नई दिल्ली। भारत सरकार के विरोध के बाद हांगकांग की नीलामी संस्था सोतबी (Sotheby’s) ने भगवान बुद्ध से जुड़ी पिपरहवा अवशेषों की नीलामी टाल दी है। यह नीलामी 7 मई को होनी थी। संस्कृति मंत्रालय ने इस नीलामी को रुकवाने में अहम भूमिका निभाई।
संस्कृति मंत्रालय के हवाले जारी पीआईबी की प्रेस रिलीज के अनुसार, जैसे ही मीडिया के जरिए भारत को नीलामी की जानकारी मिली, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक ने हांगकांग स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास के माध्यम से सोतबी से नीलामी रोकने की मांग की। उसी दिन, केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने ब्रिटेन की संस्कृति मंत्री लीसा नैंडी से इस मामले पर बात की और बताया कि ये अवशेष करोड़ों बौद्ध अनुयायियों के लिए धार्मिक महत्व रखते हैं।
5 मई को मंत्रालय ने सोतबी और क्रिस पेपे को कानूनी नोटिस भेजा। विदेश मंत्रालय ने भी इस मुद्दे को ब्रिटेन और हांगकांग में भारतीय दूतावासों के माध्यम से उठाया। 6 मई को भारत की एक उच्चस्तरीय टीम ने हॉन्गकॉन्ग में सोतबी अधिकारियों से बातचीत की और बताया कि ये अवशेष सिर्फ ऐतिहासिक नहीं, बल्कि पवित्र धरोहर हैं, जो भारत की संपत्ति हैं और औपनिवेशिक काल में भारत से ले जाए गए थे।
6 मई देर रात सोतबी ने ईमेल के जरिए नीलामी टालने और आगे चर्चा करने की जानकारी दी। अगले दिन सोतबी की वेबसाइट से नीलामी पेज हटा लिया गया। संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि इस प्रयास में भारत के यूनेस्को स्थायी प्रतिनिधि, यूनेस्को निदेशक क्रिस्टा पिक्कट, भारत और श्रीलंका समेत कई बौद्ध संस्थाएं, प्रोफेसर नमन आहूजा और मीडिया ने सहयोग किया।
क्या है पिपरहवा अवशेष

पिपरहवा अवशेष उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में स्थित पिपरहवा स्तूप से 1898 में खोजे गए प्राचीन अवशेष हैं, जिनका ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह स्थल प्राचीन कपिलवस्तु से जुड़ा माना जाता है, जो भगवान बुद्ध की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इन अवशेषों में हड्डियों के टुकड़े, क्रिस्टल और सेलखड़ी से बने ताबूत, बलुआ पत्थर का संदूक, सोने के आभूषण और अन्य अनुष्ठानिक वस्तुएं शामिल हैं।
सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इन्हें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेषों से जोड़ा जाता है। बौद्ध परंपरा के अनुसार, महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण (483 ईसा पूर्व) के बाद उनके अस्थि अवशेषों को आठ भागों में बांटा गया था और उनके अनुयायियों ने इनके ऊपर आठ मूल स्तूपों का निर्माण कराया था। पिपरहवा का स्तूप इन्हीं आठ में से एक माना जाता है।
पिपरहवा अवशेषों में भगवान बुद्ध की हड्डियों के टुकड़े, पत्थर और क्रिस्टल से बने ताबूत, एक बालू-पत्थर का संदूक और सोने-रत्नों के चढ़ावे शामिल हैं। इन्हें 1898 में विलियम क्लैक्सटन पेपे नामक ब्रिटिश नागरिक ने उत्तर प्रदेश के पिपरहवा गांव में खोजा था। इन पर ब्राह्मी लिपि में खुदी एक शिलालेख यह प्रमाणित करता है कि ये अवशेष शाक्य वंश द्वारा बुद्ध को समर्पित किए गए थे।
1899 में इनमें से अधिकांश अवशेष कोलकाता स्थित भारतीय संग्रहालय में भेज दिए गए थे और ये अब “एए” श्रेणी की धरोहर मानी जाती हैं, जिन्हें भारतीय कानून के तहत देश से बाहर ले जाना या बेचना प्रतिबंधित है। हालांकि, कुछ अवशेष पेपे परिवार के पास रह गए थे और उनके वंशज क्रिस पेपे ने इन्हें नीलामी के लिए सोतबी को सौंपा।