
आर्थिक मामलों के जानकार
दस मई की शाम को जब एकाएक अमेरिका के राष्ट्रपति का एक ट्वीट वायरल हुआ जिसमें इस बात की पुष्टि हुई कि भारत और पाकिस्तान तुरंत युद्ध विराम पर सहमत हो गए हैं, तो उसने सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर तुरंत विभिन्न तरह की प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया। ये निश्चित है कि युद्ध किसी भी चीज का विकल्प नहीं है, लेकिन 75 वर्षों से भारत के घरेलू मोर्चे पर पाकिस्तान के द्वारा प्रोत्साहित आंतकवाद भी एक ऐसी समस्या बन चुका है, जिसका अंतिम हल, अब हर भारतीय चाहता है।
युद्ध की खुद की अर्थव्यवस्था होती है और हर मुल्क युद्ध के बाद आर्थिक संकट से गुजरता ही है। चाहे वह जितना भी विकसित हो,विकासशील या गरीब। ताजा संघर्ष को अगर आर्थिक स्तर पर टटोला जाए, तो यकीनन प्रथम निष्कर्ष ये ही निकलता है कि पाकिस्तान, भारत के सामने आर्थिक मोर्चे पर कहीं भी नहीं टिकता। इस कथन के पीछे कई आर्थिक आंकड़े साक्ष्य के तौर पर भारत के पक्ष में मजबूती से गवाही देते हैं।
आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान कमजोर
भारत की अर्थव्यवस्था का जीडीपी तकरीबन चार ट्रिलियन अमेरिकन डॉलर के बराबर है, तो वहीं पाकिस्तान का जीडीपी मात्र 340 बिलियन अमेरिकन डॉलर पर खड़ा है। यानी, भारत की अर्थव्यवस्था का जीडीपी पाकिस्तान से 10 गुना बड़ा है। पाकिस्तान के पास आज मात्र आठ बिलियन अमेरिकन डॉलर के बराबर का विदेशी मुद्रा का भंडारण है, जिससे वह दो महीना तक ही अपनी गुजर- बसर कर सकता है। वहीं भारत के पास 678 बिलियन अमेरिकन डॉलर का विदेशी मुद्रा का संचयन है, जो एक वर्ष के आसपास के लिए भारत की आवश्यकताओं को पूरा करता है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर दो प्रतिशत नकारात्मक चल रही है, तो भारत आज 6 से 7 प्रतिशत के बीच चालू वित्तीय वर्ष के लिए अपनी विकास दर को अनुमानित कर रहा है। भारत में घरेलू मोर्चे पर महंगाई को चार प्रतिशत के आसपास नियंत्रित किया जाता है तो पाकिस्तान में आज ये बहुत अधिक है।
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था बाहरी ऋण के जाल में फंस चुकी है क्योंकि वहां पर ऋण व जीडीपी का अनुपात 60 प्रतिशत से ऊपर है, जबकि भारत में ये 20 प्रतिशत से नीचे है। सुरक्षा बजट की ही बात की जाए तो भारत का इस पर अनुमानित खर्चा 78 बिलियन अमेरिकन डॉलर है, तो पाकिस्तान में मात्र 7.6 बिलियन ही है।
पाकिस्तान के बारे में ये जानना भी आवश्यक है कि उसकी अर्थव्यवस्था की वित्तीय हलचल मात्र चार बिंदुओं पर ही टिकी हुई है। एक, चीन से आर्थिक सहायता। दूसरा, सऊदी अरब। तीसरा, दुबई और चौथा, आईएमएफ से मिलने वाले बेल आउट पैकेज। आज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कुल बाहरी ऋण का 22 प्रतिशत हिस्सा चीन का है। भारतीय और पाकिस्तान स्टॉक मार्केट की भी अगर बात की जाए, तो 2014 से 2024 के 10 वर्ष के आंकड़ों के हिसाब से जहां भारतीय स्टॉक मार्केट 150 से 180 प्रतिशत की रिटर्न निवेशकों को दे रहा है। वहीं पाकिस्तान में ये 35 से 50 प्रतिशत के आसपास ही है।
पाकिस्तान ने जब-जब भारत के साथ युद्ध के मोर्चे पर लड़ाई की पहल की है, तो उसे उसका आर्थिक मोर्चे पर बहुत अधिक खामियाजा भुगतने को मिला है। कारगिल की ही अगर बात की जाए तो उसके बाद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में 2.5 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई थी और उसका मुख्य कारण विदेशी निवेश में आई कमी और सैन्य व सुरक्षा बलों पर अधिक वित्तीय निवेश था। अभी पांच वर्ष पूर्व जब एक और कायराना हरकत करते हुए उसने भारत के पुलवामा पर आतंकवादी हमला करके कई निर्दोषों को मारा था। उसके बाद जब भारत ने बालाकोट पर एक सर्जिकल स्ट्राइक की थी, तो उस दिन पाकिस्तान का स्टॉक मार्केट सात प्रतिशत गिरा था। इन सबसे लगातार पाकिस्तानी रुपए में भी बहुत कमजोरी देखने को मिली थी, जिसके चलते पाकिस्तान के आयात बीते वर्षों में बहुत महंगे हुए। कोरोना के दौर में तो इसमें और अप्रत्याशित नुकसान देखने को मिला था। पहलगाम में हुए 22, अप्रैल के आंतकवादी हमले के बाद से कराची स्टॉक मार्केट में अबतक 14 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। 8, मई की एयर स्ट्राइक के बाद तो मात्र एक घंटे में ही कराची स्टॉक मार्केट में 6500 अंकों की गिरावट दर्ज हुई थी और उस दिन वहां लेनदेन को बंद भी कर दिया गया था। ये इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान आर्थिक मोर्चे पर बहुत कमजोर देश है।
यह भी जानकारी के लिए आवश्यक है कि पाकिस्तान अब तक आईएमएफ से 25 दफा बेल आउट पैकेज ले चुका है। आईएमएफ से मिलने वाली फंडिंग में ब्याज की दर बहुत अधिक होती है और उसके अलावा भी कई अन्य शर्तें भी रहती हैं, जिनमें मुख्य तौर पर निजी निवेश को बढ़ाना, खर्चों में बहुत अधिक कमी करना, व्यापार पर करों की दरों को बढ़ाना और वित्तीय व राजकोषीय घाटे पर बहुत अधिक नियंत्रण करना।
युद्ध में भारत से पाकिस्तान को आर्थिक चोट
भारत से आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान को दो दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे। प्रथम, सिंधु नदी के पानी की रोक से उसकी कृषि अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी। दूसरा, पाकिस्तान के घरेलू मोर्चे पर फार्मा क्षेत्र में बहुत अधिक दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे, क्योंकि इसमें भारत, पाकिस्तान का सबसे बड़ा निर्यातक मुल्क है। भारत अब पाकिस्तान को किसी भी दवा का निर्यात नहीं करेगा और पाकिस्तान इसकी खरीदारी मुख्य तौर पर यूरोपियन यूनियन से करने की कोशिश करेगा जहां पर उसे 400 प्रतिशत से लेकर 1000 प्रतिशत की आर्थिक मार देखने को मिलेगी।
युद्ध से भारत को संभावित आर्थिक नुकसान
यकीनन, भारत के लिए भी ये युद्ध आर्थिक मोर्चे पर कई परेशानियां ला सकता है। मसलन, भारतीय आबादी पाकिस्तान की आबादी से तकरीबन छह गुना अधिक है और भारत भी लंबे समय से बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है। 80 करोड़ लोगों को खाद्य पदार्थों का मुफ्त वितरण भी आर्थिक मोर्चे पर भारत के लिए एक मुख्य सोच का विषय है। ये भी समझना अत्यंत आवश्यक है कि पिछले कुछ वर्षों से जीडीपी के कद में भारत विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था है और बड़ी तेजी से जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। लेकिन अगर भारत युद्ध के मोर्चे पर उलझता है तो इस स्तर पर भारत को काफी समस्याएं आएंगी। ट्रंप के आने के बाद से अमेरिका और चीन में तनातनी लगातार बढ़ी है और ट्रंप ने जिस तरह से चीन पर 100 प्रतिशत से अधिक टैरिफ लगाया है, तो उससे ये काफी हद तक संभव है कि चीन से कई बड़ी कंपनियां अपने वैश्विक उत्पादन को भारत की तरफ मोड़ेंगी, क्योंकि इसके लिए भारत आज एक मुख्य आकर्षण है। लेकिन युद्ध के मोर्चे पर उलझने के बाद इस बात की बहुत संभावना है कि भारत की बजाय कंपनियां एशिया में वियतनाम, मलेशिया व इंडोनेशिया की तरफ चली जाएं।
रक्षा बजट जो कि चालू वित्तीय वर्ष के बजट में तकरीबन 6,80,000 करोड़ के आसपास का अनुमानित है, उसका अब वास्तविक प्रयोग होगा, जो एक बहुत बड़ी रकम है। अभी तक यह रकम बजट में सिर्फ अनुमानित की गई थी, लेकिन युद्ध होने पर इसका वास्तविक खर्च होगा और इस बात की भी बहुत अधिक संभावना है कि इस खर्चे में अप्रत्याशित बढ़ोतरी भी हो सकती है जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। पहला, अगर कच्चे तेल के वैश्विक मूल्यों में बढ़ोतरी होती है, तो वह एक बहुत बड़ा संकट होगा क्योंकि युद्ध के लिए कच्चा तेल सबसे बड़ी आवश्यकता है। ये भी संभव है कि युद्ध की परिस्थितियों में भारतीय आवाम को घरेलू बाजार में कच्चे तेल का संकट देखने को मिले जिसका दुष्प्रभाव निजी वाहनों से लेकर सार्वजनिक परिवहन के सभी संसाधनों पर भी पड़ेगा। दूसरा दुष्प्रभाव ये होगा कि कच्चे तेल के मूल्य में बढ़ोतरी से देश के घरेलू बाजार में सभी चीजों के मूल्यों में बढ़ोतरी होगी जिसमें खाद्य पदार्थ, सब्जियां, फल इत्यादि मुख्य तौर पर सम्मिलित होंगे। तीसरा दुष्प्रभाव ये होगा कि रक्षा बजट के लिए अनुमानित रकम के उपयोग के चलते सामाजिक कल्याण की विभिन्न योजनाएं जिनमें ग्रामीणों के लिए मनरेगा, किसानों के लिए एमएसपी, गरीबों के लिए मुफ्त खाद्यान्नों का वितरण, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की विभिन्न सुविधाएं इत्यादि वित्तीय कोष में हुईं एकाएक कमी से बुरी तरह से प्रभावित होगी।
इन सब के चलते देश के आम व्यक्ति के जीवन पर तुरंत आर्थिक संकट देखने को मिलेंगे और जिसके चलते वह अपने खर्चों को नियंत्रित करने की कोशिश करेगा।
युद्ध के चलते ये भी होगा कि है राजकोषीय घाटे का बढ़ेगा और उसके चलते विकास की दर में कमी होगी। इसी से जुड़ा हुआ अगला नकारात्मक प्रभाव ये देखने को मिलेगा कि भारत का रुपया लगातार कमजोर होने लगेगा। इस बात को भी ख्याल में रखना आवश्यक है कि कोरोना की पहले तिमाही की तालाबंदी के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का जीडीपी 25 प्रतिशत से अधिक नकारात्मक दर्ज हुआ था। मतलब बहुत साफ है कि यह समझना एक भ्रम है कि युद्ध के इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से अछूती रहेगी।
फिर भी हर भारतीय की चाहत
इन सबके बावजूद हर भारतीय की दिली चाहत इस दौरान यही है कि पाकिस्तान को अब एक कड़ा जवाब जरूर दिया जाए चाहे, इसके जो मर्जी आर्थिक दुष्परिणाम भविष्य में सामने आए। इसी के चलते 10 मई के युद्ध विराम की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर भारतीयों की संवेदनाओं के विभिन्न रूप देखने को मिले।