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लेंस संपादकीय

कश्मीरियत के साथ खड़े होने का वक्त

Editorial Board
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Published: April 23, 2025 6:18 PM
Last updated: April 23, 2025 7:47 PM
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ऐसे वक्त में जब जम्मू-कश्मीर में सब कुछ सामान्य होने का भरोसा जताया जा रहा था, पहलगाम में पर्यटकों पर हुआ भीषण आतंकी हमला स्मरण पत्र की तरह है कि आतंकवादी किसी मौके की तलाश में थे। इस हमले में मरने वालों की संख्या 28 हो गई है, जिनमें देश भर से आए 26 पर्यटक और दो विदेशी नागरिक शामिल हैं। यह इत्तफाक ही है कि प्रधानमंत्री मोदी 19 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर में नई वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के साथ ही कुछ अन्य परियोजनाओं के शिलान्यास के लिए राज्य के दौरे पर आने वाले थे, लेकिन खराब मौसम के कारण उनका प्रवास रद्द कर दिया गया। आतंकवाद के लंबे दौर, फिर 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से उपजी राजनीतिक उथल-पुथल और कोविड-19 लॉकडाउन के बाद, कश्मीर आखिरकार उबरने लगा था। 2016 की नोटबंदी के फैसले ने भी जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को खासा प्रभावित किया था। इधर कुछ महीनों में वहां पर्यटकों की तादाद अच्छी-खासी बढ़ी है और पहलगाम में भी इस हमले के समय काफी लोग मौजूद थे। दूसरी ओर पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख ने हाल ही में भड़काने वाला बयान दिया था, सुरक्षा विशेषज्ञ यह मानते हैं कि इसका संज्ञान लिया जाना चाहिए था। वास्तव में यह हमला कश्मीरियत और उस भरोसे पर किया गया है, जिसके सहारे हजारों पर्यटक कश्मीर आने लगे हैं। गौर किया जाना चाहिए कि पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 को निष्प्रभावी करने और इस सूबे को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद यहां यह सबसे बड़ा आतंकी हमला है। इस राजनीतिक बदलाव के बाद सूबे के लोगों को लंबे समय तक लॉकडाउन में रहना पड़ा था। इसके अलावा वहां के सियासी दलों के नेताओं को भी लंबे समय तक नजरबंद किया गया था। लंबी तकलीफों के बावजूद वहां कश्मीरियत जिंदा रही है, जिसकी कहानियां इस हमले के बाद भी सामने आ रही हैं। मसलन, घोडे़ वाले सैयद आदिल हुसैन को ही देखिए, जिसने जांबाजी के साथ आतंकियों का सामना करते हुए जान दे दी। बीती सर्दियों में जब श्रीनगर-सोनमर्ग राजमार्ग में हुई भारी बर्फबारी में सैकड़ों पर्यटक फंस गए थे, तब स्थानीय लोगों ने न केवल उनकी मदद की थी, बल्कि अपने घर उनके लिए खोल दिए थे। यह जानने के लिए 1970 के दशक की फिल्में देखने की जरूरत नहीं है कि पर्यटन आम कश्मीरियों की रोजी-रोटी से जुड़ा हुआ है, और यह भी कि यहां से लौटने वाले पर्यटक सूखे मेवे और सेब-सी मीठी यादें लेकर लौटते हैं। इस हमले ने इस रिश्ते पर चोट की है। इस हमले ने बांटने वाले मंसूबों को भी हवा दी है। इसलिए ऐसे नाजुक समय में संयम की जरूरत है। हम फिर दोहरा रहे हैं कि यह हमला किसी जाति या धर्म नहीं, बल्कि मानवता पर किया गया है।
यह वक्त हिसाब-किताब का नहीं है, फिर भी सवाल जवाबदेही का है। सवाल, उन दावों का है, जिनमें कहा जाता रहा है कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य हो गया है। सवाल उन मंसूबों का है, जिन्हें कश्मीर से मतलब है, कश्मीरियों से नहीं। इस हमले के बाद जम्मू-कश्मीर के आम लोगों और वहां के सियासी दलों ने जैसा संयम दिखाया है, उसकी आज सारे देश में जरूरत है। आज कश्मीरियत के साथ खड़े होने की जरूरत है। आतंकियों को जवाब देने के लिए हमारे सुरक्षा बल काफी हैं।

TAGGED:EditorialJammu and Kashmirपहलगाम आतंकी हमला
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