छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक सरकारी अस्पताल में एक बैगा आदिवासी के शव के बदले रिश्वत लेने की घटना सिर्फ भ्रष्टाचार का एक और मामला नहीं है। यह हमारी सामूहिक चेतना पर गाज गिरने का एक और उदाहरण है, कि हमें इससे फर्क ही नहीं पड़ता कि महज एक हजार रुपये के लिए इस बैगा परिवार को 72 घंटों तक अपने परिजन के शव के लिए अस्पताल के दरवाजे पर पड़े रहना पड़ा। रायपुर से करीब दो सौ किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित ठोंगापुर के एक आदिवासी अमर सिंह बैगा गाज गिरने से बुरी तरह बीमार पड़ गए थे और उन्हें उनके परिजन मुश्किल से रायपुर के सरकारी डीकेएस अस्पताल तक लेकर आए थे। उन्हें बचाया जा नहीं जा सका, और जैसा कि द लेंस की रिपोर्ट से पता चलता है कि उनके परिजनों से पहले तो 1900 रुपये लिए गए और फिर और पैसों के लिए दबाव बनाया गया। यह तब हुआ, जब देश की राष्ट्रपति एक आदिवासी हैं और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी। और ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि अपनी विशिष्टताओं के कारण बैगा आदिवासियों को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाता है। दरअसल बात सिर्फ उनके सरकारी दर्जे की नहीं आदिवासियों के प्रति हमारे बर्ताव की है। सवाल बस यह है कि, आजादी के आठ दशक होने को हैं और इलाज की समुचित सुविधा बैगा आदिवासियों तक क्यों नहीं पहुंच सकी
एक आदिवासी के शव की कीमत !

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Arun Pandey