों पर सरकार से जवाब मांगा।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (2023): कुत्तों के काटने पर मुआवजा, प्रति दांत का निशान 10,000 रुपये और प्रति 0.2 सेमी घाव के लिए 20,000 रुपये।
बॉम्बे हाईकोर्ट (2023): खाना खिलाने के लिए फीडिंग स्टेशन बनाने का सुझाव।
ABC नियम, 2022 में खाना खिलाने के लिए निर्धारित स्थान और समय का प्रावधान जोड़ा गया, लेकिन इसका पालन कम हो रहा है।
आवारा कुत्तों से बचाव के उपाय
1 बच्चों को सिखाएं: बच्चों को कुत्तों के व्यवहार की शिक्षा दें। आंखों में न देखें, अचानक न भागें, शांत रहें। ‘पेड़ बनें’ तकनीक अपनाएं यानी स्थिर खड़े रहें, नीचे देखें। कुत्तों को न छेड़ें। स्कूलों में NGO जैसे WSD से जागरूकता वर्कशॉप करवाएं। सोसाइटी में ‘कुत्तों से सावधान’ साइनबोर्ड लगवाएं।
2 कुत्ता अगर काटे भी तो पहले घाव को 10-15 मिनट साबुन-पानी से धोएं। 24 घंटे में एंटी-रेबीज वैक्सीन (ARV) शुरू करें; गंभीर मामलों में रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन लें। टिटनेस इंजेक्शन लें। सरकारी अस्पतालों में ARV मुफ्त है। घटना का विवरण नोट करें। समुदाय में रेबीज जागरूकता फैलाएं।
3 फीडिंग स्टेशन: RWA से निर्धारित फीडिंग स्टेशन बनवाएं, जो बच्चों के खेलने की जगह से दूर हो। ABC नियम, 2023 का पालन करें। 2-3 जिम्मेदार फीडर नियुक्त करें, सुबह 8-9 बजे खाना दें। NGO जैसे PETA से मदद लें।
4 नगर निगम में शिकायत: नोएडा अथॉरिटी (0120-2422214, www.noidaauthorityonline.com) पर शिकायत करें। घटना, कुत्ते का विवरण, हॉटस्पॉट बताएं। 7 दिन में कार्रवाई न हो तो AWBI को लिखें। सामूहिक शिकायत और RTI से दबाव बनाएं।
5 पालतू कुत्तों के लिए लाइसेंस/प्रशिक्षण अनिवार्य करें। शेल्टर और गोद लेने के कार्यक्रम शुरू करें। समुदाय में रेबीज जागरूकता सत्र आयोजित करें।
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