गोवा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्टिपल (जीएमसीएच) के एक वरिष्ठ डॉक्टर के साथ बदतमीजी करने वाले राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे ने भारी विरोध और दबाव के बीच माफी जरूर मांग ली है, लेकिन यह उस बीमारी का इलाज नहीं है, जिससे सत्ता सिर पर चढ़ कर बोलती है। जीएमसीएच के एक मुआयने के दौरान राणे न केवल वरिष्ठ डॉक्टर रुद्रेश कुट्टीकर को लगातार फटकारते रहे, बल्कि उन्होंने सत्ता की धौंस जमाते हुए मनमाने ढंग से उनके निलंबन का फरमान भी सुना दिया। इस घटना से संबंधित वायरल वीडियो में राणे जिस तरह से अस्तपताल के भीतर डॉ कुट्टीकर से बदतमीजी करते नजर आ रहे हैं, उसे देखते हुए उनकी माफी नाकाफी लगती है। डॉक्टरों के साथ मनमानी करने की यह कोई पहली घटना नहीं है। दरअसल इस घटना ने ध्यान खींचा है कि डॉक्टरों को किस तरह के दबावों के बीच काम करना होता है। खासतौर से सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों को किन विषम परिस्थितियों में काम करना होता है, यह किसी से छिपा है? कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के एटा में किसी बात से नाराज डीएम ने बैठक में मौजूद डॉक्टरों को मुर्गा बनने का फरमान सुनाकर अपमानित किया था। सत्ता के साथ ही नौकरशाही और अब तो मीडिया भी नियामक संस्था जैसा काम करने लगा है और अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष तक अपने कैमरे टिका देना चाहता है।
यह स्थिति हर तरह की सत्ता के और अधिक ताकतवर होते जाने और संस्थागत क्षरण का नतीजा है। यह ऐसी बीमारी है, जिससे निजात पाने के लिए व्यवस्थागत गहन चिकित्सा की जरूरत है।
माफी इस बीमारी का इलाज नहीं
