The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • Podcast
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
  • More
    • English
    • स्क्रीन
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • आंकड़ा कहता है
    • टेक्नोलॉजी-ऑटोमोबाइल्‍स
    • धर्म
    • नौकरी
    • लेंस अभिमत
    • साहित्य-कला-संस्कृति
    • सेहत-लाइफस्‍टाइल
    • अर्थ
Latest News
मुख्तार अंसारी के निशानेबाज बेटे को कोर्ट से बड़ी राहत
मणिपुर में उग्र प्रदर्शन जारी, इंटरनेट बंद होने से कई अखबारों का प्रकाशन बाधित
जन्नत की हक़ीक़त
बिहार : देश के सबसे गरीब राज्य के चुनाव में कॉर्पोरेट का रंग
डॉक्टर निलंबन मामले में गोवा के स्वास्थ्य मंत्री ने मांगी माफी, बोले- मेरे शब्द गलत थे, मैं मरीज के लिए खड़ा था
इजरायली सेना की हिरासत में नोबल विजेता ग्रेटा थनबर्ग, मदद लेकर जा रही थीं गजा
चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के आरोपों के बचाव में कूदी बीजेपी
रायपुर में मारपीट करने वाली लड़कियां बॉलीबॉल खिलाड़ी नहीं, चला रहीं थी सेक्स रैकेट, पुलिस ने 5 को किया गिरफ्तार
फार्मेसी काउंसिल : पदाधिकारियों ने अपने के भत्ते बढ़ा लिए और भरपाई के लिए रजिस्ट्रेशन शुल्क में कर दी भारी वृद्धि
रायपुर में शहीदों के परिजनों का गृहमंत्री के घर के सामने प्रदर्शन, बोले- सरेंडर नक्सलियों के लिए नीति, शहीदों के लिए क्या है?
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • देश
  • दुनिया
  • लेंस रिपोर्ट
  • Podcast
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • Podcast
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
  • More
    • English
    • स्क्रीन
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • आंकड़ा कहता है
    • टेक्नोलॉजी-ऑटोमोबाइल्‍स
    • धर्म
    • नौकरी
    • लेंस अभिमत
    • साहित्य-कला-संस्कृति
    • सेहत-लाइफस्‍टाइल
    • अर्थ
Follow US
© 2025 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
The Lens > देश > जन्नत की हक़ीक़त
देश

जन्नत की हक़ीक़त

Editorial Board
Last updated: June 9, 2025 10:27 pm
Editorial Board
Share
MP Politics Explained
SHARE

राजेश चतुर्वेदी

आमतौर पर बच्चा औसतन साल से डेढ़ साल की उम्र के बीच चलना शुरू कर देता है। कई बच्चे शुरुआत में रेंगते हैं या घुटने के बल चलते हैं, लेकिन डेढ़ साल के होते-होते किसी सहारे के ही सही, अपने पैरों पर चलने लगते हैं। यह एक प्रकार से इस बात की आश्वस्ति होती है कि बच्चा स्वस्थ है। अगर, डेढ़ साल के बाद भी ऐसा नहीं होता है, तो फिर मां-बाप को चिंता होती है और डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। इस हिसाब से तीन दिन बाद, मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार भी “डेढ़ साल” की होने जा रही है। और, “दिल्ली” के सहारे ही सही, पर वह भी निगने (चलने) लगी है। जैसे मां-बाप बच्चे की पहचान होते हैं, वैसे ही “दिल्ली’, मोहन सरकार की है। मां-बाप उस पर पूरी नज़र रखते हैं। कभी अपने बच्चे को गिरने नहीं देते। उसकी हर दिक्कत-बाधा को दूर करते हैं। कोई तकलीफ हो, उसका इलाज करते हैं। उनका वात्सल्य अलग झलकता है।

खबर में खास
“सरकार का अन्नप्राशन”दो चीजों से जूझ रहे मोहन यादवशिवराज की पदयात्रा पर फुलस्टॉप!आरएसएस में भी खेमेकांग्रेस में घोड़ों की छंटाई

यह भी पढ़ें: माफी इस बीमारी का इलाज नहीं

तस्वीरों में दिखलाई पड़ने वाली भाव-भंगिमाएं बहुत कुछ बता देती हैं, समझा देती हैं। मोदी के प्रधानमंत्रित्वकाल में शिवराज सिंह चौहान करीब 9 वर्ष मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वात्सल्य भाव से भरी जो तस्वीरें 13 दिसंबर 2023 के बाद से अब दिखलाई पड़ती हैं, वे डेढ़ साल पहले दुर्लभ थीं। बीजेपी में ही कई कहते हैं कि अगर, मोदी के साथ शिवराज और यादव का अलग-अलग कोलाज़ बनाया जाए तो मुख मुद्राओं से ही पता लग जाएगी “जन्नत की हक़ीक़त।” ताज़ा मिसाल देवी अहिल्या बाई की जयंती पर भोपाल में हुआ एक कार्यक्रम है, जिसमें मोदी और यादव की गुफ़्तगू वाली तस्वीरें वाकई “हक़ीक़त” बता रही थीं।

“सरकार का अन्नप्राशन”

भले ही ऐतिहासिक तौर पर “सवा-डेढ़-ढाई-साढ़े-पौने” को “मनाने” या इनके उपलक्ष्य में जश्न-जलसे का प्रचलन न रहा हो, लेकिन सरकारों का क्या है? वे चाहें तो नई परंपरा डाल सकती हैं, और पुरानी को तोड़ सकती हैं। सरकार तो सरकार है। क्या नहीं कर सकती? तो, मोहन सरकार भी अगर चाहे तो “डेढ़ साल पूरे होने और अपने चलने” का जश्न मनाकर नई परंपरा शुरू कर सकती है। कोई रस्म कर सकती है, जैसे डेढ़ साल में होने वाला अन्नप्राशन- “सरकार का अन्नप्राशन।” वैसे भी, 2014 के बाद से देश भर में “इवेंटिये” पैदा हो गए हैं। इस बिरादरी ने हर चीज़ को ईवेंट बना दिया है। मय्यत से लेकर त्रयोदशी तक। और, फिर डेढ़ साल में डॉ. यादव ने अपने पूर्ववर्ती दो भाजपाई मुख्यमंत्रियों क्रमशः उमा भारती (लगभग 8 माह) और बाबूलाल गौर (लगभग 15 माह) का रिकॉर्ड तोड़ा है। पंद्रह माह बाद उनके खाते में एक और उपलब्धि जुड़ जाएगी, जब वह 33 माह मुख्यमंत्री रहे सुंदरलाल पटवा को भी अभिलेखों में पीछे छोड़ देंगे। यदि ऐसा होता है तो भाजपाई मुख्यमंत्रियों की छोटी सी सूची में शिवराज सिंह चौहान के बाद उनका नाम दूसरे नंबर पर दर्ज हो जाएगा। अलबत्ता, चौहान को पछाड़ पाना उनके लिए अभी दूर की कौड़ी है।

यह भी पढ़ें: एक बेमेल शादी

दो चीजों से जूझ रहे मोहन यादव

अभी तो डॉ. यादव दो चीजों से जूझ रहे हैं। एक- शिवराज द्वारा चालू की गई लाड़ली बहना योजना (जिसके कारण हजारों करोड़ का कर्ज लेना पड़ रहा है और कई नियोजित काम रुक गए हैं) और दो- शिवराज के बरक्स अपना एक अलग ब्रांड खड़ा करने की चुनौती। दोनों ही आसान नहीं हैं। दिक्कत यह है कि लाड़ली बहना योजना के तहत महिलाओं को हर माह जो राशि दी जा रही है, उसे बढ़ाकर 3 हजार रुपये करना है। हर माह 1250 रुपये में ही जब सांसें फूल रही हैं, तो आगे क्या होगा? यह मान भी लिया जाए कि जैसे कर्ज लेकर अभी काम चलाया जा रहा है, वैसे ही आगे भी चलाया जाएगा।

लेकिन, 17 साल सीएम रहे शिवराज के ‘औरा’ से कैसे लड़ा जाए? यह सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल है। हालत यह है कि बीजेपी को शिवराज से ही यह कहलवाना पड़ रहा है कि “मोहन यादव मेरे मुख्यमंत्री हैं।” समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री के मामले में पार्टी के बड़े नेताओं में किस हद तक तनाव है। राजनीतिक सहजता और सौहार्द का संकट है। वर्ना, कौन यह नहीं जानता कि डॉ. मोहन यादव 13 दिसंबर 2023 से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते राज्य के हर नागरिक के मुख्यमंत्री हैं? अपने संसदीय क्षेत्र सीहोर में दो दिन पहले जबसे शिवराज ने मुख्यमंत्री यादव की मौजूदगी में बार-बार इस बात को दोहराया है, उनके शब्दों की मीमांसा हो रही है।

पहले यह जान लीजिए, कि शिवराज, जो देश के कृषि मंत्री हैं, ने कहा क्या था। “इधर-उधर कोई कयास मत लगाना। मोहन यादव मेरे मुख्यमंत्री हैं। हमारे कॉन्सेप्ट क्लियर हैं। मोहन यादव मुख्यमंत्री हैं। मोहन जी की कल्पनाशीलता और विकास की तड़प प्रदेश को लगातार आगे बढ़ा रही है। मेरे मन में यही है कि मेरे से अच्छा काम मोहन यादव करें, मुझसे कई गुना बेहतर मोहन यादव प्रदेश के लिए करें, कर रहे हैं और हम उनके साथ हैं,” शिवराज ने कहा। तो, क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि मनुष्य मोह-माया से कभी मुक्त नहीं हो पाता? और मनुष्य यदि सियासी चोले में हो, तो कतई नहीं। अन्यथा, सनातन में व्यवस्था तो यह है कि गृहस्थ आश्रम के अपने सारे कर्तव्यों को पूरा करने के बाद मोह-माया से नमस्ते कर लेना चाहिए और ईश्वर के भजन-पूजन में मन लगाना चाहिए।

लेकिन, सियासत में शायद, “कुर्सी” का अपना एक धर्म और बेरहम संहिता हुआ करती है। और, संभवतः “मोह-माया” से ऊपर के इस मामले को एक कामयाब सियासतदां से बेहतर कौन समझ सकता है। तभी शिवराज जैसे सतर्क राजनेता की जुबान फिसल जाती है और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के एक कार्यक्रम के दौरान वह खुद को मुख्यमंत्री बता बैठते हैं। दरअसल, 17 बरस कम नहीं होते। वक्त लगता ही है, भीतर तक धसे लम्हों को भुलाने में। यहां तो मामला “कालखंड” का है।

शिवराज की पदयात्रा पर फुलस्टॉप!

इसे शिवराज के साथ दूसरी चोट बताया जा रहा है। उनके साथ पहली चोट वर्ष 2018 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद हुई थी, जब उन्होंने ऐलान किया था कि वह “आभार यात्रा’ यात्रा निकालेंगे। लेकिन बीजेपी ने उन्हें मना कर दिया। वह कहते रहे गए, पर पार्टी ने यात्रा का कार्यक्रम नहीं बनाया। सुनने में आ रहा है कि अबकी फिर उन्हें मायूसी हाथ लगी है। कोई पंद्रह दिन पुरानी बात है, अपने संसदीय क्षेत्र विदिशा में उन्होंने “विकसित भारत संकल्प पदयात्रा” शुरू की थी। कहा था कि हफ्ते में दो दिन पदयात्रा करेंगे। 20-25 किमी चलेंगे। आगे इस यात्रा का विस्तार अन्य संसदीय क्षेत्रों में होगा। मगर, कहा जा रहा है कि उन्हें “दिल्ली” ने रोक दिया है। इसीलिए, शायद आगाज़ के बाद उनकी यात्रा का आगे कार्यक्रम अब तक सामने नहीं आया है। यही स्थिति तब हुई थी, जब मोहन यादव के शपथ लेने के बाद उन्होंने लोगों के बीच जाना शुरू कर दिया था और अपने आवास पर जनता दरबार लगाने लगे थे। जेपी नड्डा ने तब दिल्ली बुलाकर उनको “दक्षिण” की जिम्मेदारी दे दी थी। वह तेलंगाना वगैरह गए भी थे।

आरएसएस में भी खेमे

आरएसएस में भी अलग-अलग खेमे काम कर रहे हैं। एक खेमा मुख्यमंत्री मोहन यादव के पीछे है और दूसरा पार्टी के अध्यक्ष वीडी शर्मा के। जाहिर है, दोनों खेमे संघ के दो बड़े नेताओं के नाम से सक्रिय हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि एक नेता जी रिंग के बाहर हैं और दूसरे रिंग के भीतर। मगर, हल्ला और दबदबा इन्हीं दो खेमों का है।

कांग्रेस में घोड़ों की छंटाई

राहुल गांधी की भोपाल यात्रा के बाद कांग्रेस के भीतर घोड़ों की छंटाई का काम तेजी से शुरू हो गया है। राहुल ने दो किस्में बताई थीं। एक-रेस का घोड़ा और दूसरा-बारात का। लेकिन कमलनाथ के हवाले से जो तीसरी बताई थी, वो है-लंगड़ा घोड़ा। राज्य के सभी जिलों में एआईसीसी द्वारा तैनात पर्यवेक्षक जिला अध्यक्ष के लिए पांच-पांच नामों का पैनल तैयार करेंगे। इनमें से कोई एक जिले का अध्यक्ष चुना जाएगा। केंद्रीय पर्यवेक्षकों की मदद के लिए प्रदेश ईकाई ने भी तीन-तीन पर्यवेक्षक लगाए हैं। देखा जाए तो असली दारोमदार इन्हीं “तीन” पर है। इन्होंने यदि “लंगड़े” को रेस का बता दिया, तो बस…!

यह भी पढ़ें: कर्ज के भरोसे

TAGGED:Mohan Yadavmp politicsNarendra Modirajesh chaturvediShivraj Singh Chauhan
Share This Article
Email Copy Link Print
Previous Article election commission of india Unbundling a juggernaut
Next Article मणिपुर में उग्र प्रदर्शन जारी, इंटरनेट बंद होने से कई अखबारों का प्रकाशन बाधित

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

प्रधानमंत्री मोदी के नागपुर दौरे का मतलब क्या है ?

हरियाणा और महाराष्ट्र में संघ के सफल प्रयोगों की निरंतरता चाहता है भाजपा का शीर्ष…

By The Lens Desk

China is not the dragon

The recent long form podcast of PM Modi with American AI scientist Lex Fridman is…

By Editorial Board

किसानों पर सख्ती

हरियाणा से सटे शंभू-खनौरी बॉर्डर पर करीब सवा साल से धरने पर बैठे किसानों पर…

By Editorial Board

You Might Also Like

देश

सूने हो रहे हैं शिकारेः आतंकी हमले ने कश्मीर के पर्यटन पर गहरी चोट कर दी

By Amandeep Singh
x account
देश

पाक रक्षा मंत्री का “एक्स” अकाउंट भारत में सस्पेंड

By Lens News
THE LENS PODCAST
Podcast

The Lens Podcast 12 May 2025 | सुनिए देश-दुनिया की बड़ी खबरें | The Lens | The Lens | The Lens

By Amandeep Singh
Delhi High Court's decision on military officer
देश

सेना धर्म से नहीं, वर्दी से एकजुट :  दिल्ली हाईकोर्ट ने ईसाई अधिकारी की बर्खास्तगी को सही ठहराया

By Lens News Network

© 2025 Rushvi Media LLP. 

Facebook X-twitter Youtube Instagram
  • The Lens.in के बारे में
  • The Lens.in से संपर्क करें
  • Support Us
Lens White Logo
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?