द लेंस डेस्क। ‘वे (प्रोफेसर) खुद तो ए.आई. (ARTIFICIAL INTELIGENCE)का उपयोग करते हैं, लेकिन हमें (छात्रों) को ऐसा करने से रोकते हैं। यह दोहरा मापदंड क्यों?’ यह सवाल नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की एक छात्रा ने अपने प्रोफेसर से पूछा जिसने शिक्षा जगत में ए.आई. के बढ़ते उपयोग पर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों द्वारा ए.आई. टूल्स का उपयोग करने पर छात्रों ने कड़ा विरोध जताया है। छात्रों का कहना है कि ए.आई. के इस्तेमाल से उनकी शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है, जबकि प्रोफेसर इसे समय बचाने और नवाचार का एक ज़रिया मानते हैं।
आज की डिजिटल दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) हर क्षेत्र में अपनी जगह बना रही है, लेकिन शिक्षा जगत में इसका बढ़ता उपयोग अब एक बड़े विवाद का कारण बन गया है। ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट में इस पूरे मामले पर लेख छापा गया है।

क्या है पूरा मामला?
छात्रों का कहना है कि प्रोफेसर अब अपने लेक्चर्स, असाइनमेंट और ग्रेडिंग के लिए ए.आई. टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे शिक्षा में मानवीय स्पर्श खत्म होता जा रहा है। एक छात्रा के अनुसार ‘हम प्रोफेसर से सीखने के लिए आए हैं, न कि किसी मशीन से। ए.आई.-जनरेटेड नोट्स में वह गहराई और समझ नहीं होती, जो एक शिक्षक दे सकता है।’ कई छात्रों को यह भी डर है कि ए.आई. ग्रेडिंग में पक्षपात कर सकता है, क्योंकि इसके पीछे जो डेटा है, वह हमेशा निष्पक्ष नहीं होता।
प्रोफेसरों का पक्ष
दूसरी ओर, प्रोफेसरों का तर्क है कि ए.आई. उनके काम को आसान बनाता है। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एलियाजर एफ. स्टोन के अनुसार “ए.आई. हमें प्रशासनिक बोझ से मुक्त करता है जिससे हम छात्रों के साथ अधिक समय बिता सकते हैं। यह हमें भविष्य के लिए तैयार करने का एक तरीका है।” प्रोफेसरों का यह भी कहना है कि ए.आई. टूल्स उन्हें नवीनतम तकनीक के साथ तालमेल बनाए रखने में मदद करते हैं।
कर्ट लेविन का “थ्योरी ऑफ चेंज”
न्यूयॉर्क टाइम्स के आर्टिकल में कर्ट लेविन के “थ्योरी ऑफ चेंज” का उल्लेख है, जो परिवर्तन के तीन चरणों को बताता है, अनफ्रीजिंग (पुराने तरीकों को छोड़ना), चेंज (नए तरीके अपनाना) और रिफ्रीजिंग (नए तरीकों को स्थापित करना)। शिक्षा में ए.आई. का उपयोग अभी ‘चेंज’ के चरण में है जहां तनाव स्वाभाविक है। यह सिद्धांत बताता है कि सफल परिवर्तन के लिए दोनों पक्षों (छात्रों और प्रोफेसरों) को नए तरीकों को स्वीकार करना होगा लेकिन क्या यह संभव है? विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए पारदर्शिता और संवाद जरूरी है।
भारत में प्रभाव
भारत में शिक्षा प्रणाली पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रही है जैसे शिक्षकों की कमी, संसाधनों की कमी और क्षेत्रीय असमानता। ऐसे में ए.आई. का उपयोग कई सवाल खड़े कर रहा है । आईआईटी, एनआईटी, और आईआईएम जैसे संस्थानों में ए.आई. को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। उदाहरण के लिए आईआईटी दिल्ली ने हाल ही में एक ए.आई.-आधारित लर्निंग मॉड्यूल शुरू किया है जो छात्रों को प्रोग्रामिंग और डेटा साइंस में मदद करता है लेकिन छात्रों का एक बड़ा वर्ग इसके खिलाफ है। वे कहते हैं कि ए.आई. के उपयोग से प्रोफेसरों का व्यक्तिगत योगदान कम हो रहा है और यह उनके सीखने के अनुभव को प्रभावित कर रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां शिक्षकों की भारी कमी है, ए.आई. एक वरदान साबित हो सकता है, उदाहरण के लिए सरकार द्वारा समर्थित “दीक्षा” जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म ए.आई. का उपयोग करके ग्रामीण छात्रों को मुफ्त शिक्षा सामग्री प्रदान कर रहे हैं। हालांकि, चुनौतियां भी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट और बिजली की कमी के कारण ए.आई. टूल्स का उपयोग सीमित है। साथ ही इन क्षेत्रों में शिक्षकों और छात्रों को ए.आई. टूल्स का उपयोग करने का प्रशिक्षण नहीं है।

ए.आई. का उपयोग भारतीय छात्रों को भविष्य की नौकरियों के लिए तैयार कर सकता है लेकिन इसके लिए सही प्रशिक्षण और नीतियां जरूरी हैं। दूसरी ओर शिक्षकों को डर है कि ए.आई. उनकी नौकरियों को खतरे में डाल सकता है। कई सरकारी स्कूलों में पहले से ही शिक्षकों की कमी है और ए.आई. के बढ़ते उपयोग से यह समस्या और बढ़ सकती है।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरु-शिष्य परंपरा बहुत महत्वपूर्ण है। छात्र शिक्षक को एक मार्गदर्शक के रूप में देखते हैं, न कि सिर्फ एक सूचना प्रदाता के रूप में। ए.आई. के बढ़ते उपयोग से यह सांस्कृतिक पहलू प्रभावित हो सकता है। साथ ही नैतिक सवाल भी उठते हैं। क्या ए.आई. भारतीय शिक्षा की विविधता को समझ सकता है? क्या यह हिंदी, तमिल, या बंगाली जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में प्रभावी ढंग से काम कर सकता है?
वैश्विक स्तर पर यूनेस्को ने 2025 तक शिक्षा में ए.आई. के नैतिक उपयोग के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें पारदर्शिता और निष्पक्षता पर ज़ोर दिया गया है। कुछ यूरोपीय देशों ने स्कूलों में ए.आई.-आधारित ग्रेडिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्योंकि उन्हें डेटा बायस का खतरा दिखता है।
छात्रों की पहल
दुनियाभर के विश्वविद्यालयों में छात्र “ए.आई.-मुक्त शिक्षा” अभियान चला रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि प्रोफेसर ए.आई. के उपयोग से पहले उनकी सहमति लें और पारदर्शिता बरतें। सोशल मीडिया पर #AIFreeEducation हैशटैग के साथ कई ऑनलाइन याचिकाएं शुरू की गई हैं। भारत में भी, आईआईटी बॉम्बे और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने इस तरह के अभियान शुरू किए हैं।