नई दिल्ली। भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में बुधवार को न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में उन्हें पद की शपथ दिलाई।
परंपरा के अनुसार निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश इस पद के लिए सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ जज की सिफारिश करते हैं। जस्टिस खन्ना ने 16 अप्रैल को जस्टिस गवई के नाम की अनुशंसा की थी, जो उस समय वरिष्ठता क्रम में शीर्ष पर थे। कानून मंत्रालय ने भी औपचारिक रूप से जस्टिस खन्ना से उनके उत्तराधिकारी का नाम प्रस्तावित करने को कहा था। पिछले महीने 30 अक्टूबर को कानून मंत्रालय ने जस्टिस गवई की नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी।
शपथ ग्रहण समारोह में इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित कई विशिष्ट हस्तियां मौजूद रहीं। जस्टिस गवई ने अपने पूर्ववर्ती, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लिया, जो मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए।
जस्टिस गवई ने अनुच्छेद 370, चुनावी बॉण्ड और 500 व 1,000 रुपये के नोटों को अमान्य करने जैसे कई अहम मामलों में संविधान पीठ के हिस्से के रूप में महत्वपूर्ण फैसले दिए। इसके अलावा, जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस विवादास्पद बयान पर रोक लगाई, जिसमें कहा गया था कि किसी महिला के स्तनों को छूना या उसके पायजामे का नाड़ा खींचना बलात्कार का प्रयास नहीं है। जस्टिस गवई ने इस टिप्पणी को असंवेदनशील और अमानवीय करार देते हुए कड़ी आपत्ति जताई।
कानूनी सफर
24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे जस्टिस गवई के पिता, स्वर्गीय आरएस गवई एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और बिहार व केरल के पूर्व राज्यपाल थे। जस्टिस गवई देश के दूसरे अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन ने 2010 में यह पद संभाला था।
न्यायमूर्ति गवई ने अपने करियर की शुरुआत 16 मार्च 1985 को वकालत से की थी। उन्होंने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील के रूप में सेवाएं दीं।
1992-93 के दौरान उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में काम किया। जनवरी 2000 में उन्हें नागपुर खंडपीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। 2003 में वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज बने और 2005 में स्थायी जज बनाए गए।
मई 2019 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का जज नियुक्त किया गया। जस्टिस गवई ने कई महत्वपूर्ण संविधान पीठों में हिस्सा लिया, जिनमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक फैसला भी शामिल है, जिसे दिसंबर 2023 में सर्वसम्मति से बरकरार रखा गया।
जस्टिस गवई के ऐतिहासिक फैसले
वणियार आरक्षण (2022): तमिलनाडु में वणियार समुदाय को विशेष आरक्षण देने के फैसले को असंवैधानिक ठहराया गया, क्योंकि यह अन्य पिछड़ा वर्गों के साथ भेदभाव करता था।
राजीव गांधी हत्याकांड (2022): उनकी बेंच ने 30 साल से अधिक समय तक जेल में रहे दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी, क्योंकि तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर राज्यपाल ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।
ईडी निदेशक का कार्यकाल (2023): प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध ठहराते हुए उन्हें 31 जुलाई 2023 तक पद छोड़ने का आदेश दिया।
नोटबंदी (2023): 2016 की नोटबंदी को 4:1 के बहुमत से वैध ठहराया गया, जिसमें कहा गया कि यह फैसला केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक के परामर्श से लिया गया था।
बुलडोजर कार्रवाई (2024): जस्टिस गवई की बेंच ने कहा कि केवल आरोपी या दोषರवणारायण (2024) में संपत्ति को ध्वस्त करना असंवैधानिक है और बिना कानूनी प्रक्रिया के ऐसी कार्रवाई करने वाले अधिकारी जिम्मेदार होंगे।