हजारों करोड़ के कारखानों को महज 55 करोड़ में बेच दिया था डालमिया को
दिल्ली । यह भारत के इतिहास में उस वक्त मजदूरों (Mazdoor Diwas) खिलाफ की गई सर्वाधिक लौमहर्षक कार्रवाई थी। यह निजीकरण के खिलाफ देश के पहले आंंदोलनों में से एक था। जब 2 जून 1991 को यूपी के डाला में मजदूरों को घेर कर पुलिस ने गोलियों से छलनी कर दिया था। उस वक्त उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी और सीमेंट कारखाने के निजीकरण का विरोध कर रहे मजदूरों को पुलिस ने घेर कर मार डाला था।.यह भारत के इतिहास में उस वक्त मजदूरों के खिलाफ की गई सर्वाधिक लौमहर्षक कार्रवाई थी।
आजाद भारत में पंडित नेहरू के प्रयासों से निर्मित सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग 90 का दशक आते आते एक के बाद एक बदहाली की मार झेल रहे थे। यह बात कम लोग जानते हैं कि एक वक्त उत्तर प्रदेश सरकार स्कूटर, टीवी, सीमेंट आदि खुद बनाती थी। यूपी सरकार के विक्रम लैंब्रो ब्रांड के नाम से स्कूटर बेहद प्रसिद्ध थे वैसे ही डाला का सीमेंट सुप्रसिद्ध था। नेहरू जी के कहने पर रिंहद बांध के निर्माण के लिए डाला, चूर्क, चुनार नाम की तीन सीमेंट फैक्ट्रियां बनाई गई थी। भारी घोटालों की वजह से अन्ततः यह सीमेंट फैक्ट्रियों का दीवाला निकल गया। मुलायम सिंह यादव ने इन कारखानों को महज 55 करोड़ रूपये में डालमिया को बेचने का फैसला कर लिया।
फिर शुरू हुआ मजदूरों का ऐतिहासिक आन्दोलन
तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सरकार द्वारा राज्य सीमेंट निगम की इस अन्यायपूर्ण और अपमान -जनक समझौते के विरोध में श्रमिक वजह से मजदूर सड़क पर आ गए और उन्होंने 2 जून 1992 को मजदूरों ने सड़क जाम का फैसला किया। यूपी के सोनभद्र में दोपहर बाद 3.20 बजे डाला सीमेंट फैक्ट्री के कालोनी गेट के सामने मुख्य मार्ग पर इकट्ठा हुए। वह लागातार नारेबाजी कर रहे थे। पुलिस के कहने पर भी मजदूर वहां से नहीं हट रहे थे। अचानक तकरीबन 500 हथियार बंद जवानों ने उन्हें घेर लिया। फिर जो हुआ उसे भुलाया नहीं जा सकता।
आठ मजदूरों की हुई मौत
डाला में पुलिस ने लाठीचार्ज भी नहीं किया सीधे फायर झोंक दिया। सरकारी नरसंहार की इस घटना में रामप्यारे विधि, शैलेंद्र राय, नरेश राम, दीनानाथ, रामधारी, सुरेंद्र द्विवेदी, नंदलाल ,बालगोविंद आदि आठ मजदूरों और एक 14 साल के छात्र राकेश की मौत हुई थी।पचास से अधिक घायल हुए तथा सौ से अधिक गिरफ्तार हुए थे।
क्या देखा प्रत्यक्षदर्शियों ने?
उस वक्त ब्लिट्ज के लिए काम करने वाले पत्रकार रमेंद्र सिन्हा जो आन्दोलन कवर करने आये थे बताते हैं कि रविवार को डाला में साप्ताहिक बाजार लगता है। हम डाला बाजार से उत्तर में एक औघड़ साधक के साथ बैठे थे तभी मुझे कुछ आवाजें सुनाई पड़ी । मेरे मुंह से निकला यह तो राइफल की आवाज हैं। लगभग पांच मिनट बाद एक हाफ डाला ट्रक डाला की तरफ से आयी। उसपर एक युवक खड़ा था।उसकी कमीज की तरफ से आयी।उसपर एक युवक खड़ा था।उसकी कमीज खून से लथपथ थी। वह चिल्ला रहा था- ‘पुलिस गोलीचला रही है, हम अस्पताल जा रहे हैं।
फिर शुरू हुआ पलायन की दौर
रमेंद्र बताते हैं गोली चलने के बाद सड़कों पर घोर सन्नाटा था। पटरी के कुछ दुकानदार अपनी सब्जियां छोड़ कर भाग गये थे। हम घटनास्थल पर पहुंचे तो पुलिस ने हमें रोक लिया। एक पुलिसवाला जो गोलियां चला रहा था उसने ललकारा–‘ एक कदम भी आगे तो गोली मार देंगे। हमें मौके पर पता चला कि चार लाश गायब हैं 8 फैक्ट्री के अस्पताल में पहुँच गई हैं।. गोली चलने के बाद से मजदूरों की कालोनी के हजारों स्त्री-पुरुष और बच्चे पलायन करने लगे पुलिस ने रात भर घरों पर छापे डालकर मजदूरों की गिरफ्तारी की।
पहले जेपी फिर बिड़ला की हुई सीमेंट फैक्ट्री
धीमे धीमे यह खबर पूरे देश में फैल गई संसद में जोरदार हंगामा हुआ वामपंथी सांसदों ने यूपी सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। सरकार के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा था। मजदूर जमानत पर आये और फिर लखनऊ में धरने पर बैठ गए। फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और यूपी में कल्याण सिंह की सरकार बनी कुछ समय के लिए कारखाने खुले फिर बंद हो गए। बरसों बरस मजदूरों को फूटी पाई नहीं मिली। लगभग एक दशक बाद न्याय मिला तो फैक्ट्री को पहले जेपी सीमेंट को बेंच दिया गया बाद में जेपी ने इसे बिड़ला ग्रुप के ग्रासिम को बेंच दिया।