अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने ग़ाज़ा से 23 लाख फलस्तीनियों को बेदखल करने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्ताव पर सफाई दी कि यह अस्थायी कदम है। संभवतः ऐसा वैश्विक स्तर पर आई तीखी प्रतिक्रिया के बाद किया गया है, लेकिन दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद से ही ट्रंप मनमाने ढंग से जिस तरह के फैसले ले रहे हैं, उससे साफ है कि उन्हें वैश्विक बिरादरी की कोई फिक्र नहीं है और संयुक्त राष्ट्र की तो बात खैर जाने ही दें! इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने ग़ाज़ा को कब्जे में लेने का ऐलान कर पश्चिम एशिया में इस्राइल और फलस्तीन के रूप में एक समय सभी पक्षों को स्वीकार्य दो राज्य के सिद्धांत की धज्जियां उड़ा दी है। दोहराने की जरूरत नहीं कि सोवियत संघ के बिखराव और निर्गुट सम्मेलन की गैरमौजूदगी ने अमेरिका को निरंतर निरकुंश बना दिया है। नतीजतन, आज हालात ऐसे हो गए हैं कि ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका में कथित तौर पर अवैध ढंग से रह रहे भारतीय प्रवासियों को कैदियों की तरह हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियों के साथ भारत भेजा है! यह वाकई शर्मनाक है, जबकि कोलंबिया जैसे देश ने अपने प्रवासियों को लेकर आए अमेरिका के सैन्य विमानों को अपनी धरती पर उतरने ही नहीं दिया। ग़ाज़ा में फलस्तीनियों की बेदखल का मसला हो या प्रवासी भारतीयों की वापसी का, भारत की ओर से साफ संदेश जाने की जरूरत है।
ग़ाज़ा पर ट्रंप का प्रस्ताव मनमाना और अस्वीकार्य
