सिंधु जल संधि: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले के एक दिन बाद 23 अप्रैल को भारत ने सख्त कदम उठाते हुए पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है। आतंकवादियों के हमले में 28 लोगों की मौत हो गई थी। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने प्रेस कॉन्फेंस में कहा, “1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को अपना समर्थन देना बंद नहीं कर देता।”
सिंधु जल संधि पर 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए थे। यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। यह संधि सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों रावी, ब्यास, सतलुज, सिंधु, झेलम और चिनाब के जल बंटवारे के लिए बनाई गई थी। यह संधि अब 65 साल पुरानी है और इसे दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण समझौते के रूप में देखा जाता रहा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965, 1971, 1999 में युद्ध हो चुके हैं। इसके अलावा पाकिस्तान समर्थित कई बड़े आतंकवादी हमले भी भारत पर हुए हैं। इतने तनाव के बाद भी यह पहली बार है कि सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला लिया गया है। इस जल संधि के स्थगित होने के बाद अब आगे क्या? भारत के इस फैसले का क्या असर हो सकता है, समझते हैं इस रिपोर्ट में…
सिंधु जल संधि: किसके हिस्से कितना पानी
संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों रावी, ब्यास, सतलुज का पूरा उपयोग करने का अधिकार है, जिनका औसत सालाना प्रवाह 41 अरब घनमीटर है। वहीं, पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब के पानी का उपयोग करने का अधिकार है, जिनका सालाना प्रवाह 99 अरब घनमीटर है। संधि के अनुसार, भारत सिंधु नदी प्रणाली के कुल पानी का केवल 20% उपयोग कर सकता है, जबकि 80% पानी पाकिस्तान को जाता है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिंधु जल के पूर्व भारतीय आयुक्त पी.के. सक्सेना ने बताया कि भारत पाकिस्तान के साथ जल प्रवाह डेटा साझा करना तुरंत बंद कर सकता है। सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी के उपयोग के लिए भारत पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। इसके अलावा भारत अब पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब पर बांध बना सकता है। भारत जम्मू-कश्मीर में वर्तमान में निर्माणाधीन दो जलविद्युत परियोजनाओं झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर किशनगंगा जलविद्युत परियोजना और चिनाब पर रातले जलविद्युत परियोजना का दौरा करने से पाकिस्तानी अधिकारियों को भी रोक सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय कानूनों और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों का ध्यान रखना होगा।
सिंधु जल संधि: पाकिस्तान पर क्या होगा असर
संधि के निलंबन से पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है। पाकिस्तान में 47 मिलियन (4.7 करोड़) एकड़ से अधिक भूमि की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है। विशेषज्ञों का कहना है कि पानी की आपूर्ति में कमी से पाकिस्तान में खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा उत्पादन प्रभावित हो सकता है, क्योंकि ये नदियां उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। सिंधु नदी को पाकिस्तान की लाइफ लाइन माना जाता है। पानी की आपूर्ति में कमी से विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों में लोग प्रभावित हो सकते हैं।
पानी की कमी से बिजली उत्पादन, औद्योगिक गतिविधियां प्रभावित होंगी, जिससे सामाजिक अशांति और आर्थिक नुकसान हो सकता है। यह कदम भारत-पाकिस्तान संबंधों को और खराब कर सकता है, जिससे सैन्य तनाव या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विवाद बढ़ सकता है।
सिंधु जल संधि: पाकिस्तान के पास क्या है विकल्प
पाकिस्तान इस मामले को विश्व बैंक के समक्ष उठा सकता है, जिसने मूल रूप से संधि में मध्यस्थता की थी। इसके अलावा पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय या संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर अपनी शिकायत दर्ज कर सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान भारत पर संधि को बहाल करने के लिए कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश करेगा।
सिंधु जल संधि: विश्व बैंक की भूमिका
विश्व बैंक की भूमिका संधि में मध्यस्थ के रूप में सीमित है और वह केवल तटस्थ विशेषज्ञ या मध्यस्थता प्रक्रिया के लिए व्यक्तियों को नामित कर सकता है। किसी तीसरे देश के मध्यस्थता में शामिल होने की संभावना कम है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों ही तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को लेकर ऐतिहासिक रूप से संशय में रहे हैं। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र या अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन कूटनीतिक बातचीत को बढ़ावा दे सकते हैं।
पाकिस्तान में क्या हो रहा है?
सिंधु जल संधि समझौता स्थगित करने के भारत के फैसले के बाद पाकिस्तान में हलचल शुरू हो गई है। अख़बार द डॉन की खबर के अनुसार, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति ने बैठक की। पाकिस्तान के विद्युत मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि “भारत द्वारा सिंधु जल संधि को लापरवाही से स्थगित करना जल युद्ध जैसा है। पानी की हर बूंद हमारे अधिकार में है और हम पूरी ताकत से इसकी रक्षा करेंगे।” संघीय जल संसाधन मंत्री मियां मोइन वट्टू ने कहा कि भारत सिंधु जल संधि पर एकतरफा निर्णय नहीं ले सकता, क्योंकि इसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों का समर्थन प्राप्त है।