वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सेंट्रल ऑफिस के सामने पिछले पांच दिनों से धरने पर बैठी बलिया की अर्चिता सिंह ने अपनी पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में अनियमितताओं का गंभीर आरोप लगाया है। अर्चिता का कहना है कि उनकी मेहनत और मेरिट को सत्ता और राजनीतिक दबाव ने कुचल दिया है। अर्चिता ने इस मामले पर द लेंस से बातचीत की जिसमें उन्होंने अपनी पीड़ा और संघर्ष को साझा करते हुए लोगों से समर्थन की अपील की। बीएचयू अकादमिक हत्या
क्या है पूरा मामला?
बीएचयू अकादमिक हत्या : बलिया निवासी अर्चिता सिंह ने बीएचयू के हिंदी विभाग में पीएचडी के लिए आवेदन किया था। उन्होंने शोध प्रवेश परीक्षा (RET) 2024-2025 में सामान्य रैंक 15 हासिल की और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) श्रेणी की वेटिंग लिस्ट में पहला स्थान प्राप्त किया। इसके बावजूद उनका प्रवेश रोक दिया गया। अर्चिता का आरोप है कि उनकी जगह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के एक इकाई मंत्री भास्करादित्य त्रिपाठी जिनकी सामान्य रैंक 18 और वेटिंग रैंक 3 है उसको प्रवेश देने की कोशिश की जा रही है।
द लेंस से फोन पर बात करते हुए अर्चिता ने बताया, “मैंने पूरी निष्ठा, ईमानदारी और मेहनत से अपनी पढ़ाई की है। कक्षा 10 में मैंने अपने ज़िले में तीसरा स्थान हासिल किया था। मैं अपने परिवार की पहली पीढ़ी की छात्रा हूँ जो यूनिवर्सिटी तक पहुंची है। लेकिन सत्ता और शासन के दबाव में मेरा हक़ छीना जा रहा है। मेरी अकादमिक हत्या हो रही है।”
प्रशासन पर गंभीर आरोप
बीएचयू अकादमिक हत्या : अर्चिता ने बीएचयू प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनकी फीस जमा करने के लिए पोर्टल तक नहीं खोला गया ताकि उनका प्रवेश रद्द किया जा सके। अर्चिता ने बताया “मैंने समय पर अपना EWS प्रमाण पत्र जमा कर दिया था। पहले पुराना प्रमाण पत्र जमा किया फिर नया भी दे दिया। इसके बावजूद मुझे दरकिनार कर दिया गया। यह साफ़ तौर पर सत्ता का दुरुपयोग है।”

‘यह हर मेहनती छात्र की लड़ाई है‘
बीएचयू अकादमिक हत्या: धरने के दौरान अर्चिता ने एक वीडियो भी जारी किया जिसमें उन्होंने लोगों से भावुक अपील की। उन्होंने कहा, “यह लड़ाई सिर्फ़ मेरी नहीं है, यह हर उस विद्यार्थी की लड़ाई है जो सच्चाई के रास्ते पर चलता है। मैं आप सबसे निवेदन करती हूँ कि मेरी इस न्यायपूर्ण लड़ाई में मेरा साथ दें और सत्य का साथ दें।”
द लेंस से बातचीत में अर्चिता ने आगे कहा, “मैंने अपने आंदोलन का पांचवां दिन देख लिया है। मौसम विपरीत है, हालात कठिन हैं, लेकिन मेरा हौसला अभी भी कायम है। यह सिर्फ़ मेरी नहीं, उन लाखों मेहनतकश महिलाओं की लड़ाई है जिन्हें पढ़ाई से रोककर सामाजिक बंधनों में बांध दिया जाता है।”

समर्थन
अर्चिता की इस लड़ाई को कई संगठनों और लोगों का समर्थन मिल रहा है। करणी सेना ने उनके पक्ष में उतरने की घोषणा की है और उनके प्रदेश अध्यक्ष ने धरना स्थल पर पहुंचने की बात कही है। इसके बाद बीएचयू प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी है। बलिया में छात्र नेता प्रवीण के नेतृत्व में छात्रों ने जिलाधिकारी को एक पत्र सौंपा जिसमें शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से अर्चिता को तत्काल प्रवेश दिलाने की मांग की गई। सोशल मीडिया पर भी #अर्चिताकोएडमिशन_दो जैसे हैशटैग्स के साथ उनकी आवाज़ को समर्थन मिल रहा है।
बीएचयू में पहले भी हो चुके हैं ऐसे विवाद
यह पहली बार नहीं है जब बीएचयू में पीएचडी प्रवेश को लेकर विवाद हुआ हो। हाल ही में मार्च 2025 में एक दलित छात्र शिवम सोनकर ने भी प्रवेश में भेदभाव का आरोप लगाते हुए वीसी आवास के बाहर 20 दिनों तक धरना दिया था। उनकी मांग के बाद यूजीसी ने बीएचयू को दूसरा प्रवेश राउंड आयोजित करने की अनुमति दी जिसके बाद उन्हें प्रवेश मिला। अर्चिता का कहना है कि बीएचयू में पीएचडी प्रवेश में अनियमितताएं अब एक चलन बन गया है।
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प्रशासन का रुख
19 अप्रैल को देर रात बीएचयू के कार्यवाहक कुलपति ने धरना स्थल पर जाकर अर्चिता से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया। लेकिन अर्चिता ने इस आश्वासन को ठोस कार्रवाई न मानते हुए अपना धरना जारी रखा। 21 अप्रैल तक प्रशासन की ओर से कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है जिससे अर्चिता और उनके समर्थकों में नाराज़गी बढ़ रही है।
क्या है सवाल?
अर्चिता की इस लड़ाई ने भारत की शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता के बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर मेरिट और मेहनत को सत्ता और सिफारिशों के आगे हारना पड़े तो क्या यह शिक्षा का असली मकसद है? अर्चिता की कहानी उन लाखों छात्रों की पीड़ा को दर्शाती है जो आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं और उच्च शिक्षा में अवसरों के लिए जूझते हैं।