The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • Podcast
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
  • More
    • English
    • स्क्रीन
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • आंकड़ा कहता है
    • टेक्नोलॉजी-ऑटोमोबाइल्‍स
    • धर्म
    • नौकरी
    • लेंस अभिमत
    • साहित्य-कला-संस्कृति
    • सेहत-लाइफस्‍टाइल
    • अर्थ
Latest News
मणिपुर में उग्र प्रदर्शन जारी, इंटरनेट बंद होने से कई अखबारों का प्रकाशन बाधित
जन्नत की हक़ीक़त
बिहार : देश के सबसे गरीब राज्य के चुनाव में कॉर्पोरेट का रंग
डॉक्टर निलंबन मामला : गोवा के स्वास्थ्य मंत्री ने मांगी माफी,  बोले- मेरे शब्द गलत थे, मैं मरीज के लिए खड़ा था
इजरायली सेना की हिरासत में नोबल विजेता ग्रेटा थनबर्ग, मदद लेकर जा रही थीं गजा
चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के आरोपों के बचाव में कूदी बीजेपी
रायपुर में मारपीट करने वाली लड़कियां बॉलीबॉल खिलाड़ी नहीं, चला रहीं थी सेक्स रैकेट, पुलिस ने 5 को किया गिरफ्तार
फार्मेसी काउंसिल : पदाधिकारियों ने अपने के भत्ते बढ़ा लिए और भरपाई के लिए रजिस्ट्रेशन शुल्क में कर दी भारी वृद्धि
रायपुर में शहीदों के परिजनों का गृहमंत्री के घर के सामने प्रदर्शन, बोले- सरेंडर नक्सलियों के लिए नीति, शहीदों के लिए क्या है?
उस दिन आकाश राव ने जिस खतरे से हमें दूर रखा, आज उसी खतरे का वो शिकार हो गए !
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • देश
  • दुनिया
  • लेंस रिपोर्ट
  • Podcast
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • Podcast
  • सरोकार
  • छत्तीसगढ़
  • वीडियो
  • More
    • English
    • स्क्रीन
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • आंकड़ा कहता है
    • टेक्नोलॉजी-ऑटोमोबाइल्‍स
    • धर्म
    • नौकरी
    • लेंस अभिमत
    • साहित्य-कला-संस्कृति
    • सेहत-लाइफस्‍टाइल
    • अर्थ
Follow US
© 2025 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
The Lens > साहित्य-कला-संस्कृति > अंतिम जोहार रोज दी : खामोश हो गई डायन प्रथा के खिलाफ और आदिवासी अधिकारों की आवाज
साहित्य-कला-संस्कृति

अंतिम जोहार रोज दी : खामोश हो गई डायन प्रथा के खिलाफ और आदिवासी अधिकारों की आवाज

The Lens Desk
Last updated: April 21, 2025 1:39 pm
The Lens Desk
Share
Dr. Rose Kerketta
SHARE

Dr. Rose Kerketta: झारखंड की माटी से जुड़ीं, खड़िया आदिवासी समुदाय की बेटी, प्रसिद्ध लेखिका, कवयित्री, शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. रोज केरकेट्टा का गुरुवार, 17 अप्रैल 2025 को 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया। रोज दी, जैसा कि उन्हें प्यार से पुकारा जाता था, उन्‍होंने अपने जीवन को आदिवासी संस्कृति, भाषा और अधिकारों के संरक्षण के साथ-साथ डायन प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के लिए समर्पित कर दिया। उनकी कहानियां, कविताएं और सामाजिक कार्य झारखंड की सामाजिक सच्चाइयों और जनविमर्श की गहरी छाप थीं।

रोज केरकेट्टा की जिंदगी से एक मार्मिक कहानी तब सामने आती है, जब वे सिमडेगा के एक गांव में डायन प्रथा की शिकार एक महिला से मिलीं। उस महिला को गांव वालों ने डायन घोषित कर सामाजिक बहिष्कार कर दिया था। रोज दी ने न केवल उस महिला को अपने घर में आश्रय दिया, बल्कि गांव वालों को इकट्ठा कर शिक्षा और कानून के बारे में समझाया। उन्होंने उस महिला को सखी मंडल से जोड़ा, जिससे वह आत्मनिर्भर बनी। यह छोटी-सी घटना रोज दी के दृढ़ संकल्प और मानवता को दर्शाती है।

रोज केरकेट्टा की कहानियां और कविताएं केवल साहित्यिक रचनाएं नहीं थीं। वे आदिवासी जीवन की कठोर सच्चाइयों और उनकी आकांक्षाओं का दस्तावेज थीं। पगहा जोरी-जोरी रे घाटो, यह कहानी संग्रह स्त्री जीवन की जटिलताओं और सामाजिक दमन को दर्शाता है। इसमें डायन प्रथा और महिलाओं के शोषण जैसे मुद्दों को संवेदनशीलता से उठाया गया है। बिरुवार गमछा कहानीसंग्रह में आदिवासी जीवन की सादगी और संघर्षों को चित्रित किया गया है, जो पाठकों को उनकी वास्तविकता से जोड़ता है।

Dr. Rose Kerketta: डायन प्रथा के खिलाफ संघर्ष

झारखंड में डायन प्रथा सामाजिक कुरीति रही है, जिसके तहत महिलाओं को अंधविश्वास के आधार पर डायन घोषित कर प्रताड़ित किया जाता है। आंकड़ों के अनुसार झारखंड में प्रतिवर्ष औसतन 35 हत्याएं और हर दिन 2-3 प्रताड़ना के मामले डायन प्रथा के नाम पर दर्ज होते हैं। रोज केरकेट्टा ने इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ अपनी लेखनी और सामाजिक सक्रियता के माध्यम से विरोध किया।

रोज दी का मानना था कि डायन प्रथा का मूल कारण अशिक्षा और अंधविश्वास है। उन्होंने अपनी रचनाओं और व्याख्यानों के जरिए लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। उनकी सहयोगी मालंच घोष के अनुसार रोज दी कहती थीं कि “महिलाओं को संपत्ति पर अधिकार नहीं देने के लिए डायन बताकर उनका शोषण किया जाता है।” उनकी कहानियां जैसे कि पगहा जोरी-जोरी रे घाटो, स्त्री मन की जटिलताओं और सामाजिक अन्याय को उजागर करती हैं।

महिला सशक्तीकरण: रोज ने महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने पर जोर दिया। वे आधी दुनिया पत्रिका की संपादक रहीं, जो महिलाओं के मुद्दों को उठाने का एक मंच था। उनके प्रयासों ने कई महिलाओं को डायन प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत दी।

उनके इस संघर्ष का प्रभाव इतना गहरा था कि सामाजिक कार्यकर्ता छूटनी महतो जैसी शख्सियतें, जिन्हें 2021 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया, रोज दी से प्रेरणा लेकर डायन प्रथा के खिलाफ काम करती रहीं।

Dr. Rose Kerketta: आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष

रोज केरकेट्टा ने आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, और जमीन के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष किया। वे झारखंड आंदोलन की एक प्रमुख हस्ती थीं और आदिवासी भाषा, संस्कृति, और पहचान के संरक्षण के लिए समर्पित रहीं।

झारखंड आंदोलन में योगदान: 20वीं सदी में शुरू हुए झारखंड आंदोलन, जिसका लक्ष्य छोटा नागपुर पठार और आसपास के क्षेत्रों को अलग राज्य का दर्जा दिलाना था। इस आंदोलन में रोज दी ने सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने आदिवासी समुदायों को संगठित करने और उनकी आवाज को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने में मदद की।

खड़िया भाषा और संस्कृति का संरक्षण: रोज ने खड़िया भाषा को बढ़ावा देने के लिए रांची विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में काम किया और खड़िया लोक कथाओं का साहित्यिक अध्ययन किया। उनकी रचनाएं जैसे सिंको सुलोलो (खड़िया कहानियों का संग्रह), आदिवासी संस्कृति को जीवंत रखने का प्रयास थीं।

जमीन के अधिकारों की वकालत: आदिवासियों की जमीन पर बढ़ते अतिक्रमण और विस्थापन की समस्या पर रोज ने खुलकर आवाज उठाई। उन्होंने पत्थलगड़ी आंदोलन जैसे आंदोलनों का समर्थन किया, जो आदिवासी भूमि के अधिकारों की रक्षा के लिए शुरू हुआ था।

Dr. Rose Kerketta: सम्मान और विरासत

रोज केरकेट्टा को उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए प्रभावती सम्मान, रानी दुर्गावती सम्मान और अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान जैसे कई पुरस्कारों से नवाजा गया। वे रांची विश्वविद्यालय में खड़िया भाषा की प्रोफेसर रहीं और देश-विदेश में आदिवासी संस्कृति पर व्याख्यान दिए।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, “उनका जाना साहित्य जगत और आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ा नुकसान है।” उनकी विरासत उनकी रचनाओं, उनके विचारों, और उनके द्वारा प्रेरित लोगों के माध्यम से जीवित रहेगी।

🔴The Lens की अन्य बड़ी खबरों के लिए हमारे YouTube चैनल को अभी फॉलो करें

👇हमारे Facebook पेज से जुड़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर Click करें

✅The Lens के WhatsApp Group से जुड़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

TAGGED:Dr. Rose Kerkettaindian literatureJharkhandTop_Newsआदिवासी साहित्‍य
Share This Article
Email Copy Link Print
Previous Article Supreme Court : निशिकांत दुबे पर आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू सीजेआई के बाद दुबे के निशाने पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी, इधर सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक अवमानना को लेकर कवायद शुरू
Next Article बीएचयू अकादमिक हत्या ‘बीएचयू में अकादमिक हत्या हो रही है’ : छात्रा ने लगाई न्याय की गुहार, क्या सत्ता के दबाव में रुका एडमिशन ? देखें वीडियो

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

इतिहास के पन्नों से (6 मार्च) : महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर की मुलाकात

आज है 6 मार्च। आज ही के दिन साल 1915 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम…

By The Lens Desk

नेताओं पर ईडी की कार्रवाई : 10 सालों में 193 मामले, सजा सिर्फ दो को

नई दिल्ली । प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई में आरोपियों को सजा मिलने की दर…

By Arun Pandey

संयुक्त राष्ट्र के मंच पर मणिपुर के जोधा की आवाज मीडिया में सिरे से नदारद है

दिल्ली। आज मणिपुर में शुरू हुई वर्गीय हिंसा (Manipur violence) के दो साल पूरे हो…

By Lens News Network

You Might Also Like

vodfone idea closed soon
अर्थ

वोडाफोन आइडिया ने सरकार से लगाई मदद की गुहार, FY26 के बाद बंद हो सकती है कंपनी

By Amandeep Singh
छत्तीसगढ़

तेलंगाना में नक्सलियों ने किया संघर्ष विराम का ऐलान !

By Lens News
films china market hollywood vs bollywood
स्क्रीन

चीन में हॉलीवुड या बॉलीवुड ! क्या भारतीय सिनेमा को मिलेगा अमेरिकी-चीन टैरिफ वॉर का फायदा ?

By Poonam Ritu Sen
Operation Sindoor
देश

ऑपरेशन सिंदूर : 9 आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करने में लगे महज 25 मिनट

By Arun Pandey

© 2025 Rushvi Media LLP. 

Facebook X-twitter Youtube Instagram
  • The Lens.in के बारे में
  • The Lens.in से संपर्क करें
  • Support Us
Lens White Logo
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?