संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस बात की 70 फीसदी संभावना है कि 2025 से 2029 के दौरान धरती का औसत तापमान पूर्व औद्योगिक युग के 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर को छू सकता है। महज एक दशक पहले 2015 में पेरिस में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इसे नियंत्रित रखने की प्रतिबद्धता जाहिर की गई थी, लेकिन यह ताजा रिपोर्ट बता रही है कि ऐसे सारे दावे कितने बेमानी हो चुके हैं। पेरिस में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए किए गए वादों की हवा निकल चुकी है। डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार अमेरिका की कमान संभालने के बाद जो बड़े फैसले किए हैं, उनमें बिजली की मांग को पूरा करने के लिए कोयला उत्पादन बढ़ाने से संबंधित फैसला भी शामिल है। चीन और भारत जैसे सबसे बड़ी आबादी वाले देशों का भी यही हाल है, जिसके चलते 2024 में कोयला उत्पादन अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया था। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट से पता चल रहा है कि तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक नियंत्रित रखने का लक्ष्य तकरीबन असंभव हो गया है! मसलन ब्रिटेन ने 2050 में और भारत ने 2070 तक कोयले से निजात पाने का वादा किया था। प्रतिष्ठित साइंस पत्रिका में पिछले साल छपे एक शोध में आशंका जताई गई थी कि अमेरिका, चीन, भारत सहित अधिकांश देश कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने से संबंधित नेट जीरो की अपनी प्रतिबद्धता पूरी नहीं कर पाएंगे। वास्तव में युद्ध के साथ ही सैन्य तनाव और टैरिफ वार और अर्थव्यवस्था को अंधाधुंध रफ्तार देने की होड़ ने दुनिया को आज ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहां से आगे का रास्ता बहुत तंग है।
खतरे की घंटी तो बज चुकी

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Arun Pandey
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