भारी बारिश और भूस्खलन से पूर्वोत्तर के राज्यों में हो रही तबाही की तस्वीरें हर मानसून में अब स्मरण पत्र की तरह हो गई हैं। ताजा बारिश और भूस्खलन की घटनाओं में इन राज्यों में तीस से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। प्रभावित तो पशु और वन्यजीव भी हैं। निःसंदेह अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण पूर्वोत्तर के राज्यों में बारिश भी ज्यादा होती है और ऐसे मौसम में भूस्खलन या भू-धसान की घटनाएं आम हैं। असल में सवाल तो सरकारों की प्राथमिकता का है। लंबे समय से जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहे मणिपुर में जब भाजपा राष्ट्रपति शासन हटवा कर सत्ता में काबिज होने की जुगत कर रही है, राज्य की राजधानी इम्फाल में जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज का प्रथम तल बाढ़ में डूब गया, जिसकी वजह से मरीजों को वहां से हटाना पड़ा है। सिक्किम में बचाव काम में जुटे सेना के तीन जवान शहीद हो गए हैं। और अरुणाचल का प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने खुद एक्स पर एक वीडियो साझा किया है, जिसमें भारत, चीन और म्यांमार के तिकोन पर स्थित अंजवाल जिले में भारी बारिश के बीच जान जोखिम में डाल कर एक शख्स एक लटकते पारंपरिक पुल से उफनती नदी को पार कर रहा है! पूछा जा सकता है कि रोंगटे खड़े कर देने वाले इस दृश्य को सुखद और बेहतर बनाने की जिम्मेदारी किसकी है? मीडिया रिपोर्ट्स से पता चल रहा है कि असम के रुकमिनी गांव जैसे इलाकों में बीते कई बरसों में बाढ़ की निकासी की व्यवस्था बदतर ही हुई है। ऐसा लगता है कि सरकारों ने अपनी जिम्मेदारियां एनडीआरएफ, भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के कंधों पर डाल रखी है। दरअसल बड़ी आधारभूत संरचनाओं, बेतरतीब बनती इमारतों और सड़कों से बनी विकास की प्रचलित अवधारणा पर फिर से विचार करने की जरूरत है।