Waqf Amendment Act: वक्फ संशोधन कानून को लेकर जारी विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुरुवार, 17 अप्रैल को राजधानी दिल्ली में दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। समुदाय के नेताओं ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया।
प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान कहा कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन, पारदर्शिता और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देगा। उनके अनुसार, नया कानून भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के साथ-साथ गरीब, जरूरतमंद मुस्लिमों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए कल्याणकारी उपायों को सशक्त बनाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक की जानकारी सोशल मीडिया मंच एक्स पर साझा करते हुए लिखा, “दाऊदी बोहरा समुदाय के साथ शानदार बातचीत हुई। कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई।”
मीडिया में आई खबरों के अनुसार समुदाय के एक सदस्य ने कहा कि वक्फ कानून में संशोधन की लंबे समय से आवश्यकता महसूस की जा रही थी। दाऊदी बोहरा समुदाय 1923 से ही वक्फ कानून में बदलाव और छूट की मांग करता आ रहा है। नया वक्फ अधिनियम विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदायों के भीतर मौजूद छोटे समूहों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसे उन्होंने ‘भविष्य की दिशा में एक सशक्त कदम’ बताया।
Waqf Amendment Act: के खिलाफ 100 से अधिक याचिकाएं
वक्फ संशोधन कानून 2025 संसद में 4 अप्रैल 2025 को पारित किया और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 8 अप्रैल से लागू किया गया। संवैधानिक वैधता के आधार पर इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में व्यापक कानूनी चुनौतियां दी गई हैं, जिसमें कई राजनीतिक दल, धार्मिक संगठन और प्रमुख नेता शामिल हैं।
इस कानून के खिलाफ अब तक 100 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें से 10 याचिकाओं को प्राथमिक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट याचिका दायर की है, ताकि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न हो। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल 2025 को इस मामले की सुनवाई शुरू की, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने दो घंटे तक दलीलें सुनीं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से 7 दिन में जवाब मांगा है।
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: नए कानून में केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है, जिसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप माना जा रहा है।
वक्फ संस्थानों की स्वायत्तता पर प्रभाव: याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कमजोर करता है और सरकार का नियंत्रण बढ़ाता है।
संपत्ति पर कब्जे का आरोप: कुछ याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह कानून वक्फ बोर्ड को अत्यधिक शक्तियां देता है, जिससे निजी और सार्वजनिक संपत्तियों पर अनुचित कब्जा हो सकता है।
विरोध करने वाले संगठन और नेता
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए ‘वक्फ बचाव अभियान’ शुरू किया है, जिसमें 1 करोड़ हस्ताक्षर एकत्र कर प्रधानमंत्री को सौंपने की योजना है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कानून को मुस्लिम विरोधी और बिल्डरों को लाभ पहुंचाने वाला बताया।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने याचिका दायर की और कहा कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। वाम मोर्चा के अध्यक्ष बिमान बोस ने कानून को असंवैधानिक बताया और शांतिपूर्ण विरोध की अपील की।
पूर्व आंध्र प्रदेश मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने कानून को गंभीर संवैधानिक उल्लंघन बताते हुए याचिका दायर की है। अभिनेता से नेता बने विजय ने कानून को मुस्लिम विरोधी और संविधान के खिलाफ बताया। इसके अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स जैसे संगठनों ने भी याचिकाएं दायर की हैं।
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