छात्र-छात्राओं की खुदकुशी के मामलों में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से पूछा है कि एक राज्य के रूप में आपने क्या किया? केवल कोटा में ही विद्यार्थी क्यों आत्महत्या कर रहे हैं? और क्या एक राज्य के रूप में आपने इस पर कोई विचार नहीं किया है? सचमुच यह बहुत दयनीय स्थिति है, जब न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका दोनों को याद दिलाना पड़ रहा है कि एक राज्य की अपने विद्यार्थियों के प्रति संवैधानिक जिम्मेदारियां क्या हैं? हाल के वर्षों में अपने कोचिंग संस्थानों के लिए चर्चा में आए कोटा से छात्र-छात्राओं के आत्महत्या कर लेने की जितनी घटनाएं सामने आई हैं और लगातार आ रही हैं, उससे तो राज्य सरकार के सारे तंत्र को हरकत में आ जाना चाहिए था। बात सिर्फ कोटा की नहीं है, देश के किसी भी हिस्से से किसी विद्यार्थी के आत्महत्या कर लेने की घटना गहरी चिंता में डालती है। सुप्रीम कोर्ट अभी कोटा में एक छात्रा और खड़गपुर में एक छात्र की आत्महत्या से जुड़े मामलों में सुनवाई कर रहा है और इन दोनों ही मामलों में पुलिस और संबंधित संस्थानों का रवैया बेहद लचर और असंवेदनशील है। खगड़पुर के मामले में जहां पुलिस ने चार दिन बाद एफआईआर दर्ज की, वहीं कोटा के मामले में तो इसे भी जरूरी नहीं समझा गया। यह स्थिति तब है, जब इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या की घटनाओं से चिंतित होकर विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या को लेकर एक आयोग तक का गठन किया है। आयोग तो अपना काम करेगा और कर ही रहा है, बात राज्य की जवाबदेही की है और विडंबना यह है कि उसके पास अभी इतिहास को दुरुस्त करने जैसा जरूरी काम पड़ा हुआ है!
सरकार में विचार की कमी है

Popular Posts
पत्रकार करण थापर और सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ असम में एफआईआर, गुवाहाटी तलब
नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली असम पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकार करण थापर और सिद्धार्थ वरदराजन के…
By
आवेश तिवारी
ननकी राम के साथ हाउस अरेस्ट लोकतांत्रिक उम्मीदें भी
छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ भाजपा में शनिवार को तब बड़ी उथलपुथल मच गई जब सरकार ने…
छत्तीसगढ़ में पत्रकार को कांग्रेस नेता ने भेजा नोटिस, इस खबर से जुड़ा है मसला
रायपुर। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मीडिया प्रभारी सुशील आनंद शुक्ला ने एक पत्रकार को नोटिस भेजा…
By
नितिन मिश्रा