कोलकाता। पश्चिम बंगाल के कोलकाता ( KOLKATA TOPPER ) की 17 साल की सृजनी ने CISCE ISC 2025 की परीक्षा में इतिहास रच दिया है। इस होनहार छात्रा ने इंग्लिश, फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स में पूरे 400 में से 400 अंक हासिल किए हैं। लेकिन, सृजनी की कहानी सिर्फ अंकों तक सीमित नहीं है। ये एक नई सोच और हिम्मत की कहानी है, और ये कहानी हर किसी को प्रेरित कर रही है।
सृजनी ने अपनी बोर्ड परीक्षा के फॉर्म में एक अनोखा कदम उठाया। उन्होंने अपना सरनेम हटाने की अनुमति मांगी और धर्म के कॉलम में ‘ह्यूमैनिटी’ लिखा। इस पर मीडिया में दिए इंटरव्यू में सृजनी ने कहा ‘मैं सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक हर तरह की नाइंसाफी के खिलाफ हूँ। धार्मिक कट्टरता और हिंसा हमें बांटती है जबकि हमें एकजुट होकर सहिष्णुता और समानता की राह चुननी चाहिए।’
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सामाजिक बदलाव की मिसाल बनीं सृजनी
सृजनी सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं हैं, वो सामाजिक बदलाव की मिसाल भी हैं। 14 अगस्त 2024 को कोलकाता में RG कर मेडिकल कॉलेज की एक डॉक्टर के साथ हुई दर्दनाक घटना के बाद सृजनी ने अपनी बहन और परिवार के साथ ‘रि-क्लेम द नाइट’ प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया। उन्होंने मांग की कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो और ना निर्भया जैसी घटना हो, ना धार्मिक जंग हो और ना ही किसी तरह का भेदभाव हो।
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माता-पिता से मिली प्रगतिशील सोच
सृजनी को ये प्रगतिशील सोच अपने माता-पिता से मिली है। उनके पिता देबाशीष गोस्वामी इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट में गणितज्ञ हैं और 2012 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार जीत चुके हैं। उनकी मां गौपा मुखर्जी गुरुदास कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। सृजनी की मां बताती हैं, “हमने बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र में सरनेम नहीं लिखवाया, क्योंकि हम जाति, धर्म और पितृसत्ता के खिलाफ हैं।”

सृजनी पढ़ाई के साथ-साथ शास्त्रीय नृत्य भी करती हैं। वो कहती हैं, “दिनभर पढ़ाई से दिमाग थक जाता है, आराम भी जरूरी है।” इस संतुलन ने ही उन्हें इतनी बड़ी कामयाबी दिलाई। सृजनी का सपना है कि वो बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) में फिजिक्स या मैथमेटिक्स में रिसर्च करें। उनकी इस उपलब्धि और हिम्मत की चर्चा हर तरफ हो रही है। सृजनी की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची कामयाबी नंबरों से नहीं बल्कि सही सोच और हिम्मत से मिलती है।
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