छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नजदीक स्थित नकटी गांव के लोगों के संघर्ष को लेकर नागरिक समाज और मीडिया के एक बड़े वर्ग में छाई चुप्पी अब हैरान नहीं करती। दरअसल इन दिनों विकास की फसल ऐसे ही कट रही है। हवाई अड्डे से नजदीक स्थित इस गांव के लोगों को कुछ महीने पहले फरमान मिला है कि वे अवैध तरीके से इस जगह पर काबिज हैं, इसलिए वे इसे खाली कर दें। इस गांव तक पहुंचे द लेंस के रिपोर्टर को गांव के लोगों ने बताया है कि वे चार-पांच दशक से यहां रह रहे हैं। इस आंदोलन की अगुआई महिलाएं कर रही हैं और उनकी जिद है कि वे वहां से नहीं हटेंगी, चाहे कुछ भी हो जाए! कई लोगों का दावा तो यह भी है कि उनकी तीन चार पीढ़ियां यहां रहती आई है। जिन घरों को जमींदोज किया जाना है, उनमें कुछ तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाए गए हैं! पता तो यह भी चला है कि गांव वालों को जमीन खाली करने के बदले किसी तरह के मुआवजे या कहीं वैकल्पिक जमीन देने जैसी पेशकश भी नहीं की गई है। देश में जमीन के रिकॉर्ड का हाल देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि नकटी कोई अपवाद नहीं है, जहां लोगों के पास जमीन के रिकॉर्ड न हों, लेकिन दूसरा पक्ष यह भी तो है कि वे यहां बरसों से रह रहे हैं। अभी यह पता नहीं है कि आखिर सरकार को नकटी गांव की जमीन क्यों चाहिए। जैसा कि चर्चा है, यहां विधायक की कॉलोनी प्रस्तावित है, यह भी कहा जा रहा है कि किसी विकास परियोजना के लिए यह जगह चाहिए। वजह जो भी हो, लोगों को उजाड़ने की कीमत पर उठने वाला ऐसा हर कदम एक भद्दा मजाक है।
एक उजड़ते गांव का संघर्ष

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