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Home » क्या सुप्रीम कोर्ट तय कर सकता है विधेयकों की मंजूरी की समय सीमा? राष्ट्रपति मुर्मू ने विधेयकों को मंजूरी देने पर सुप्रीम कोर्ट से पूछे 14 सवाल

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क्या सुप्रीम कोर्ट तय कर सकता है विधेयकों की मंजूरी की समय सीमा? राष्ट्रपति मुर्मू ने विधेयकों को मंजूरी देने पर सुप्रीम कोर्ट से पूछे 14 सवाल

Lens News Network
Last updated: May 16, 2025 1:30 am
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President's Question
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नई दिल्ली। तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधेयकों की मंजूरी पर समयसीमा तय करने पर सुप्रीम कोर्ट से औपचारिक राय मांगी है। इसके साथ ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल (President’s Question) पूछे हैं। दरअसल, दरअसल तमिलनाडु सरकार की अपने राज्यपाल के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही यह सवाल उठने लगा है। राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत 14 बेहद अहम सवाल पूछते हुए यह साफ किया है कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो विधेयकों पर मंजूरी या नामंजूरी की समयसीमा तय कर सकती हो।

राष्ट्रपति ने इस मसले पर कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत विधेयकों पर फैसला लेते हैं। लेकिन, ये अनुच्छेद कहीं भी कोई समयसीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं करते हैं। राज्यपाल और राष्ट्रपति का यह विवेकपूर्ण निर्णय संघवाद, कानूनों की एकरूपता, राष्ट्रीय सुरक्षा और शक्तियों के बीच संतुलन जैसे बहुपक्षीय पहलुओं पर आधारित होता है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को अपने 415 पन्नों के फैसले में कहा था कि राज्यपाल को विधेयक मिलने के तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। अगर विधानसभा दोबारा वही विधेयक पारित कर भेजती है, तो राज्यपाल को एक महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी। वहीं राष्ट्रपति को भी उस विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय करना होगा.

‘डि‍म्ड असेंट’ पर राष्ट्रपति की आपत्ति

राष्ट्रपति मुर्मू ने डिम्ड असेंट यानी (माना जाएगा कि मंजूरी मिल गई) पर भी आपत्ति जताई है। कोर्ट की तरफ से तमिलनाडु के 10 पेंडिंग बिल को ‘डिम्ड असेंट’ बताया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है। ‘डिम्ड असेंट जैसी कोई अवधारणा संविधान में नहीं है। यह राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों को सीमित करती है। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी पूछा है कि क्या अनुच्छेद 142 का प्रयोग ऐसे मामलों में किया जा सकता है, जो पहले से ही संविधान या कानूनों में स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं? यह अनुच्छेद न्याय सुनिश्चित करने के लिए न्यायापालिका को विशेष अधिकार देता है.

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे ये 14 सवाल

  1. जब किसी राज्यपाल के सामने अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक पेश किया जाता है, तो उनके सामने कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प उपलब्ध होते हैं?
  2. क्या राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत उपलब्ध सभी विकल्पों के प्रयोग में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे होते हैं?
  3. क्या अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की तरफ से किए गए संवैधानिक विवेक का न्यायिक परीक्षण किया जा सकता है?
  4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत किए गए कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?
  5. जब संविधान में राज्यपाल के लिए किसी समयसीमा या प्रक्रिया का जिक्र नहीं है, तो क्या न्यायिक आदेशों के माध्यम से अनुच्छेद 200 के तहत उनके अधिकारों के प्रयोग की समयसीमा या प्रक्रिया निर्धारित की जा सकती है?
  6. क्या अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति की ओर से किए गए संवैधानिक विवेक का न्यायिक परीक्षण किया जा सकता है?
  7. जब संविधान में राष्ट्रपति के लिए किसी समयसीमा या प्रक्रिया का जिक्र नहीं है, तो क्या अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति की ओर से किए गए विवेक के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समयसीमा और प्रक्रिया निर्धारित की जा सकती है?
  8. क्या राष्ट्रपति को उस स्थिति में अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय लेनी अनिवार्य है जब राज्यपाल कोई विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए रिजर्व करता है?
  9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 200 और 201 के तहत किए गए निर्णय कानून लागू होने से पहले की अवस्था में ही न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं? क्या अदालतें किसी विधेयक की सामग्री पर उस समय निर्णय ले सकती हैं जब वह अभी कानून नहीं बना है?
  10. क्या राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा किए गए संवैधानिक आदेशों और शक्तियों का प्रयोग अनुच्छेद 142 के तहत किसी भी रूप में प्रतिस्थापित (substitute) किया जा सकता है?
  11. क्या राज्य विधानसभा से पारित विधेयक बिना राज्यपाल की सहमति के कानून की श्रेणी में आता है?
  12. क्या अनुच्छेद 145(3) के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की किसी भी पीठ के लिए यह निर्णय लेना अनिवार्य नहीं है कि क्या उसके सामने उपस्थित प्रश्न संविधान की व्याख्या से संबंधित कोई महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न है, और क्या उसे कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष भेजा जाना चाहिए?
  13. क्या सुप्रीम कोर्ट की अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्तियां केवल प्रक्रिया संबंधी कानून तक सीमित हैं या ये शक्तियां ऐसे निर्देश/आदेश देने तक विस्तृत हैं जो संविधान या वर्तमान कानून के मौलिक या प्रक्रिया संबंधी प्रावधानों के विपरीत हों?
  14. क्या संविधान सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवाद सुलझाने के लिए अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमे के अलावा किसी अन्य अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से रोकता है?
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