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लेंस संपादकीय

तरबूज भी नहीं बचा!

Editorial Board
Editorial Board
Published: April 16, 2025 7:43 PM
Last updated: April 16, 2025 7:43 PM
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poor quality watermelon
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तमिलनाडु के तिरुपुर में मिलावटी रंगों और खराब गुणवत्ता वाले 2000 किलोग्राम तरबूज जब्त किए जाने की खबर चौंकाती नहीं, बल्कि सोचने को मजबूर कर रही है कि मिलावट का कारोबार करने वालों ने फलों को भी नहीं बख्शा है। तमिलनाडु के खाद्य सुरक्षा विभाग ने इस कार्रवाई के बाद हिदायत दी है कि उपभोक्ता बाज़ार से फल खरीदते समय उसकी गुणवत्ता की खुद ही जांच करें! यह वैसा ही है, जैसा बरसों से बसों की सीटों पर लिखा होता है कि यात्री अपने सामान की रक्षा खुद करें। मजाक अपनी जगह, लेकिन वास्तविकता यही है कि हमारे देश में खाद्य सामग्री में मिलावट और घटिया गुणवत्ता आज भी बड़ी चुनौती है, जिससे निपटने में सारा तंत्र नाकाम रहा है, और यह संस्थागत संरक्षण के संभव ही नहीं। दूध, पनीर, मिठाई से लेकर कोई भी खाद्य सामग्री मिलावट से नहीं बची है, न ही देश का कोई हिस्सा। मिलावट रोकने के लिए कानूनों की कमी नहीं है, महाराष्ट्र में तो मकोका जैसा कानून तक है, इसके बावजूद यदि हमारी सेहत से खिलवाड़ करने वाले फल-फूल रहे हैं, तो साफ है कि मिलावटखोरों को कानून का भय नहीं। मिलावट के धंधे में बड़े कॉरपोरेटों के उत्पादों के नाम तक सामने आते हैं, लेकिन सेहत के लिए जोखिम पैदा करने वाले इस मुद्दे को छोड़कर देश को गैरजरूरी मुद्दों में उलझा दिया जाता है। सवाल नागरिक जवाबदेही की कमी का भी है, क्योंकि हम अपनी सरकारों से अपनी सेहत और जनस्वास्थ्य को लेकर सीधे सवाल ही नहीं करते, फिर हमें तरबूज जैसा सस्ता फल भी मिलावटी क्यों न मिले!

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