गुजरात के एक पुराने और प्रतिष्ठित अखबार समूह गुजरात समाचार और उससे संबद्ध जीएसटीवी के दफ्तरों पर ईडी तथा आयकर विभाग के छापे की कार्रवाई और इस समूह के मालिक बाहुबली शाह की गिरफ्तारी बेहद तकलीफदेह है। हालांकि खराब सेहत के आधार पर 73 वर्षीय बाहुबली शाह को अंतरिम जमानत दे दी गई है, लेकिन जिस तरह से ये पूरी कार्रवाई की गई है, वह संदेह से परे नहीं है। 1932 में स्थापित गुजरात समाचार ने स्वतंत्रता के आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी और आजादी के बाद पिछले आठ दशकों से यह जनपक्षधरता की आवाज बनकर भी उभरा है। बताया जाता है कि बाहुबली शाह और उनके पत्र समूह पर ये कार्रवाई कथित आर्थिक गड़बड़ी से जुड़े किसी पुराने मामले को आधार पर बनाकर की गई है। ईडी या आयकर विभाग की ओर से इस मामले में स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है, इसके बावजूद ये पूरा घटनाक्रम अनेक सवाल उठाता है। 36 घंटे की पूछताछ के बाद बाहर आए गुजरात समाचार के प्रबंध संपादक श्रेयांश शाह ने कहा है कि, हम नहीं जानते कि वे हमारे साथ अंडरल्वर्ड या अपराधियों जैसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं! यह याद दिलाने की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ईडी को नसीहत दी है कि वह पर्याप्त सबूतों के बिना कार्रवाई न करे। गुजरात समाचार ने यदि कोई गड़बड़ी की है, तो कानूनी एजेंसियों को उस पर कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है। दरअसल मुद्दा पूरे परिदृश्य का है, जिसमें भारत-पाकिस्तान के बीच के ताजा तनाव के दौरान देखा गया कि कैसे मीडिया के एक बड़े वर्ग ने फेक न्यूज फैलाकर पूरे देश की फजीहत कराई है, वहीं सरकार के कथित आलोचक मीडिया पर कार्रवाई करने से गुरेज नहीं किया गया है, जिनमें गुजरात समाचार भी शामिल है। यह परिदृश्य लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है, याद रखें प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत 180 देशों में 159 वें नंबर पर है।
गुजरात समाचार पर छापे

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